संकल्प

Last Updated 04 Mar 2017 09:00:00 AM IST

आपकी हर मंशा पूरी होगी बशर्ते कि पहले से ही आप सुलझी हुई मति से चुनाव कर पाएं कि आपको क्या चाहिए. फिर उसे पाने के लिए दृढ़ संकल्प चाहिए.


जग्गी वासुदेव (फाइल फोटो)

यदि मैं आप लोगों से पूछूं तो बहुतेरे लोग सकारात्मक ढंग से नहीं बता पाएंगे कि उन्हें क्या चाहिए, हालांकि यह जरूर बता सकते हैं कि क्या नहीं चाहिए. आप जिस चीज की कामना करते हैं, मन की कल्पना में उसे रूपायित कर लें. तभी वह वास्तविक रूप में साकार होगी.

यदि आप सुंदर-सा घर बनाना चाहते हैं तो पहले मन में उस मकान की रूप-कल्पना करते हैं, फिर कागज पर उसका नक्शा बनाते हैं, उसमें संशोधन करते हैं और उसके बाद ही तो असल में मकान का निर्माण करते हैं? नींव रखने के स्तर पर ही चंचल मन से संदेह करने लग जाएं क्या यह मुझसे संभव है?  तो आपका घर कल्पना में भी नहीं बन पाएगा. कई बार लोग भगवान से प्रार्थना करते हैं- \'हे प्रभो, मेरी फलां कामना पूरी हो जाए.\' आपने देखा होगा उनमें से कई लोगों का मनोरथ पूर्ण भी हो जाता है, उन्हें वांछित फल मिल जाता है.

 क्या स्वयं परमेश्वर ने आकर उस कार्य को संपन्न किया? कोई सेनानायक अपनी सेना को लेकर रणक्षेत्र की ओर कूच कर रहा था. फौज ने आधा रास्ता तय किया होगा, तभी एक गुप्तचर सामने से आया. उसने कहा: सेनापति! अपनी फौज में केवल एक हजार सिपाही हैं. दुश्मन की सेना में दस हजार जवान हैं. इसलिए यही बेहतर होगा कि हम आत्म-समर्पण कर दें.\'\'   

यह सूचना पाते ही पूरी सेना का हौसला पस्त हो गया. सेनापति ने अपने सारे जवानों को पास के मंदिर में पहुंचने का हुक्म दिया. उन्हें संबोधित करते हुए कहा: मेरे प्यारे साथियो! हमारे सामने एक जबर्दस्त सवाल है -\'क्या हम शक्तिशाली शत्रु का सामना कर सकते हैं?\' मेरा सुझाव है कि हम इस प्रश्न का उत्तर इस मंदिर की देवी मां से ही मांग लें. देखिए, मैं देवी मां की सन्निधि में अपने हाथ के सिक्के को उछालता हूं. यदि सिक्का \'पट\' में गिरे तो समझिए लड़ाई पर जाने के लिए देवी मां की अनुमति है. यदि सिक्का \'चित\' में गिरे तो यहीं से वापस चले जाएं.\'

सेनापति ने सिक्के को ऊपर उछाल दिया. पट में गिरा. सारे के सारे सिपाहियों में उत्साह की लहर छा गई. पूरे जोश के साथ नारे लगाते हुए लड़ाई के मैदान में पहुंचे. अपने से दस गुना ताकतवर सेना से टक्कर ली. जान की बाजी लगाकर लड़े. दुश्मन को हराकर विजय-पताका फहराते हुए लौटते समय देवी मां को धन्यवाद देने के लिए सेना उसी मंदिर में इकट्ठी हुई.

जग्गी वासुदेव


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