एक्शन प्लान से होगा कोरोना का काम-तमाम

Last Updated 09 May 2021 12:13:21 AM IST

कोरोना की दूसरी लहर ने देश में ऐसा कोहराम मचा रखा है कि कोई भी उसके असर से बच नहीं पा रहा है।


एक्शन प्लान से होगा कोरोना का काम-तमाम

यहां तक कि कल तक जो कोरोना घर-परिवारों में पैठ बना कर बैठा था, उसने अब कोर्ट-कचहरी में भी घुसपैठ कर ली है। साधारण तौर पर जब हमारे देश में किसी विवाद का हल नहीं निकलता, तो ‘कोर्ट में देख लेने वाली बात’ बड़ी आम है, लेकिन कोरोना का जोर ऐसा है कि बड़े-बड़े मसले सुलझाने वाली हमारी अदालतें सख्त टिप्पणियों के बावजूद बेबस दिखाई दे रही हैं। 

कोरोना के बढ़ते मामलों और ऑक्सीजन से लेकर, अस्पतालों में बेड और दवा की किल्लत को लेकर देश की अदालतें पिछले कई दिनों से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को जमकर फटकार लगा रही हैं। इनमें से कुछ मामले जनहित याचिकाओं से निकल कर आए हैं, तो कई मामलों में तो अदालतों ने खुद ही हालात का संज्ञान लेकर सरकारों से जवाब तलब किया है। अदालतें कारण बताओ नोटिस जारी कर रही हैं, अधिकारियों को जेल भेजने की चेतावनी जारी कर रही हैं, आदेश की तामील न होने पर सरकारों से पूछ रही हैं कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना का केस दर्ज किया जाए? दिल्ली, गुजरात, पटना, कर्नाटक सभी जगह हाई कोर्ट की नाराजगी का आलम एक जैसा दिख रहा है।

इन सबसे ऊपर सर्वोच्च अदालत तो केंद्र सरकार को उसकी कार्यशैली और सलाह के बावजूद कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने पर लगभग रोज ही फटकार लगा रही है। चिंताजनक बात यह है कि जिन अदालतों में देश की जनता अपने तमाम सवालों के जवाब ढूंढती है, उनकी इतनी सख्त टिप्पणियों के बावजूद जमीन पर हालात में कोई खास बदलाव आता नहीं दिख रहा है। और यह हाल तब है जबकि देश में अभी दूसरी लहर का पीक भी नहीं आया है और तीसरी लहर के आने की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। दुनियाभर का अनुभव है कि दूसरी लहर की तुलना में तीसरी लहर का प्रभाव ज्यादा मारक होगा। सर्वोच्च अदालत ने इस पर भी सरकार से उसका एक्शन प्लान मांग लिया है। अदालत ने खास तौर पर बच्चों को लेकर चिंता जताई है और पूछा है कि जब बच्चे बीमार होकर अस्पताल जाएंगे, तो उनके पालकों को भी साथ जाना होगा, इसके लिए सरकार क्या तैयारी कर रही है? हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सर्वोच्च अदालत सरकार को केवल लताड़ ही लगा रही है। तीसरी लहर को लेकर उसने सरकार को कुछ सुझाव भी दिए हैं, जिसमें सबसे प्रमुख है टीकाकरण कार्यक्रम को तेजी से पूरा करने की जरूरत।

इस बात में कोई दो-राय नहीं कि मौजूदा हालात से निकलने में टीकाकरण ही सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता है। अमेरिका इसकी जीती-जागती मिसाल है। तीन महीने पहले तक वहां भी पल्रय जैसे हालात बने हुए थे। जो बाइडेन की कमान में जब नये प्रशासन ने कामकाज संभाला तो उसने टीकाकरण को संजीवनी की तरह लिया। वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को 100 दिन में 100 मिलियन खुराक बनाने का लक्ष्य दिया और फिर इसे बढ़ाकर 200 मिलियन कर दिया। वैक्सीन उत्पादन की रफ्तार कम न पड़े, इसके लिए कच्चे माल का निर्यात बंद कर दिया। आज हालत यह है कि एक बड़ी आबादी को टीका लगाकर अमेरिका ने कोरोना को इतना काबू में कर लिया है कि वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके लोगों के लिए अब मास्क पहनने की जरूरत खत्म हो गई है। चार जुलाई को अमेरिका की आजादी का दिन है और देश ने इस दिन को कोविड से मुक्ति का दिन मनाने का लक्ष्य रखा है।

