उपयोग
मैं इतनी उलझन महसूस कर रहा हूं. क्या अच्छा, क्या बुरा, कुछ समझ में नहीं आता.
![]() ओशो (फाइल फोटो) |
जब भी इस तरह पहचान का संकट उत्पन्न हो जाए, जब भी व्यक्ति जान न पाए कि वह कौन है, जब भी अतीत की पकड़ ढीली पड़ जाए, जब भी व्यक्ति की परंपरागत जड़ें उखड़ जाएं, जब अतीत प्रासंगिक न रह जाए, यह संकट उत्पन्न हो, पहचान का महासंकट- हम कौन हैं? हमें क्या करना चाहिए? यह सौभाग्य का अवसर अभिशाप में भी बदल सकता है, यदि दुर्भाग्य से तुम किसी एडोल्फ हिटलर के हाथ पड़ गए, लेकिन यही अभिशाप अज्ञात के महान द्वार भी खोल सकता है, यदि तुम भाग्यशाली रहे कि तुम्हें किसी बुद्ध के आसपास रहने का अवसर मिल जाए.
यदि तुम भाग्यशाली रहे कि तुम किसी बुद्ध के प्रेम में पड़ सके तो तुम्हारा जीवन रूपांतरित हो सकता है. जो लोग अभी भी परंपरा के जाल में उलझे हैं, और समझते हैं कि वे जानते हैं कि सही क्या है और गलत क्या है, वे कभी भी बुद्ध के पास नहीं आ पाएंगे. वे अपने ढंग से जीना जारी रखेंगे-सामान्य, सुस्त और मरा-मरा सा जीवन. वे अपना रोजमर्रा का काम करने में ही अपना जीवन बिता देंगे, जैसा उनके पूर्वज करते रहे हैं. सदियों से वे एक घिसी-पिटी लकीर पर चलते रहे हैं और वे उसी सड़ी हुई लकीर पर चलते रहेंगे.
वास्तव में जब तुम किसी पुरानी घिसी-पिटी लकीर पर चलते हो, तुम निश्चिंत महसूस करते हो- कि इस रास्ते पर बहुत लोग चल चुके हैं. लेकिन जब किसी बुद्ध के पास आते हो और अज्ञात में यात्रा शुरू करते हो, वहां कोई राजपथ नहीं होता, कोई पिटी-पिटाई लकीर नहीं होती. तुम्हें चल कर अपना पथ स्वयं निर्मिंत करना होता है; कोई पूर्व-निर्मिंत पथ नहीं पाया जा सकता. मैं तुम्हें तुम्हारी ही तरह चलने के लिए प्रोत्साहन दे सकता हूं, तुम्हारे भीतर खोज की एक प्रक्रिया को तेज कर सकता हूं, परंतु मैं तुम्हें कोई विचार की विधि नहीं दूंगा, मैं तुम्हें कोई आश्वासन नहीं दूंगा.
मैं तुम्हें एक तीर्थ-यात्रा का निमंत्रण.. एक तीर्थ-यात्रा जो अत्यंत खतरनाक है, एक तीर्थ-यात्रा जिसमें लाखों तरह के नुकसान की संभावनाएं हैं, एक तीर्थ-यात्रा जहां तुम्हें दिन-प्रतिदिन अधिक से अधिक खतरों का सामना करना पड़ेगा, एक तीर्थ-यात्रा जो तुम्हें मनुष्य-चेतना के उच्चतम शिखर, तुरीय-अवस्था तक ले जाएगी. लेकिन तुम जितनी ऊंचाई पर चढ़ते हो, उतना ही नीचे गिरने का खतरा भी बना रहता है.
| Tweet![]() |