नेता
नेता हमेशा बनाए जाते हैं. इससे फर्क नहीं पड़ता कि कैसे, लेकिन सच यही है कि नेता हमेशा बनाए जाते हैं.
![]() धर्माचार्य जग्गी वासुदेव |
हां, किसी शख्स के व्यक्तित्व में एक ऐसा खास करिश्मा और जन्मजात प्रवृत्ति हो सकती है कि वह बड़ी ही आसानी से लोगों का नेतृत्व कर सके, लेकिन जो लोग अपने करिश्माई व्यक्तित्व के बल पर नेतृत्व करते हैं, वे लोगों को विनाश की ओर भी ले जा सकते हैं.
हम ऐसे लोग चाहते हैं जो समझदारी से नेतृत्व करें. नेता के पास करिश्माई व्यक्तित्व हो ही, यह जरूरी नहीं है. आप देखेंगे कि दुनिया में कई बड़े काम किए जा रहे हैं, मानव के परम कल्याण के लिए काम किए जा रहे हैं, पर ऐसा नहीं है कि ये काम करिश्माई लोग ही कर रहे हैं.
ये काम समझदार लोगों द्वारा किए जा रहे हैं, जिन्हें पता है कि क्या करना है और क्या नहीं. तो इस बात को समझने की जरूरत है. आप जो भी हैं, आप जैसे भी हैं, आपने खुद अपने आपको ऐसा बनाया है. सवाल बस यह है कि आपने पूरी चेतना में खुद को ऐसा बनाया या अचेतन तरीके से. आप चाहे जो भी हों, अगर आपने खुद को अचेतन तरीके से बनाया है और आप सफल भी हैं तो वह सफलता केवल दूसरों की नजरों में ही होगी.
आपने अचेतन में ही खुद को ऐसा बनाया है, इसलिए आप एक उलझे हुए इंसान बन गए हैं, कभी उलझे हुए सफल इंसान, तो कभी उलझे हुए असफल इंसान. अगर आपने खुद को पूरी जागरूकता के साथ बनाया है तो आप अपनी नजरों में सफल होंगे. यह बड़ा महत्त्वपूर्ण है कि आप खुद की नजरों में सफल हों, दूसरों की नजर में नहीं और न ही समाज की नजर में. अगर ऐसा हुआ तो आपको महसूस होगा कि आप सफल हैं.
आप जो कर रहे हैं, उसमें अगर आपको पूर्ण संतुष्टि मिलती है, अगर उससे आपका कल्याण होता है तो आप खुद को सफल महसूस करेंगे. एक नेता के लिए सिर्फ अपनी मंडली में ही चोटी पर होना जरूरी नहीं है, उसे अपने भीतर भी चोटी पर होना चाहिए. अगर वह खुद के ऊपर काम नहीं करता तो वह दूसरों के लिए जो भी करेगा, वह बस संयोगवश होगा.
नेतृत्व का मतलब है कि आप अपने भीतर चोटी पर हैं और जब आपके भीतर की क्षमताओं को संपूर्ण अभिव्यक्ति मिलेगी, काम अपने आप होने लगेंगे. नेतृत्व का मतलब यह कतई नहीं है कि आपको लोगों के ऊपर राज करना है. जहां तक क्षमताओं की बात है तो आपको पता है कि इंसान को किसी भी काम में प्रशिक्षित किया जा सकता है.
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