समंदर नहीं, एक नया सैलाब लौटा है

Last Updated 03 Jul 2022 12:01:39 AM IST

कौन कहता है कि समंदर तालाब होके लौटा है। मैं तो कहता हूं कि वो सुकरात होके लौटा है किसके लिये इतनी आंखें, अब भी नम हुआ करती हैं अब समन्दर इक नया सैलाब लेके लौटा है। -उपेन्द्र राय (30 जून 2022)


समंदर नहीं, एक नया सैलाब लौटा है

महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम में देवेंद्र फडणवीस को लेकर हो रही ‘मौकापरस्त’ टिप्पणियों का एक दूसरा पक्ष यह भी है जिसे आलोचक जानकर भी उससे अनजान बने रहने का अभिनय कर रहे हैं। यकीनन राजनीतिक तख्तापलट के बाद फडणवीस की जगह मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर एकनाथ शिंदे की ताजपोशी हैरान करने वाली है। बड़े-से-बड़े राजनीतिक पंडितों को भी इस बात का अहसास नहीं रहा होगा। इसमें उन पर संकेतों को समझने में असफलता का दोषारोपण भी ठीक नहीं होगा। व्यावहारिक समझ तो यही कहती है कि जिस शख्स ने इस असंभव से लगने वाले लक्ष्य को संभव कर दिखाया, इनाम भी उसे ही मिलना चाहिए था, लेकिन देश के 19 राज्यों की करीब 60 फीसद से ज्यादा आबादी के ‘विश्वास’ पर राज कर रही बीजेपी को यूं ही ‘पार्टी विद डिफरेंस’ नहीं कहा जाता। हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए बीजेपी ने सरकार बनाने के अपने दावे को शिथिल किया तो पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने भी मुख्यमंत्री पद का त्याग करने में देर नहीं लगाई। असल में तो फडणवीस सत्ता से बाहर रहकर ही महाराष्ट्र के विकास में अपनी भूमिका तय करने के पक्ष में थे, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में वरिष्ठता और लोकप्रियता के उच्चतम सोपान पर आसीन होने के बावजूद उन्होंने बड़े मन का प्रमाण देकर पार्टी नेतृत्व की इच्छा को शिरोधार्य कर पूरी विनम्रता के साथ सरकार में उपमुख्यमंत्री पद को स्वीकार किया। जिस देश में पाषर्द अपना टिकट छोड़ने को तैयार नहीं होते, वहां फडणवीस का यह त्याग वाकई दुर्लभ है।

मेरा मानना है आलोचक बीजेपी की कार्यसंस्कृति और उसके समर्पित सिपाही के रूप में फडणवीस की भूमिका को लेकर वही गलती दोहरा रहे हैं जो उन्होंने महाराष्ट्र में सत्ता की तस्वीर का पूर्वानुमान लगाने में की है। कांग्रेस की टिकट पर राज्यसभा के नये-नवेले सदस्य बने इमरान प्रतापगढ़ी के फडणवीस पर तंज कसते शेर-वो आंखों में चुभा टूटा हुआ इक ख्वाब बन करके, समंदर लौट तो आया मगर तालाब बन करके - को मैं इसी श्रेणी में रखना चाहूंगा।

देवेंद्र फडणवीस को ‘टूटा ख्वाब’ और ‘समंदर की जगह तालाब’ बताने के पीछे इमरान प्रतापगढ़ी की अपनी सोच हो सकती है, लेकिन मेरी समझ में फडणवीस मौजूदा सियासत के ‘सुकरात’ हैं। सुकरात महान दार्शनिक थे ये सर्वविदित है लेकिन उन्होंने आधुनिक पश्चिमी सभ्यता की नींव भी रखी थी। वर्तमान दौर की राजनीति, खासकर महाराष्ट्र में फडणवीस इसके प्रतीक बन कर उभरे हैं। इसीलिए महाराष्ट्र के घटनाक्रम पर भले ही देश और राज्य की जनता में वैचारिक ध्रुवीकरण दिखे, लेकिन महाराष्ट्र को जानने-समझने वाले और भारत में बुनियादी विकास के समर्थक मान रहे हैं कि सत्ता के गलियारे में फडणवीस की वापसी अच्छी खबर है।  महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में फडणवीस का कार्यकाल इस ‘खुशखबरी’ का आधार है। महाराष्ट्र में 2014 से 2019 का कालखंड बुनियादी ढांचे में आए परिवर्तन का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। इस दौरान वर्षो से लटकी परियोजनाएं पुनर्जीवित हुई और मुंबई जैसे महानगर के परिदृश्य को भी बदलने वाली कई परिवर्तनकारी शहरी परियोजनाओं की नींव रखी गई। इसके लिए फडणवीस ने एक सोची-समझी रणनीति के तरह वॉर रूम का गठन किया और इसके माध्यम से बुनियादी ढांचे की करीब 20 प्रमुख परियोजनाओं को गति देने और एक निर्धारित समय सीमा में पूरी करने का लक्ष्य तय किया।

