संघर्ष या समर्पण

Last Updated 04 Aug 2017 02:34:37 AM IST

अगर तुम पूरी तरह संघर्ष छोड़ दो तो तुम्हारी वहीं ऊंचाई है, जो परमात्मा की. ऊंचाई का एक ही अर्थ है-निर्भार हो जाना.


आचार्य रजनीश ओशो

और अहंकार पत्थर की तरह लटका है तुम्हारे गले में. जितना तुम लड़ोगे उतना ही अहंकार बढ़ेगा. जीवन जीने के दो ढंग हैं. एक ढंग है संघर्ष का, एक ढंग है समर्पण का.

संघर्ष का अर्थ है, मेरी मर्जी समग्र की मर्जी से अलग. समर्पण का अर्थ है, मैं समग्र का एक अंग हूं. मेरी मर्जी के अलग होने का कोई सवाल नहीं. मैं अगर अलग हूं, संघर्ष स्वाभाविक है. मैं अगर इस विराट के साथ एक हूं, समर्पण स्वाभाविक है. संघर्ष लाएगा तनाव, अशांति, चिंता. समर्पण: शून्यता, शांति, आनंद और अंतत: परमज्ञान. संघर्ष से बढ़ेगा अहंकार, समर्पण से मिटेगा.

संसारी वही है जो संघर्ष कर रहा है. धार्मिंक वही है, जिसने संघर्ष छोड़ा और समर्पण किया. मंदिर, गुरु द्वारे, मस्जिद जाने से धर्म का कोई संबंध नहीं. अगर तुम्हारी वृत्ति संघर्ष की है, अगर तुम लड़ रहे हो परमात्मा से, अगर तुम अपनी इच्छा पूरी कराना चाहते हो-चाहे प्रार्थना से ही सही, पूजा से ही सही-अगर तुम्हारी अपनी कोई इच्छा है, तो तुम अधार्मिंक हो.

जब तुम्हारी अपनी कोई चाह नहीं, जब उसकी चाह ही तुम्हारी चाह है. जहां वह ले जाए वही तुम्हारी मंजिल है, तुम्हारी अलग कोई मंजिल नहीं. जैसा वह चलाए वही तुम्हारी गति है, तुम्हारी अपनी कोई आकांक्षा नहीं. तुम निर्णय लेते ही नहीं. तुम तैरते भी नहीं, तुम तिरते हो... आकाश में कभी देखें! चील बहुत ऊंचाई पर उठ जाती है. फिर पंख भी नहीं हिलाती. फिर पंखों को फैला देती है और हवा में तिरती है. वैसी ही तिरने की दशा जब तुम्हारी चेतना में आ जाती है, तब समर्पण.

तब तुम पंख भी नहीं हिलाते. तब तुम उसकी हवाओं पर तिर जाते हो. तुम तब निर्भार हो जाते हो. क्योंकि भार संघर्ष से पैदा होता है. भार प्रतिरोध से पैदा होता है. जितना तुम लड़ते हो उतना तुम भारी हो जाते हो, जितने भारी होते हो उतने नीचे गिर जाते हो. जितना तुम लड़ते नहीं उतने हल्के हो जाते हो, जितने हल्के होते हो उतने ऊंचे उठ जाते हो. अंहिसा अपने आप फलती है.

प्रेम अपने आप लगता है. कोई प्रेम को लगा नहीं सकता. और न कोई करूणा को आरोपित कर सकता है. अगर तुम निर्भार हो जाओ, तो ये सब घटनाएं अपने से घटती हैं. जैसे आदमी के पीछे छाया चलती है, ऐसे भारी आदमी के पीछे घृणा, हिंसा, वैमनस्य, क्रोध, हत्या चलती है.



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