आवाज के जादूगर थे पंकज मलिक

Last Updated 19 Feb 2009 10:01:37 AM IST


पुण्यतिथि 19 फरवरी पर विशेष बांग्ला संगीत और फिल्मों में सफलता के साथ साथ हिंदी फिल्मों में भी अपनी कामयाबी का परचम लहराने वाले शास्त्रीय संगीत के विशेषज्ञ पंकज मलिक ऐसे संगीतकार व गायक थे जिनकी आवाज के जादू ने आज भी उनके लाखों प्रशंसकों को बांध रखा है। बहुमखी प्रतिभा के धनी पंकज मलिक को संगीत और गायन के अलावा अभिनय में भी कुशलता हासिल थी। वह जब भी परदे पर अवतरित हुए कामयाब रहे। उनकी ऐसी हिंदी फिल्मों में डाक्टर आंधी नर्तकी आदि विशेष चर्चित हैं। जाति प्रथा की समस्या के खिलाफ संदेश देने वाली फिल्म डाक्टर में पंकज मलिक ने कई गाने खुद गाए थे जो काफी हिट हुए। इनमें गुजर गया वो जमाना कैसा महक रही फुलवारी हमरी आई बहार आज.. शामिल हैं। पंकज मलिक के संगीत निर्देशन वाली शुरूआती हिंदी फिल्मों में से एक धरती माता काफी चर्चित हुयी थी। ग्रामीण भारत के जीवन पर आधारित इस फिल्म में किसानों की समस्याएं और उन्हें मुसीबतों से जूझने का रास्ता दिखाने का प्रयास किया गया था। पंकज मलिक ने इस फिल्म में बेहतरीन संगीत दिया और उनकी धुनों के कारण पूरी फिल्म में ग्रामीण परिवेश जीवंत होता दिखाई देता है। धरती माता फिल्म में केएल सहगल ने आदर्शवादी युवक की भूमिका निभायी थी। इस फिल्म के गीत प्रभु मोहे बुला गांव में दुनिया रंगरंगीली बाबा दुनिया रंगरंगीली नया जमान आया है आदि बेहद कामयाब रहे। धरती माता के बाद पंकज मलिक की कई फिल्में प्रदर्शित हुयी जिन्हें समीक्षकों के अलावा दर्शकों ने काफी पसंद किया। ऐसी फिल्मों में दुश्मन काशीनाथ जिंदगी नर्तकी मेरी बहन आदि शामिल हैं। नर्तकी संगीत की दृष्टि से एक अहम फिल्म थी। देवकी बोस निर्देशित इस फिल्म में पंकज मलिक ने एक कवि की भूमिका निभायी और कई गीत भी गाए थे। इन गानों में ये कौन आया सबेरे सबेरे कौन तुझे समझाए मूरख विशेष तौर पर याद किए जाते हैं। न्यू थियेटर्स की फिल्म यात्रिक पंकज मलिक को विशेष रूप से प्रिय थी। इसमें उन्होंने अमर संगीत दिया है। कैलाश केदारनाथ बद्रीनाथ की यात्रा पर आधारित इस फिल्म में पंकज मलिक ने संस्कृति की कई मशहूर रचनाओं को अपना स्वर दिया और अपने विशेष संगीत को फिल्म का एक खूबसूरत पक्ष बना दिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1940 के दशक की शुरूआत में न्यू थियेटर्स से जुड़े अधिकतर बड़े नामों ने बंबई ‘अब मुंबई' की राह ली पर पंकज मलिक को अधिक रकम का प्रस्ताव आकर्षित नहीं कर पाया और उन्होंने बंबई जाने से साफ इंकार कर दिया। दस मई 1905 को पैदा हुए पंकज मलिक का पूरा नाम पंकज कुमार मलिक था। कम उम्र में ही उन्होंने ख्याल ध्रुपद टप्पा और अन्य शास्त्रीय संगीत का ज्ञान हासिल कर लिया था। वह आकाशवाणी से जुड़ने वाले शुरूआती कलाकारों में थे। पंकज मलिक का फिल्मी सफर मूक फिल्मों के दौर में ही शुरू हो गया था। लेकिन असल पहचान उन्हें 1930 के दशक में बोलती फिल्मों की शुरूआत के साथ मिली। हिंदी और बांग्ला दोनों भाषाओं को मिलाकर उन्होंने एक सौ से अधिक फिल्मों में संगीत दिया और कई में अभिनय भी किया। न्यू थियेटर्स से अपार प्रेम करने वाले पंकज मलिक इसके बंद होने तक इससे जुड़े रहे। जलजला और कस्तूरी उनकी आखिरी फिल्मों में थी जिनका संगीत निर्देशन उन्होंने विशेष अनुरोध पर किया था। इसके बाद वह फिल्मों से अलग हो गए और संगीत की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष तौर पर सक्रिय रहे और अंतत 19 फरवरी 1978 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए। पंकज मलिक को अपने जीवन काल में वह सब मिला जिसकी हसरत किसी कलाकार को होती हैं। फिल्म जगत के सर्वोच्च दादा साहब फाल्के सम्मान से नवाजे गए पंकज मलिक को दर्जनों पुरस्कार मिले। इसके साथ ही उन्हें लोगों का भरपूर प्यार भी मिला।



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