श्रद्धा

Last Updated 03 May 2017 04:30:45 AM IST

जो होगा, देखा जाएगा’ बस यह कहिए, और देखिए कि क्या होता है. यदि आप विश्वास को लाने का ‘प्रयास’ कर रहे हैं, तो कुछ नहीं होगा.


श्री श्री रविशंकर

‘मैं अपनी श्रद्धा बनाए रखना चाहता हूं’  कौन-सी श्रद्धा आप बनाए रखना चाहते हैं? फेंक दीजिए श्रद्धा को! आप अपनी श्रद्धा को बरकरार रखने का ‘प्रयास’ कर रहे हैं, यह कितना बड़ा बोझ है! उल्टा कहिए, ‘मुझे कोई परवाह नहीं है!’ यदि श्रद्धा है, तो है. यदि श्रद्धा नहीं है, तो नहीं है, आप कर भी क्या सकते हैं? यह सीधी-सी बात है.

श्रद्धा भी एक उपहार है. आप अपने दिल और दिमाग में श्रद्धा थोपने का प्रयास नहीं कर सकते. कभी-कभी, जब आपका दिमाग अपनी बक-बक और नकारात्मकता से श्रद्धा को नकार भी देता है, तब भी आपके अंदर कुछ होता है, जो आपको उस दिशा में ढकेलता है. जब ऐसा होता है, तो उसे पहचानिए. और ऐसा होता है.

कोई कहता है, ‘मैं किसी में विश्वास नहीं करता’, लेकिन फिर भी वह बैठकर ध्यान करता है. और यदि आप उससे पूछेंगे, ‘आप ध्यान क्यों कर रहे हैं?’, तो वे कहेंगे, ‘मेरे अंदर कुछ है, जो मुझे ध्यान करने के लिए कहता है’. एक व्यक्ति कहता है, ‘मैं गुरू में विश्वास नहीं रखता!’, लेकिन फिर भी जब गुरूदेव आते हैं, वह कहता है, ‘क्योंकि अब मेरे पास कुछ और करने के लिए नहीं है, तो चलो, मैं वहीं चलता हूं’, और वह वहां पहुंच जाता है.

कुछ है, जो उस व्यक्ति को उस ओर खींचता है, उसे एअरपोर्ट की तरफ ले जाता है, या सत्संग में आने पर विवश कर देता है. वह क्या है? आपने यह निर्णय ले लिया कि आपको श्रद्धा नहीं है, और आपने अपनी श्रद्धा को मिटाने के लिए बहुत जतन कर लिए, या मना करते गए कि आपमें कोई श्रद्धा है, लेकिन फिर भी कुछ ऐसा हुआ, जिसने आपको बांधे रखा. वहीं, आपको सजग हो जाना चाहिए, ‘कि हां, श्रद्धा तो है!’

इसलिए, श्रद्धा थोपी नहीं जा सकती, वह तो है ही. एक बार जब वह आ जाती है, तो हमेशा रहती है. अगर वह चली जाती है, तो वह आपको दुखी कर देती है. जब आप दुखी हों, तो इतना याद रखिए, ‘श्रद्धा चली गई है, इसीलिए मैं दु:ख में हूं’. और आप दुखी नहीं रहना चाहते. तो इसीलिए जिस क्षण आप यह ठान लेते हैं, कि ‘मुझे दुखी नहीं रहना’, तब श्रद्धा वापस आ जाती है. श्रद्धा तो हमेशा से ही थी, बस वह दोबारा प्रकट हो जाती है.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment