आर्थिक विकास के अगले आठ साल

Last Updated 21 May 2022 06:41:27 AM IST

बीती 16 मई को केंद्र में राजनीतिक बदलाव के 8 साल पूरे हो गए। इस बदलाव को देश दुनिया में भारत के लिए आमूल-चूल परिवर्तन के रूप में देखा गया। उम्मीदों और अपेक्षाओं के रथ पर सवार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व पर देश ने 2019 में दोबारा भरोसा भी जताया।


आर्थिक विकास के अगले आठ साल

इन सबके बीच स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे देश के सामने कई चुनौतियां दस्तक दे रही हैं। दो साल पहले शुरू हुई कोरोना महामारी ने सभी देशों का गुणा-गणित बिगाड़ दिया। भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा। खासकर अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर। तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद सवाल है कि क्या वर्तमान दशक के समाप्त होते-होते हम खुद को वि पटल पर बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित कर पाएंगे?

दशक समाप्त होने के लिहाज से हमारे पास अभी आगे 8 साल का वक्त और है, और चुनौती उस सफर को आगे ले जाने की है, जो इस सरकार के कार्यकाल में 8 साल पहले शुरू हुआ था। 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत की थी तब भारत वि की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश था। तब से अब तक 40 फीसद की तरक्की करते हुए भारत छठे पायदान पर पहुंच गया है। इस अवधि में 53 फीसद ग्रोथ के साथ केवल चीन ही हम से आगे रहा। लेकिन भविष्य में स्थितियां तेजी से बदलने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में 2022 में भारत के लिए 8.2 फीसद की काफी मजबूत वृद्धि का अनुमान लगाया है, जो चीन के लिए अनुमानित 4.4 फीसद की तुलना में लगभग दोगुनी तेज है।

सकारात्मक खबर देता आकलन
वैिक आर्थिक सेहत पर आईएमएफ के इस ताजे आकलन में भारत के लिए अनुमानित उच्च विकास दर केवल हमारे देश के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए सकारात्मक खबर है। इसका बड़ा श्रेय कोविड-19 के सफल व्यापक आर्थिक प्रबंधन को दिया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत सुधार हुआ है। इतना कि जिसके कारण देश मौजूदा यूक्रेनी संकट में भी आर्थिक नतीजों का सामना करने के लिए बेहतर स्थिति में है जबकि वैिक अर्थव्यवस्था इस झटके के कारण बहुत मुश्किल हालात में पहुंच गई है। यह प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत की पहल को मजबूती देता है जिसके कारण देश ने बिना झुके, बिना ठिठके महामारी के कहर को न केवल झेला, बल्कि उसमें भी खुद के साथ-साथ समूचे वि को आगे लेकर जाने का मार्ग प्रशस्त किया है।

सवाल यह है कि यह यात्रा आगे सुगम होने वाली है या इसमें अभी और संघर्ष बाकी है? अगले आठ साल में हमारी आर्थिक दिशा और दशा क्या रहने वाली है? साल की शुरु आत में आई आईएचएस मार्किट की रिपोर्ट इस पर काफी रोशनी डालती है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत साल 2030 तक जापान को पीछे छोड़कर एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और जर्मनी-ब्रिटेन से आगे निकलकर दुनिया की नंबर-3 की अर्थव्यवस्था बन सकता है। इस दौरान भारत की जीडीपी 2021 की 2.7 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 8.4 ट्रिलियन डॉलर हो जाने का अनुमान है। आर्थिक विस्तार की लंबी अवधि के इस दृष्टिकोण को कई प्रमुख वजहों से ताकत मिल रही है। एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक कारण भारत का बड़ा और तेजी से बढ़ रहा मध्यम वर्ग है, जो उपभोक्ता खर्च को चलाने में मदद कर रहा है। अनुमान है कि इससे देश का खपत व्यय 2020 के 1.5 ट्रिलियन डॉलर के मुकाबले 2030 में बढ़कर 3 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार के साथ-साथ नई औद्योगिक क्रांति ने भारत को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए विनिर्माण, बुनियादी ढांचे और सेवाओं सहित कई क्षेत्रों में निवेश का महत्त्वपूर्ण केंद्र बना दिया है। संयोग से भारत के पास अपनी कुशल और अकुशल श्रम शक्ति के आकार के आधार पर वैिक कंपनियों को आकर्षित करने का अवसर भी है क्योंकि कोविड-19 के अनुभवों के बाद वे खुद चीन के बाहर विकल्पों की तलाश में हैं।

महामारी ने सिखाए सबक
दिलचस्प बात यह है कि महामारी ने अगर हमारी विकास यात्रा को धीमा किया, तो इसने हमें नये सबक भी सिखाए। सप्लाई चेन में लचीलापन लाने के सरकार के दूरदर्शी फैसले ने आज भारत को वैिक विनिर्माण केंद्र बनने की दहलीज पर ला खड़ा किया है। यह लचीलापन मेक इन इंडिया से लेकर प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) जैसे प्रमुख कार्यक्रमों में सरकार की ओर से की गई विभिन्न पहल में भी दिखता है। 14 क्षेत्रों में लगभग 37 अरब डॉलर वाली पीएलआई योजना ने विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत के दावे को और सशक्त किया है। साल 2030 के ही आउटलुक से जुड़ी र्वल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट बताती है कि इस पहल के कारण भारत अगले एक दशक में विनिर्माण के क्षेत्र में 1 ट्रिलियन डॉलर के अपने लक्ष्य में 500 बिलियन डॉलर और जोड़ सकता है। इसलिए बात केवल हमारे आत्मानिर्भर होने की नहीं, बल्कि वैिक बाजार की हम पर निर्भरता को पूरा करने की भी है।

