नागपंचमी पर दुर्लभ संयोग, सावन के सोमवार में नाग पंचमी

Last Updated 05 Aug 2019 01:24:00 PM IST

इस साल सावन के महीने में सोमवार और नागपंचमी का दुर्लभ योग बन रहा है।


प्रतिकात्मक फोटो

भगवान शिव को अत्यंत प्रिय मास श्रावण मास है। नागपंचमी के दिन सर्प पूजन का विधान है। सर्वविदित है कि भगवान शिव के अलंकरण में नागों का विशेष महत्व है। इसलिए इस साल नागपंचमी और सोमवार का दुर्लभ योग बन रहा है। सभी भक्तगण को चाहिए कि आज के दिन भगवान शिव के साथ नाग देवता की भी पूजा अवश्य करें। इससे भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार नागों को समर्पित है। इस त्योहार पर व्रतपूर्वक नागों का अर्चन पूजन होता है। वेदों-पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी से माना गया है। नागों का मूल स्थान पाताल लोक प्रसिद्ध है। पुराणों में भी नागलोक की राजधानी के रूप में भोगवतीपुरी विख्यात है। संस्कृत कथा साहित्य में विशेष रूप से कथासरित्सागर नागलोक और वहां के निवासियों की कथाओं से ओतप्रोत है।

गरु पुराण, भविष्यपुराण, चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नाग संबंधी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में यक्ष, किन्नर और गंधर्व के वर्णन के साथ नागों का भी वर्णन मिलता है।

भगवान विष्णु की शय्या की शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेशजी के अलंकरण में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है जो प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक बनते हैं। इस प्रकार अन्य देवताओं ने भी नागों को धारण किया है। नाग देवता भारतीय संस्कृति में देवरूप में स्वीकार किए गए हैं।

हमारे धर्म ग्रंथों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है। व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजन में पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन किया जाता है। स्वर्ण, रजत या मृतिका से नाग बना कर पुष्प, धूप, दीप एवं विविधता से नागों का पूजन होता है। भाव है कि जो नाग पृथ्वी, आकाश स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवर तथा तालाब आदि में निवास करते हैं, वह सब हम पर प्रसन्न हों। हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं।

नागों की अनेक जातियां और प्रजातियां हैं। भविष्यपुराण में नागों के लक्षण, नाम, स्वरूप तथा जातियों का विस्तार से वर्णन मिलता है। मणिधारी तथा इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख मिलता है।

भारत धर्मपरायण देश है। भारतीय चिंतन प्राणी मात्र में आत्मा और परमात्मा के दशर्न करता है एवं एकता का अनुभव करता है। यह दृष्टि ही जीवन, मनुष्य, पशु, पक्षी की सभी में ईश्वर के दशर्न कराती है। जीवो के प्रति आत्मीयता और दया भाव को विकसित करती है। नाग हमारे लिए पूज्य और संरक्षण देने वाले हैं। प्राणी शास्त्र के अनुसार नागों की अनेकों प्रजातियां हैं।

हमारी कृषिसंपदा की कृषिनाशक से रक्षा करते हैं। पर्यावरण रक्षा तथा वन संपदा में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। नागपंचमी का पर्व नागों के प्रति सम्मान, उनके संवर्धन एवं संरक्षण की प्रेरणा देता है। यह पर्व प्राचीन समय के अनुसार आज भी प्रासंगिक है। आवश्यकता है हमारी अंतर्दृष्टि की। आज के दिन सभी को नाग देवता की पूजन अवश्य करनी चाहिए।

 

पंडित प्रसाद दीक्षित
ज्योतिषाचार्य एवं पूर्व ट्रस्टी, श्री काशी विनाथ मंदिर वाराणसी


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