Film Review: 'सरकार 3' में सिर्फ अमिताभ दमदार, कहानी बेदम

Last Updated 12 May 2017 01:38:18 PM IST

सरकार 3 रिलीज हो चुकी है. \'सरकार\' दमदार सरकार, निडर, अपने उसूलों पर चलने वाली और वक्त के साथ अपने दुश्मनों की गिनती में इज़ाफा करती सुभाष नागरे की सरकार नौ साल बाद भी सरकार बढ़ती उम्र के साथ कमज़ोर नहीं बल्कि और परिपक्व होती दिखाई देती है.


'सरकार 3' में सिर्फ अमिताभ दमदार, कहानी बेदम

सरकार 3 की शुरूआत में ही गले और हाथ में रूद्राक्ष की माला लपेटे अपने पुराने चिरपरिचित कपड़ों में लिपटी हवा में हाथ हिलाती, प्रजातंत्र में अपने तंत्र का अहसास कराती 13 साल पुरानी सुभाष नागरे की सरकार महानायक अमिताभ बच्चन के रूप में नज़र आती है. 2005 में जब रामू ने इस सरकार की उत्पत्ति की थी. बाद में पार्ट 2 के रूप में नज़र आई सरकार राज. सरकार का पार्ट वन दर्शकों को खूब पसंद आया. सरकार राज भी ठीक रहा. लम्बे अंतराल के बाद क्या सरकार कमजोर हुई या पहले की ही तरह दमदार है. सरकार 3 में इसी उत्सुकता के साथ दर्शक बॉक्स ऑफिस पहुंचेगा.

सरकार 3 में अमित साध, जैकी श्राफ, मनोज वाजपेयी और यामी गौतम जैसे नए कलाकारों की एंट्री हुई है.

सरकार यानि सुभाष नागरे और उसके एकछत्र साम्राज्य में इस बार एंट्री होती है उसके पोते शिवाजी नागरे (अमित साध) की, जो अपने पिता की मौत को भुला फिर से सरकार के साथ सरकार के ही तरीके से काम करने की मंशा लिए सरकार से जुड़ता है. जाहिर है उसका साथ सरकार के करीबी गोकुल (रोनित रॉय) और उसके साथी को एक आंख नहीं सुहाता.

वहीं शिवाजी की गर्ल फ्रेंड (यामी गौतम) जिसका मकसद सरकार से अपने पिता की मौत का बदला लेना है कहानी में सरकार के दुश्मनों में उभरते नेता देशपांडे (मनोज वाजपेयी) और डॉन माइकल वाल्या (जैकी श्रॉफ) भी अपने तरीके से सरकार के इस साम्राज्य का खात्मा करने का मकसद लिए कहानी को आगे बढ़ाते हैं. लेकिन वो अपने मकसद को कैसे अंजाम देते है और क्या वो इसमें कामयाब हो पाते हैं या नहीं ये तो आपको बॉक्स ऑफिस पर जा कर ही देखना पड़ेगा. लेकिन सरकार 3 के किरदारों की बात करें तो अमिताभ बच्चन एक बार फिर दमदार सरकार के रूप में नजर आते हैं.

उनका अभिनय एक पुरानी वाइन की तरह है जिनमें समय के साथ और ज्यादा ही निखार दिखाई देता है. वहीं शिवाजी नागरे की भूमिका में अमित साध अपने किरदार के साथ न्याय करते नज़र आते हैं. मनोज वाजपेयी को नेता के इसी रूप में दर्शक राजनीति में पहले भी देख चुका है इसलिए किरदार ज्यादा असर नहीं डालता.

वहीं जैकी श्राफ का किरदार गंभीर से ज्यादा हास्यस्पद लगता है. यामी गौतम और रोनित राय भी ठीक ठाक ही लगे. बावजूद इसके स्क्रिनप्ले कमजोर होने और एक दूसरे को कॉम्पलिमेंट नहीं देते. किरदार, दमदार डायलॉग होने के बावजूद भी कहानी उतना प्रभाव नहीं डालती.

फिल्म को देखकर लगता है कि रामू ने ज्यादा मेहनत कैरेक्टर के क्लोजप्स लेने में की है. कई फ्रेम में अमिताभ बच्चन को अभिषेक बच्चन की फोटो के पास खड़ा दिखाया गया है लेकिन कहानी को उससे रिलेट ना करने की कमी खलती है. रामू के अलग-अलग एंगल से लिए शॉट्स कहानी या सिक्वेंस पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डालते.

गोविंदा और सरकार का ब्रैकग्राउंड स्कोर कहानी पर थोड़ा इम्पेक्ट जरूर डालता है. वहीं अमिताभ की आवाज में गणपति आरती दिल को सुकून देती है. लेकिन गैंग वार के सीन्स आदमियों की कमी देखकर लगा कि राम गोपाल इस बार इसमें भी थोड़ी कंजूसी कर गए.

पिछली सरकार को इतने साल बीत जाने के बाद भी अमिताभ बच्चन की पावरफुल और ऐग्रेसिव परफॉर्मेंस ही फिल्म का सबसे पॉजिटिव प्वांइट नजर आता है. इसलिए सरकार को हम देंगे 2 स्टार.

 

कोमल शर्मा


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