परिवार और खुशी

Last Updated 05 Apr 2017 05:57:31 AM IST

जब हमें भावनाओं के तूफान का सामना करना पड़ता है, तब हम ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हैं अथवा ऐसा कार्य कर देते हैं, जिनसे हमें बाद में खेद होता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हमें न तो स्कूल में और न ही घर पर क्रोध, दुख या किसी भी नकारात्मक भावना को संभालने की सीख दी जाती है.


श्री श्री रविशंकर

आर्ट ऑफ लिविंग के ‘हैप्पीनेस प्रोग्राम’ में सिखाई जाने वाली ास-प्रणाली का ज्ञान नकारात्मक भावनाओं को संयमित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

मन की हर लय के साथ ास की एक अनुरूप लय जुड़ी होती है. इसलिए यदि आप अपने मन को सामान्य रूप से स्थिर नहीं कर पाते हैं, तब ास में लय उत्पन्न कर मन को स्थिर किया जा सकता है. जब हम उचित लय से लिये गए ासों के महत्त्व को समझ लेते हैं, तब हम अपने विचारों और अपनी भावनाओं को भी वश में कर सकते हैं और अपने क्रोध और नकारात्मक विचारों को अपनी इच्छा शक्ति से त्याग सकते हैं.

स्वयं में प्रेम भाव को जीवन भर तरोताजा रखने के लिए स्वयं को बाहरी स्तर  के आरंभिक आकषर्ण से उपर उठाने और बदलती भावनाओं को स्थिर करने की आवश्यकता है. चाहे भावनाओं में किसी भी तरह का उतार चढ़ाव आए, सुदर्शन क्रिया से आपको अपने प्रियजनों के साथ जीवन को आनंदपूर्वक व्यतीत करने की योग्यता भी प्राप्त होती है.

तनाव सदा आपके विचारों, शब्दों और कार्यों के बीच एक निश्चित दरार बनाए रखता है. जब आपका मन तनाव-मुक्त होता है तभी आपकी धारणा और शब्दों में स्पष्टता आती है, और आपके व्यवहार में कोमलता आती है. अनाभिव्यक्त को सहज रूप से अभिव्यक्त कीजिए. किसी भी बीज को जमीन की सतह पर छितरा कर फैला देने से या बहुत गहराई में दबा देने से वह बीज अंकुरित नहीं होता. उसे मिट्टी में थोड़ा-सा नीचे बोया जाता है, तभी वह अंकुरित होता है और पौधे का रूप लेता है.

उसी प्रकार प्रेम की अभिव्यक्ति को भी मर्यादित करने की आवश्यकता है ध्यान-समाधि इस अभिव्यक्ति को सहज बनाती है. घर में शांति, प्रेम और प्रसन्नता की लहरों के आगमन के लिए अपने कदम उठाएं. एक प्रसन्न मन आपको शांत रहने, बेहतर निर्णय लेने और जीवन की समग्र गुणवत्ता बनाए रखने में सहायता करता है.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment