सिनेमा लोगों को सोचने पर मजबूर करता है: कबीर खान

Last Updated 19 Jun 2017 12:40:15 PM IST

फिल्मकार कबीर खान का मानना है कि ऐसी फिल्म जो कोई संदेश देती हो, वह लोगों को सोचने के लिए बाध्य कर सकती है. हालांकि वे आशंका जताते हैं कि इससे वास्तविकता नहीं बदल सकती.


कबीर खान (फाइल फोटो)

वर्ष 2015 में आई फिल्म बजरंगी भाईजान के निर्देशक ने कहा कि उनकी इस फिल्म ने लोगों को भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों के बारे में सोचने को बाध्य किया. यह फिल्म एक भारतीय व्यक्ति के बारे में है जो एक बच्ची को पाकिस्तान में उसके घर पहुंचाने में मदद करता है.
     
उन्होंने कहा, यह (सिनेमा) इतना शक्तिशाली है कि वह लोगों को सोचने और मंथन करने पर बाध्य कर सकता है, भले उन्हें बदल नहीं सके. बजरंगी भाईजान के बाद बहुत से लोगों ने सोचा कि भारत और पाकिस्तान के संबंध आखिर किस दिशा में बढ़ रहे हैं. जंग के मुकाबले क्या यह एक बेहतर विचार नहीं है? 
      
उन्होंने कहा कि सिनेमा लोगों को अपनी राय पर फिर से विचार करने को मजबूर करता है. कबीर ने कहा, लेकिन क्या यह इतना शक्तिशाली है कि वास्तविकता को बदल दे? दुर्भाग्य से शायद नहीं. 
      
उनकी नई फिल्म भारत-चीन के बीच वर्ष 1962 में हुए युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी  ट्यूबलाइट है जो 23 जून को रिलीज होनी है. कबीर ने कहा कि उन्होंने अपनी फिल्मों में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाने से कभी परहेज नहीं किया. उन्होंने कहा कि वह अपने विचार रखने से नहीं डरते.
     

कबीर ने कहा,  देश में फिल्में बहुत शक्तिशाली माध्यम है और फिल्मकारों को बिना डर के प्रभावी तरीके से अपने विचार रखने चाहिए. सिनेमा पर राजनीतिक दबाव के बारे में कबीर ने कहा कि उन्होंने इस का सामना नहीं किया है और वह इसके आगे झुकेंगे भी नहीं.
     
उन्होंने कहा, मेरे ख्याल से आज के वक्त में यह अहम है कि आप बोलें. हमारे देश की यह महानतम चीज है कि यह हमें अपने विचार रखने की इजाजत देता है. 
 कबीर ने कहा कि इंटरनेट पर ट्रॉलिंग उन्हें परेशान नहीं करती हालांकि सार्वजनिक बहस की निराशाजनक स्थिति चिंता का बड़ा विषय है.
     
उन्होंने कहा कि हो सकता है कि लोग एक दूसरे से सहमत ना हो लेकिन बहस करने का भी एक तरीका होता है.

भाषा


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