आत्मा-परमात्मा

Last Updated 11 May 2017 03:32:00 AM IST

प्रत्येक कर्म का कोई अधिष्ठाता जरूर होता है. परिवार के वयोवृद्ध मुखिया के हाथ सारी गृहस्थी का नियंत्रण होता है,


श्रीराम शर्मा आचार्य

मिलों-कारखानों की देखरेख के लिए मैनेजर होते हैं, राज्यपाल-प्रांत के शासन की बागडोर संभालते हैं, राष्ट्रपति संपूर्ण राष्ट्र का स्वामी होता है.

जिसके हाथ में जैसी विधि-व्यवस्था होती है उसी के अनुरूप उसे अधिकार भी मिले होते हैं. अपराधियों को दंड व्यवस्था, संपूर्ण प्रजा के पालन-पोषण और न्याय के लिए उन्हें उसी अनुपात से वैधानिक या सैद्धांतिक अधिकार प्राप्त होते हैं. अधिकार न दिए जाएं तो लोग स्वेच्छाचारिता, छल-कपट और निर्दयता का व्यवहार करने लगें. न्याय व्यवस्था के लिए शक्ति और सत्तावान होना उपयोगी ही नहीं आवश्यक भी है.

इतना बड़ा संसार एक निश्चित व्यवस्था पर ठीक-ठिकाने चल रहा है, सूरज प्रतिदिन ठीक समय से निकल आता है, चंद्रमा की क्या औकात जो अपनी माहवारी ड्यूटी में रत्ती भर फर्क डाल दे, ऋतुएं अपना समय आते ही आती और लौट जाती हैं, आम का बौर बसंत में ही आता है, टेसू गर्मी में ही फूलते हैं, वष्रा तभी होती है जब समुद्र से मानसून बनता है. सारी प्रकृति, संपूर्ण संसार ठीक व्यवस्था से चल रहा है, जो जरा सा इधर-उधर हुए कि उसने मार खाई. अपनी कक्षा से जरा डांवाडोल हुए कि एक तारे को दूसरा खा गया.

जीवन-क्रम में थोड़ी भूल हुई कि रोग-शोक, बीमारी और अकाल-मृत्यु ने झपट्टा मारा. इतने बड़े संसार का नियामक परमात्मा सचमुच बड़ा शक्तिशाली है. सत्तावान न होता हो कौन उसकी बात सुनता. दंड देने में उसने चूक की होती तो अनियमितता, अस्त व्यस्तता और अव्यवस्था ही रही होती. उसकी सृष्टि से कोई भी छुपकर पाप और अत्याचार नहीं कर सकता. बड़ा कठोर है वह, दुष्ट को कभी क्षमा नहीं करता. हे मनुष्यों ! बर्फ  से आच्छादित पहाड़, नदियां, समुद्र जिसकी महिमा का गुणगान करते हैं.

दिशाएं जिसकी भुजाएं हैं हम उस विराट् विश्व पुरु ष परमात्मा को कभी न भूलें. गीता के ‘येन सर्वविदं ततम’ अर्थात ‘यह जो कुछ है परमात्मा से व्याप्त है’ की विशद व्याख्या करते हुए योगीराज अरविंद ने लिखा है-‘यह संपूर्ण संसार परमात्मा की ही सावरण अभिव्यंजना है. जीव की पूर्णता या मुक्ति और कुछ नहीं भगवान के साथ चेतना, ज्ञान, इच्छा, प्रेम और आध्यात्मिक सुख में एकता प्राप्त करना और भगवती शक्ति के कार्य संपादन में अज्ञान, पाप आदि से मुक्त होकर सहयोग देना है.ा है कि आईसीसी के कार्यकलापों से बीसीसीआई की बादशाहत को झटका लगा है.

यह बादशाहत तभी बरकरार रह सकती है, जब वह बातचीत का सिलसिला चलाकर राजस्व को 45 करोड़ डालर तक ले जाया जाए. पर हमें नहीं भूलना चाहिए कि बीसीसीआई की यह बादशाहत ही है कि चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम चयन की अंतिम तारीख 25 अप्रैल निकलने पर भी टीम नहीं चुनने पर कोई आलोचना नहीं कर सका है. इसलिए अभी ट्रॉफी जीतने पर फोकस करने की जरूरत है. आर्थिक स्वास्थ को बेहतर बनाने के लिए बीसीसीआई कभी भी आईसीसी के लिए दो-दो हाथ कर सकती है.



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