जीवन राग

Last Updated 27 Mar 2017 05:36:36 AM IST

हमारी मस्ती, हमारी किलकारी, हमारे हुड़दंगों पर किसी की नजर लग गई. किस डायन की नजर लग गई, हमारी किलकारी, हमारे हुड़दंगों पर?


आचार्य सुदर्शन जी महाराज (फाइल फोटो)

किसने हमारी हरी-भरी बगिया में आग लगा दी? मुझे लगता है हमारा अंतर्मन राग, आकषर्ण और प्रेम से रूठ गया है. हम मरु भूमि बन गए हैं. यही कारण है कि जहां जूही-चमेली की बगिया हुआ करती थी, वहां आज कंटीले वृक्ष आ गए हैं. यही कारण है कि हम इतना तनावग्रस्त, चिंताग्रस्त बनते जा रहे हैं. हमारे सारे अरमान सूख गए, प्रेम की धरा रेत में विलीन हो गई.

आज आवश्यकता है कि पहले हमारे जीवन में राग, आकषर्ण और प्रेम पैदा किया जाए ताकि आज जो हम नफरत की आग में जले जा रहे हैं, घृणा और आवेश के कारण हमारा जीवन विषवृक्ष बन गया है, पहले हमें उसी अंतर्मन की सफाई करनी चाहिए और तब उसमें स्वस्थ पौध लगाया जाना चाहिए ताकि उसमें सुंदर फूल खिल सकें. क्योंकि जितनी भी हमारी विकास यात्राएं चल रही हैं, वे सभी मनुष्य के लिए हैं. मनुष्य को कैसे सुखी बनाया जाए, हमारी विकास यात्रा का यही उद्देश्य है. लेकिन डर है कि बड़े-बड़े मॉल, कॉलोनियों और बड़ी-बड़ी सड़कों के नीचे कहीं मानवता दब न जाए.



कहीं इस प्रगति के दौर में मनुष्य किसी खंडहर में छिप न जाए. मैं भी प्रगति के पक्ष में हूं और चाहता हूं कि हमारा भी देश, प्रांत, गांव बढ़ता रहे. लेकिन यह प्रगति केवल साधनों तक सीमित न रह जाए, क्योंकि समस्त साधन हमें सुखी बनाने के लिए उपलब्ध किए जा रहे हैं. भय है कि कहीं इन साधनों के नीचे मनुष्य दब न जाए. आजकल बड़े-बड़े शहरों में देखा जा रहा है कि 50 लाख की गाड़ी पर एक बीमार, चिंताग्रस्त व्यक्ति बैठा है, कॉलोनियों में बड़े-बड़े मकान हैं, जो संपूर्ण आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं, लेकिन उन मकानों में जो लोग रह रहे हैं, वे बड़े अशांत हैं.

वहां खड़ा संपूर्ण मानव तनाव और चिंताग्रस्त है, उस सोने के भवन सा दिखने वाले मकान में कोई भी व्यक्ति हंसता हुआ नहीं दिख रहा है. क्योंकि मकान तो बन गए, मकानों में एसी लग गए. लाखों रुपये के सोफा सेट, मगर उसमें रहने वाला मनुष्य आज भी बीमार है, चिंताग्रस्त है, अशांत है, नींद की गोली लेकर सोने का प्रयास किया जा रहा है, फिर भी उन्हें नींद नहीं नसीब हो रही है. इसलिए मैं कहता हूं कि प्रगति तो हो, लेकिन पहले प्रगति की यात्रा मनुष्य के अंत:करण से शुरू हो. पहले मनुष्य को एक स्वस्थ मानव बनाने की आवश्यकता है, ताकि वह प्रगति के रस को पी सके.

आचार्य सुदर्शन जी महाराज


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