प्रार्थना

Last Updated 15 Dec 2017 07:22:32 AM IST

प्रार्थना का तात्पर्य है-परमात्मा के करीब होना. मनुष्य को आंतरिक बल प्रदान करने का कार्य प्रार्थना करती है.


आचार्य अनिल वत्स

प्रार्थना यदि मन से की जाए, तो परमेर हमारी पुकार अवश्य सुनते हैं. परंतु अकसर हमारी प्रार्थना तब अपना पूरा असर नहीं डाल पाती है, जब उसमें भाव और पूर्ण निष्ठा की कमी होती है.

प्रार्थना में भाषा का उतना महत्त्व नहीं है, जितना भाव का. प्रार्थना के साथ-साथ अपने कर्मो का लेखा-जोखा भी अवश्य करते रहें. तब जाकर बात बनती है. प्रार्थना में मन-मस्तिष्क की एकाग्रता के साथ-साथ समर्पण का भी विशेष महत्त्व है. सच्ची प्रार्थना वे ही कर पाते हैं, जिनका हृदय मंदिर पवित्र होता है. क्योंकि परमात्मा का निवास निर्मल मन में ही होता है. छल-कपट से जो दूर है, यों समझें कि वे परमात्मा के करीब हैं. प्रार्थना विनम्रता का प्रतीक है. वेदों में अनेकों प्रार्थनाएं निहित हैं. जब भी ईर की चरण-शरण में जाएं, उससे अभयता मांगे.

मात्र शब्दों का खेल न खेलें, क्योंकि वह हमारे मन के भाव-कुभाव को भली-भांति जानता और समझता है. प्रार्थना वस्तुत: प्रेमोपासना की सर्वोत्तम विधि है. भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की प्रार्थना सुनकर चीर हरण के समय उनकी लाज रखी. वे भक्तों की आत्र पुकार सुनकर दौड़े-दौड़े चले आते हैं. जो सच्चा भक्त है, उसकी प्रार्थना सदैव यही रहती है कि हे प्रभो! मैं आपके ध्यान में हमेशा बना रहूं. आपकी कृपा हमेशा चाहिए, क्योंकि आप कृपा साध्य हैं पुरु षार्थ साध्य नहीं. आप इंद्रियातीत हैं. कमी हमारी पुकार में है, आपके देने में नहीं. जब जीव का यह भाव उस ब्रह्म के प्रति होता है.

तो उसे वह सब कुछ मिलता है, जिसे वह चाहता है. प्रार्थना के समय विचारों में गिरावट न आने दें क्योंकि अच्छे विचारों से ही प्रार्थना को बल मिलता है. इस क्षणभंगुर संसार में जो व्यक्ति धर्म का आचरण करते हुए नित्य प्रभु की प्रार्थना करता है. उसे अथाह सुख की अनुभूति होती है. प्रार्थना अन्तर्मन की पुकार है.

ध्यान रहे, वहीं अग्नि है, सोम है, इन्द्र है, प्रजापति है. जब भी कुछ याचना करनी हो, हाथ उस एक मालिक के सामने ही फैलाएं. क्योंकि उसकी प्रार्थना से जीवन पवित्र होता है. उसकी कृपा से हमारे पाप, हमारी दृष्प्रवृत्तियां नष्ट होती हैं. वह परमपिता दीनबंधु है, करु णाकर है. हम एक कदम बढ़कर तो देखें, प्रार्थना को माध्यम तो बनाएं. प्रार्थना ईर का दिया हुआ मनुष्य को एक पवित्र उपहार है. इसे माध्यम बनाते हुए अपने जीवन में सदाचरण को उतारें.



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