अपार संभावनाएं अपार प्रश्न भी खड़े करती हैं। क्या विनिर्माण क्षेत्र अगले दशक के आर्थिक विकास में वही भूमिका निभा सकता है जो सेवा क्षेत्र ने पिछले दो दशकों में विकास का नेतृत्व कर निभाई? देश इस यात्रा के लिए तैयार है? लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाने से पहले हमें कम-से-कम तीन क्षेत्रों में काम करने की जरूरत है। इस क्रम में पहली वरीयता श्रम सुधार और रोजगार की होनी चाहिए। बीते दिनों में रोजगार के मोर्चे पर देश ने चार दशकों से भी अधिक समय के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर को देखा है। जनसांख्यिकीय लिहाज से इसने युवा देश होने की हमारी पहचान से लेकर ताकत और विकास की तमाम संभावनाओं पर कुठाराघात किया है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट के अनुसार 2023 और 2030 के बीच सकल घरेलू उत्पाद की 8-8.5 फीसद वृद्धि हासिल करने के लिए शुद्ध रोजगार दर को 2023 से 2030 तक प्रति वर्ष 1.5 फीसद बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार को खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे श्रम प्रधान सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए उपाय करने होंगे। अच्छी बात यह है कि सरकार न केवल इस दिशा में सोच रही है, बल्कि उसकी सोच में श्रम सुधारों को भी पर्याप्त जगह मिलती दिख रही है।

दूसरी वरीयता समावेशी और समन्वित विकास को गति देने के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने की होनी चाहिए। उच्च गुणवत्ता वाली भूमि, लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी, बिजली की समुचित सप्लाई आज के दौर की प्रतिस्पर्धी सप्लाई चेन और सफल औद्योगिक ढांचे की आवश्यकता बन चुकी है। राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (एनआईसीडीपी) और गतिशक्ति में इसी तरह की पहल दिखती है, लेकिन इनका फायदा भी तभी मिलेगा जब इन योजनाओं को समन्वित और समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाए।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और भारत
साल 2030 के लिए तय लक्ष्य पूरा करने के लिए हमें तीसरी वरीयता के रूप में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की परिकल्पना को भी सच्चे अथरे में जमीन पर उतारना होगा। इसके तहत निवेशकों के लिए अनुकूल नीतियां बनाने और वैिक नेटवर्क के साथ तालमेल के लिए उनकी मदद करने जैसे कदम शामिल हैं। राष्ट्रीय एकल खिड़की पण्राली (एनएसडब्ल्युएस) और डीपीआईआईटी द्वारा संचालित पोर्टल इस दिशा में अच्छी पहल है। लेकिन निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए घरेलू मोर्चे पर शांति और सौहार्द का माहौल बनाए रखना भी महत्त्वपूर्ण होगा। वैसे अशांति को लेकर आमजन और कारोबारियों की समझ में थोड़ा बुनियादी फर्क होता है। दंगे-फसाद पर समाज तुरंत प्रतिक्रिया देता है, लेकिन निवेशक-कारोबारी इससे तब तक अप्रभावित बने रहते हैं, जब तक इसकी आंच उनके दरवाजे तक नहीं पहुंच जाती। इसे दंगे-फसाद के समर्थन में कोई सफाई नहीं समझा जाना चाहिए क्योंकि देर-सबेर समाज के हर तबके को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।       

एक बुनियादी समस्या और है, जो अगले दशक को अपना बनाने की राह में रोड़ा डाल सकती है। हमारा 87 फीसद मानव कार्यबल आर्थिक दृष्टि से बेहद कम उत्पादक कायरे में फंसा हुआ है। इसका बड़ा हिस्सा कृषि और 20 से कम श्रमिकों वाले अति सूक्ष्म उद्यमों में है। परंपरागत कृषि के माध्यम से किसानों की आय अब नहीं बढ़ने जा रही है। इनके लिए भी विनिर्माण और सेवाओं में नये अवसर पैदा करने की चुनौती रहेगी। ऐसे में अगले 10 साल भारत के आर्थिक इतिहास में परिवर्तनकारी हो सकते हैं, क्योंकि अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ, तो भारत 2030 और 2040 के दशक में आर्थिक महाशक्ति बनने के अपने सपने को पूरा कर सकता है। इस मायने में 2020 के दशक के बचे आठ साल बेहद महत्त्वपूर्ण होंगे जिसमें सभी प्रयासों का एक ही लक्ष्य होगा जो खोया है, उसे न केवल दोबारा पाना है, बल्कि सबसे आगे भी ले जाना है।

उपेन्द्र राय


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