अमेरिका की इस कामयाबी में एक बात ऐसी है, जो शायद उसके लिहाज से सामान्य हो, लेकिन भारत के संदर्भ में इसकी खास अहमियत है। दरअसल, अमेरिका ने टीकाकरण कार्यक्रम को लालफीताशाही से पूरी तरह मुक्त रखा है। नागरिकता के दस्तावेज से ज्यादा जरूरी लोगों की जान बचाना है और इसके लिए हर व्यक्ति को टीका लगाया जा रहा है, भले ही वो गैर-कानूनी तरीके से अमेरिका में रह रहा हो और यह कहानी केवल अमेरिका की नहीं है। ब्रिटेन, इजराइल जैसे तमाम विकसित देशों ने कोरोना की तांडव-लीला के बीच भी अपने-अपने टीकाकरण कार्यक्रम में जरा-भी ढील न आने देकर कोरोना पर काबू पाया है।

ऐसा नहीं है कि भारत सरकार टीकाकरण की अहमियत से वाकिफ नहीं है। वरना न तो वह वैक्सीन उत्पादन को बढ़ावा देने के इतने जतन करती, न दुनिया भर की वैक्सीन के लिए देश के दरवाजे खोलती, लेकिन फिर भी अगर टीकाकरण कार्यक्रम हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि व्यवस्था में कोई खामी तो है। यह समस्या दूसरे कई इंतजामों को लेकर भी है। याद करिए जब ऐसे हालात चीन के सामने थे, तो उसने क्या किया था? चीन ने अपने संसाधनों का तेजी से इस्तेमाल किया, नये अस्पताल बनाए, जरूरतमंदों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया, बेड बढ़ाए, ऑक्सीजन के बफर स्टॉक तैयार किए। हमारे यहां अभी भी इस तरह का काम नहीं हो रहा है। हो रहा होता, तो अदालतें क्यों दखल देतीं? इसलिए कुछ काम ऐसे हैं जिन पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है। हमारा स्वास्थ्य अमला मार्च, 2020 से लगातार युद्ध स्तर पर काम कर रहा है।

बीते एक वर्ष से दिन-रात अपनी सेवाएं देते-देते अब वो पूरी तरह थक चुका है, इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में उसी रफ्तार में उनसे स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर क्रियान्यवयन की उम्मीद करना ज्यादती होगी। ताजा हालात और भविष्य की आशंकाओं को देखते हुए उसकी जगह लेने के लिए एक समानांतर व्यवस्था खड़ी करना जरूरी हो गया है। देश में करीब डेढ़ लाख ऐसे डॉक्टर्स हैं, जो एग्जाम की तैयारी में हैं। करीब ढाई लाख नर्स घरों में बैठी हैं। ये वो लोग हो सकते हैं, जो तीसरी लहर के वक्त अपनी सेवाएं देकर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर सकते हैं। इसी तरह अफरा-तफरी से बचने के लिए हमें अभी से तीसरी लहर के मुकाबले के लिए मेडिकल ऑक्सीजन का बफर स्टॉक बनाना शुरू कर देना चाहिए।

बच्चे अभी तक कोरोना की पहुंच से बाहर थे, लेकिन तीसरी लहर की बात शुरू होने से अचानक वो केंद्र में आ गए हैं। इसलिए अब उन्हें भी वैक्सीन का सुरक्षा कवच पहनाने में देर नहीं करनी चाहिए। सीरम इंस्टीट्यूट ने इसके लिए अक्टूबर तक की डेडलाइन रखी है, लेकिन भारत बॉयोटेक की बच्चों की वैक्सीन अभी ट्रायल स्टेज पर ही है। ऐसे में इस दिशा में और तेजी लाए जाने की जरूरत है।

अगर समय रहते हम इन तमाम उपायों के आसपास कोई इमरजेंसी प्लान तैयार कर पाते हैं, तो संभव है कि तीसरी लहर हमें उस तरह परेशान न कर पाए, जैसा अंदेशा जताया जा रहा है। सरकार भी यही भरोसा दिला रही है कि यदि टेस्टिंग, ट्रीटिंग और कंटेनिंग की उसकी गाइडलाइंस पर देश चलेगा, तो तीसरी लहर के व्यापक असर को निस्संदेह रोका जा सकता है।

उपेन्द्र राय


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