गरीबी
मुझसे लोग कहते हैं कि आप गरीबों के लिए क्यों नहीं कुछ करते? यहां आपके आश्रम में गरीब के लिए प्रवेश नहीं मिल पाता. उसके पीछे कारण हैं.
आचार्य रजनीश ओशो |
गरीब जब भी मेरे पास पहुंच जाता है तभी मैं अपने को असहाय पाता हूं; क्योंकि मैं जो कर सकता हूं, वह उसकी मांग नहीं है. जो वह चाहता है, उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है. हमारे बीच सेतु निर्मिंत नहीं हो पाता. एक गरीब आदमी आता है. वह कहता है कि मुझे नौकरी नहीं है. वह ध्यान की बात ही नहीं पूछता.
उसको प्रार्थना से कुछ लेना-देना नहीं है. वह मेरा आशीर्वाद चाहता है कि नौकरी मिल जाए. अब मेरे आशीर्वाद से अगर नौकरी मिलती होती तो मैं एक दफा सभी को आशीर्वाद दे देता. इसको बार-बार करने की क्या जरूरत थी? मेरे आशीर्वाद से कुछ मिल सकता है, लेकिन वह नौकरी नहीं है. वह तुम्हारी मांग नहीं है. तब मैं बड़े पसोपेश में पड़ जाता हूं.
कोई आ जाता है कि बीमार है, आशीर्वाद दे दें! बीमार को अस्पताल जाना चाहिए. उसको मेरे पास आने का कोई कारण नहीं है; उसको इलाज की जरूरत है. जब भी गरीब आदमी आता है तो मैं पाता हूं कि उसकी कोई चिंतना धार्मिंक है ही नहीं. वह मेरे पास आना भी चाहता है तो इसलिए आना चाहता है. कभी-कभी कोई धनी आदमी आता है तो उसकी चिंतना धार्मिंक होती है.
वह भी कभी-कभी. तब वह कभी पूछता है कि मन अशांत है, क्या करूं? गरीब आदमी पूछता ही नहीं कि मन अशांत है. मन का अशांत होना एक खास विकास के बाद होता है. अभी पेट अशांत है; अभी मन को अशांत होने का उपाय भी नहीं है. पेट भर जाए तो मन अशांत होगा. मन भर जाए तो आत्मा बेचैन होगी. असल में, जब आत्मा बेचैन हो तभी मेरे पास आने का कोई अर्थ है.
आत्मा बेचैन हो तो मेरे आशीर्वाद से कुछ हो सकता है, मेरे निकट होने से कुछ हो सकता है. जो मैं तुम्हें दे सकता हूं, वह धन और है. जो धन तुम मांगते हो, वह मेरे पास नहीं. तो गरीब आदमी जैसे ही पास आता है, मुझे बड़े पेसोपेश में डाल देता है?
उसकी पीड़ा मैं समझता हूं. उसकी कठिनाई मुझे साफ है; उससे भी ज्यादा साफ है जितनी उसे साफ है क्योंकि मैं जानता हूं कि कितनी दयनीय दशा है कि एक आदमी कह रहा है कि मुझे नौकरी नहीं है! यह कितनी कष्टपूर्ण दशा है कि एक आदमी बीमार है और इलाज का इंतजाम नहीं जुटा पा रहा है! वह सुई मांगने आया है; मैं इधर तलवार देने को तैयार हूं. लेकिन उसका क्या प्रयोजन है?
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