राष्ट्रधर्म

Last Updated 15 Jan 2018 05:57:01 AM IST

वेदों में बड़ी ही सुंदर प्रार्थना की गई है कि ऐ राष्ट्र, हम तुम पर स्वयं को बलिदान करने वाले बनें.


महर्षि ओम (फाइल फोटो)

समय-समय पर जहां महापुरुषों ने अपने त्याग एवं तपस्या से राष्ट्र को सुदृढ़ करने का प्रयास किया, वहीं देश के रण-बांकुरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना स्वयं को राष्ट्रहित में हंसते कुर्बान किया. आज समाज को बहुत बड़ी आवश्यकता है कि वे उनके समर्पण को समझे. राष्ट्रहित से बड़ा कोई धर्म नहीं हैं.

परंतु इसका निर्वहन तभी संभव है, जब हम स्वयं के निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर अपनी मातृभूमि के लिए कुछ अच्छा करने का संकल्प लें. हमारी भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में अनेकता में एकता का दर्शन कराती है. राष्ट्रप्रेम से जुड़ी अनेकों घटनाएं इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.

पृथ्वीराज चैहान, महाराणा प्रताप, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, तांत्या टोपे, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु , सुभाष चंद्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे सरीखे वीरों को भला कैसे भुलाया जा सकता है? इतने नाम हैं कि शायद सोच भी नहीं सकते. हमें आजादी कितने त्याग और बलिदान के बाद मिली, इस पर विचार किए जाने की नितांत आवश्यकता है. वीरों का त्याग और बलिदान खाली न जाए, इसके लिए हमें कर्तव्य का निर्वहन करते हुए राष्ट्रधर्म विभाना होगा.



आज जिस स्वतंत्र परिवेश में हम रह रहे हैं, आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं. इस सबके पीछे असंख्य लोगों को योगदान है. वैसे तो हर व्यक्ति अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम रखता है, लेकिन कई बार चाहकर भी वह इसका निर्वहन करने से चूक जाता है, जिसके लिए उसे सजग होकर स्वयं को जागृत करना होगा. क्षेत्र कोई भी हो हम अपने राष्ट्रधर्म का निर्वहन कर सकते हैं. इसके लिए सीमा पर जाना ही जरूरी नहीं है, अपितु स्वयं के उत्तरदायित्व के प्रति कर्तव्यनिष्ठ बनें. मदालसा ने जैसा चाहा अपने बच्चों को बनाया. किसी को धार्मिंक, तो किसी में वीरता का भाव भरा. स्वदेश प्रेम का भाव हर एक भारतीय में होना चाहिए.

हमारी संस्कृति और सभ्यता अनूठी है. लेकिन कहीं-न-कहीं आज का युवा सही मार्गदर्शन के अभाव में भटक रहा है. हमारे खेत-खलिहान समृद्ध रहें, हर बच्चा शिक्षित हो, बेरोजगारी दूर हो. समाज से व्याभिचार दूर हो और इसके लिए लोगों को प्रेरित किया जाए तो यह भी राष्ट्र प्रेम है. हम सभी का सम्मान करें. एक दूसरे के प्रति प्रेम और भाईचारे का व्यवहार रखें, तो बहुत अच्छा होगा.

महर्षि ओम


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