छठ पर्व

Last Updated 23 Oct 2017 05:13:27 AM IST

देश विदेश में मनाई जानी वाली छठ पूजा सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध है. दीपावली के छह दिन बाद छठ पर्व मनाया जाता है.


छठ पर्व (फाइल फोटो)

हालांकि, यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्ति छठ कहा जाता है. वैसे यह पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है, लेकिन इस महापर्व में जीवन के संपूर्ण चक्र को प्रदर्शित करके प्रत्यक्ष रूप से पवित्र किया जाता है यानी यह पर्व आत्मा की अमरता और जीवन की निरंतरता को दशर्ता है.

हिंदू धर्म में सूर्य ऐसे देवता हैं, जिन्हें साकार रूप में देखा जा सकता है, इसलिए छठ पर्व को किसी प्रमाणिक कथा की जरूरत नहीं है. इस पूजा में भक्त और भगवान आमने-सामने होते हैं. सूर्य को ऊर्जा और जीवन-शक्ति का देवता माना जाता है, इसलिए छठ त्योहार के दौरान भलाई, समृद्धि और प्रगति के लिए उनकी पूजा की जाती है.

सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं. छठ में सूर्य के साथ इन दोनों शक्तियों की भी अराधना की जाती है. प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो छठ पर्व पर विशेष खगोलीय परिवर्तन भी होता है. इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणों पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र होती हैं, जिससे संभावित कुप्रभावों से मनुष्य को सुरक्षा मिलती है.



सूर्य की अराधना वाले छठ पर्व के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं. इनमें से एक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था और इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई. वैसे, छठ चार दिवसीय उत्सव है. सबसे पहले घर की सफाई की जाती है. इसके बाद स्नान और शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करके व्रत की शुरुआत होती है.

दूसरे दिन उपवास रखने के बाद व्रतधारी शाम को भोजन करते हैं. इसे खरना कहा जाता है. तीसरे दिन शाम को बांस की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार के लोग सूर्य को अघ्र्य देने घाट जाते हैं. सूर्य को जल और दूध का अघ्र्य दिया जाता है और प्रसाद से भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है. चौथे दिन उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है.

 

 

आचार्य अनिल वत्स


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