अपरंपार है देवघर के बाबा वैद्यनाथ की महिमा

Last Updated 29 Jul 2017 04:26:21 PM IST

"बोल बम का नारा है बाबा एक सहारा है" वाकई सुल्तानगंज से देवघर जाने के रास्ते में बाबा ही एकमात्र सहारा होते हैं - शिव भक्त सुल्तानगंज से जल लेकर जलाभिषेक करने के लिए देवघर जाते है.




अपरंपार है देवघर के बाबा वैद्यनाथ की महिमा

देवघर भारत के झारखंड राज्य का एक शहर है. यह शहर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल है. इस शहर को बाबाधाम के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शिव पुराण में देवघर को बारह जोतिर्लिंगों में से एक माना गया है.

इस लिंग की स्थापना का इतिहास यह है कि लंकावासियों को अमरत्व प्रदान करने के लिए राक्षसराज रावण ने बाबा भोलेनाथ से लंका में जाकर इस लिंग को स्थापित करने के लिये उनसे आज्ञा मांगी थी जिसके फलस्वरूप शिवलिंग के रूप में बाबा भोलेनाथ रावण के साथ चले आए थे.

जब स्वर्ग लोक में यह बात पता चली तो हाहाकार मच गया. तब भगवान विष्णु ने एक स्वांग रचा और मां गंगा को रावण की नाभि में समा कर उसे लघुशंका के लिए प्रेरित किया. शिवलिंग को भगवान विष्णु ने चरवाहा रूप धारण कर उसे सहारा दिया. भगवान विष्णु ने रावण की लघुशंका से परेशान होकर शिवलिंग को वहीं स्थापित कर दिया.

इसीलिए देवघर के शिवलिंग को रावणेश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है और ऐसी भ्रांति भी है कि यह शिवलिंग रावण के द्वारा ही स्थापित की गई है.

परंतु यदि ग्रंथों का विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह शिवलिंग रावण के द्वारा नहीं बल्कि भगवान विष्णु के द्वारा स्थापित की गई है क्योंकि जब रावण लघुशंका करने के लिए बैठ गए तो चरवाहे के रूप में विष्णु भगवान ही शिवलिंग को पकड़े हुए थे और अंततः उन्होंने ही उसे वहां रख दिया था.

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि यह शिवलिंग रावण के द्वारा स्थापित नहीं बल्कि भगवान विष्णु के द्वारा स्थापित है जो सर्व मनोकामनाओं की सिद्धि के लिए जाने जाते हैं.

इसी कारण सुल्तानगंज से देवघर जाने वाले सभी कांवरिया एक ही बात करते हैं 'बोल बम का नारा है बाबा एक सहारा है'.

सुल्तानगंज में गंगा उत्तरायणी है और धर्म शास्त्रों के अनुसार उत्तरायणी गंगा पवित्र मानी जाती है इसी कारण कांवरिया सुल्तानगंज से जल भरते है और बाबानगरी देवघर के लिए प्रस्थान करते हैं. 

सुल्तानगंज से देवघर तक का रास्ता कांवरियों के कारण सूरम्य और सुभाषित हो जाता है चारों ओर कांवरों की घंटियों की आवाज एवं फूलों और अगरबत्ती की खुशबू से पूरा रास्ता सुवासित हो जाता है.

गेरुवा और केसरिया रंग में रंगे यह कांवरिया जब देवघर के रास्ते पर चलते हैं तो यह नजारा देखने योग्य होती है. देखने वाले की भी इच्छा जग जाती है कि वह भी बाबा नगरी एक बार अवश्य पहुंचे. लेकिन कहा जाता है कि जब तक बाबा का आदेश नहीं होता तब तक यहां कोई नहीं पहुंच पाता.

बाबा में पूरी आस्था और विश्वास ही कांवरियों को बाबा तक पहुंचाता है. तो आइए हम भी पूरी आस्था से एक बार बोलें  "बोल बम का नारा है और बाबा ही एकमात्र सहारा है.

सपन दास


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