अहंकार
अहंकार छोटे-मोटे टीलों से खुश नहीं होता, राजी नहीं होता, उसे पहाड़ चाहिए.
आचार्य रजनीश ओशो |
अगर दुख भी हो तो भी टीला न हो, गौरीशंकर हो. अगर वह दुखी भी है तो साधारण रूप से दुखी होना नहीं चाहता, वह असाधारण रूप से दुखी होना चाहता है. लोग घिसटते रहते हैं, शून्य से बड़ी-बड़ी समस्याएं पैदा करते हैं.
मैंने हजारों लोगों से उनकी समस्याओं के बारे में बात की है और अब तक मैं वास्तविक समस्या खोज नहीं सका. सारी समस्याएं बोगस हैं. तुम उन्हें इसलिए बनाते हो क्योंकि समस्याओं के बगैर तुम खालीपन अनुभव करते हो. कुछ करने को नहीं है, किसी से लड़ना नहीं है, न कहीं जाना है. लोग एक गुरु से दूसरे गुरु जाते हैं, एक मास्टर से दूसरे मास्टर के पास, एक मनोचिकत्सक से दूसरे मनोचिकत्सक के पास, एक एनकाउंटर ग्रुप से दूसरे एनकाउंटर ग्रुप के पास, क्योंकि अगर वे नहीं जाएंगे तो खाली अनुभव करेंगे.
और अचानक उन्हें जीवन की व्यर्थता का बोध होगा. तुम समस्याएं इसलिए पैदा करते हो ताकि तुम्हें ऐसा लगे कि जीवन एक महान काम है, एक विकास है और तुम्हें कठोर संघर्ष करना है. अहंकार संघर्ष में ही जी सकता है, ध्यान रहे, जब वह लड़ता है तभी. अगर मैं तुमसे कहूं कि तीन मक्खियों को मार दो तो तुम बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाओगे तो तुम मेरा विश्वास नहीं करोगे. तुम कहोगे, ‘तीन मक्खियां?
इसमें कोई बड़ी बात नहीं है. और इससे मैं बुद्ध हो जाऊंगा? यह संभव नहीं मालूम होता. अगर मैं कहूंगा कि तुम्हें सात सौ शेर मारने होंगे, तो वह संभव लगता है. समस्या जितनी बड़ी हो उतनी बड़ी चुनौती. और चुनौती के साथ तुम्हारा अहंकार उभरता है, ऊंची उड़ान भरता है. तुम समस्याएं पैदा करते हो, समस्याएं होती नहीं. और पुरोहित, और मनोविश्लेषक और गुरु प्रसन्न होते हैं क्योंकि उनका सारा धंधा तुम्हारे कारण चलता है. यदि तुम ना कुछ से टीले नहीं बनाते और यदि तुम अपने टीलों को पर्वत नहीं बनाते तो गुरु तुम्हारी मदद कैसे करेंगे?
पहले तुम्हें उस स्थिति में होना चाहिए जहां तुम्हारी मदद की जा सके. वास्तविक गुरु कुछ और ही बात करते हैं. वे कहते रहे हैं, ‘कृपा करके जो तुम कर रहे हो उसे देखो, जो बेवकूफी कर रहे हो उसे देखो. पहले तो तुम समस्या पैदा करते हो, और फिर समाधान की खोज में जाते हो. ज्ररा देखो, तुम समस्या क्यों पैदा कर रहे हो? ठीक शुरुआत में, जब तुम समस्या पैदा कर रहे हो, वहीं समाधान है. उसे पैदा मत करो.
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