फडणवीस की पहल पर ही तटीय सड़क, नवी मुंबई हवाई अड्डे, मुंबई की दूसरी और तीसरी मेट्रो लाइन, मुंबई ट्रांस-हार्बर लाइन और नागपुर मेट्रो सहित 10 बड़ी बुनियादी परियोजनाओं की पहचान कर इनके काम में रफ्तार लाई गई। पाठकों के लिए मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (एमटीएचएल) परियोजना का उदाहरण बड़ा दिलचस्प हो सकता है। इस परियोजना का विचार सामने आने के बाद यह 53 साल तक अटकी रही। इस दौरान 15 मुख्यमंत्री बदल गए और बीते बारह वर्षो में निविदा के चार प्रयास असफल साबित रहे। यह फडणवीस ही थे जो आखिरकार इस परियोजना को जमीन पर उतारने में कामयाब हुए, लेकिन महाविकास अघाड़ी सरकार के पिछले ढाई साल के कार्यकाल में एक बार फिर महाराष्ट्र का विकास ‘कछुआ चाल’ के पुराने दौर में लौटने लगा था। परियाजनाएं लगातार पिछड़ रही थीं और केवल उन पर लागत ही नहीं बढ़ रही थी बल्कि प्रदेश की आम जनता की सुविधाओं का इंतजार भी लंबा खिंचता जा रहा था। आज देश जिस विकास की रफ्तार से दौड़ रहा है उसमें महाराष्ट्र को तेजी से एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का पैमाना हासिल करने के लिए सड़कों, रेलवे, मेट्रो, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, पर्यटन और कम लागत वाले आवासों से जुड़ी परियोजनाओं को बड़े पैमाने पर चालू करने की जरूरत है, लेकिन दुर्भाग्य से पिछले ढाई साल में इस दिशा में ज्यादा प्रयास नहीं हो सके।

सत्ता बदलने के साथ अब महाराष्ट्र में विकास की सूरत बदलने की उम्मीद भी बनी है। इस मामले में खास तौर पर मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन परियोजना का भी जिक्र करूंगा जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इसे पूरा करने की समय सीमा 15 अगस्त 2022 तय की गई थी, लेकिन अघाड़ी सरकार में इस योजना को लेकर बरती गई उदासीनता से अब यह तो संभव नहीं लग रहा है लेकिन इस परियोजना के दिन बहुरने की आशा जरूर बलवती हो गई है।

एक दशक से भी कम समय में महाराष्ट्र में ‘विकास पुरुष’ की छवि बनाने वाले फडणवीस की कार्य संस्कृति की प्रशंसा खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते रहे हैं। केंद्र में नरेन्द्र और राज्य में देवेंद्र वाली उनकी मिसाल फडणवीस की कार्यशैली पर लगी विसनीयता की एक बड़ी मुहर है। केवल प्रधानमंत्री ही नहीं, फडणवीस भारतीय जनता पार्टी में अन्य वरिष्ठों और सहयोगियों के बीच भी सम्माननीय और स्वीकार्य हैं। इसकी एक वजह यह है कि चाहे कितने भी घोटाले हुए हों, फडणवीस ने एक साफ-सुथरे राजनेता के रूप में अपनी छवि बरकरार रखी। उनके बारे में एक बात और मशहूर है। फडणवीस अगर कुछ बात कहते हैं, तो अपनी बात रखते भी हैं। इसलिए भी यकीन रखिए कि अबकी बार समंदर नहीं, एक नया सैलाब लौटा है।

उपेन्द्र राय


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