सास-बहू रिश्ता
तमिल में एक आम कहावत है‘ऐसा कोई आदमी नहीं, जिसके पास अपने खेतों के लिए सही जानवर हो और ऐसा कोई आदमी नहीं जिसके पास अपनी मां के लिए सही बीवी हो.’
जग्गी वासुदेव |
इस पर आपकी क्या राय है? यह अधिकतर इंसानों की एक बुनियादी समस्या है. लोग हमेशा अपने जीवन में सबसे अच्छा इंसान या सबसे बेहतर काम चाहते हैं. इस दुनिया में कोई बेहतरीन इंसान या बेहतरीन काम नहीं है. अगर आप सोचने लगे, ‘क्या यह इंसान सबसे बेहतर है?’ तो दुनिया में कोई व्यक्ति सबसे बेहतर नहीं होगा. अगर आप भगवान से भी शादी कर लें, तो भी सिर्फआपकी मां को ही नहीं, खुद आपको भी शिकायत होगी. आप जो कुछ भी करते हैं, अगर पूरी लगन के साथ उसे करें और खुद को समर्पित कर दें, तो वह एक जबरदस्त काम हो जाता है.
अभी आापके बगल में जो कोई भी है, अगर आप उसके लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दें और पूरी भागीदारी दिखाएं, तो हर कोई आपके लिए अच्छा हो जाएगा. आपक देखेंगे कि उनका साथ आपको बहुत अच्छा लगेगा. अगर आप सोचने लगे, ‘क्या यह इंसान सबसे बेहतर है?’ तो दुनिया में कोई व्यक्ति सबसे बेहतर नहीं होगा. अगर आप भगवान से भी शादी कर लें, तो भी सिर्फआपकी मां को ही नहीं, खुद आपको भी शिकायत होगी.
जहां तक मां को खुश करने की बात है, तो मां सबसे पहले एक स्त्री है. बाद में वह मां बनी. पत्नी भी मुख्य रूप से एक स्त्री है, बाद में वह पत्नी बनी. यह भूमिका बाद में आती है. उसकी पहली पहचान एक स्त्री की है. उसके बाद उसकी पहचान पत्नी और फिर मां की हो सकती है. यही क्रम है. घर में आने वाली नई स्त्री के प्रति सहज अस्वीकृति या विरोध का भाव होता है क्योंकि अब आपको एक ऐसे इंसान को उसके साथ साझा करना होगा, जो आपका था.
अगर एक स्त्री अपनी चीजों को लेकर अधिकार भाव नहीं रखती तो वह अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर पाती. वह बस बच्चों को पैदा करके चली जाती. यह एक बायोलॉजिकल प्रॉसेस है, जो किसी न किसी रूप में जीवन भर जारी रहती है. और वह भी बराबर नहीं, बेमेल अनुपात में. एक मां चाहती है कि उसका बेटा शादी करे और खुश रहे. लेकिन दूसरे स्तर पर वह भी एक स्त्री होती है. जो आपका था, उसे साझा करने के लिए आपको इजाजत लेनी पड़ती है.
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