मिसाल से सबक बना अमेरिका
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद से एक-के-बाद-एक कई विलक्षण घटनाएं हुई हैं।
मिसाल से सबक बना अमेरिका |
छह जनवरी को कैपिटल हिल में जो ‘जलजला’ आया था, वो दरअसल निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हार के बाद अमेरिकी समाज में पिछले दो महीनों से करीब-करीब रोजाना हो रही छोटी-छोटी उथल-पुथल का नतीजा था। अब ट्रम्प के खिलाफ दूसरे महाभियोग प्रस्ताव से देश के संवैधानिक इतिहास में अब तक के सबसे विचित्र हालत बन गए हैं। इस प्रस्ताव के जरिए अमेरिकी कांग्रेस एक ऐसे शख्स को उसके पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करेगी, जो प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही पद छोड़कर जा चुका होगा।
इस विचित्र परिस्थिति को लेकर ज्यादातर डेमोक्रेट सांसद यही तर्क दे रहे हैं कि महाभियोग लाने के पीछे उनका मुख्य मकसद भविष्य में किसी भी संवैधानिक पद पर ट्रम्प की दावेदारी को हमेशा के लिए अयोग्य साबित करना है। इससे एक और विचित्र स्थिति बन गई है। महाभियोग का मुख्य मकसद दोष साबित करना और पद से हटाना होता है, अयोग्यता इसकी वैकल्पिक सजा होती है, लेकिन ट्रम्प के ट्रायल में विकल्प वाला लक्ष्य ही असल में मुख्य लक्ष्य बन गया है।
इसकी प्रक्रिया शुरू भी हो गई है। बीते बुधवार को ट्रम्प के खिलाफ अमेरिकी सदन की प्रतिनिधि सभा में 197 के मुकाबले 232 वोट से महाभियोग प्रस्ताव पारित हो गया। 10 रिपब्लिकन सांसदों ने भी प्रस्ताव के पक्ष में वोट डालकर जता दिया है कि हवा का रुख अब पलट चुका है। ट्रम्प के लिए हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि बचाव के लिए उन्हें कोई वकील तक नहीं मिल रहा है। पिछले महाभियोग में उनके साथ ख़्ाड़ी लीगल टीम ने इस बार पल्ला झाड़ लिया है। कई दूसरे वकील भी ट्रम्प की लड़ाई लड़ने के लिए इच्छुक नहीं हैं। कुछ ने तो यहां तक कहा है कि ट्रम्प ने जो किया, वो बचाव के लायक नहीं है।
महाभियोग प्रस्ताव का अगला पड़ाव सीनेट है, जहां ट्रम्प पर ट्रायल कब होगा, यह अभी साफ नहीं है। वैसे भी सीनेट 19 जनवरी से पहले नहीं बैठेगी। इसका मतलब ट्रायल अगर बेहद जल्दी भी शुरू होता है, तो वो 19 जनवरी के बाद का पहला दिन होगा यानी 20 जनवरी, जो वैसे भी ट्रम्प की औपचारिक विदाई और जो बाइडेन की ताजपोशी का दिन होगा। हालांकि कुछ वरिष्ठ डेमोक्रेट सांसद यह भी चाह रहे हैं कि महाभियोग प्रस्ताव की तारीख कुछ दिन आगे खिसका दी जाए, ताकि बाइडेन को अपने कार्यकाल के शुरु आती दिनों में प्रशासनिक प्राथमिकताओं पर फोकस करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाए। वैसे भी तब तक जॉर्जिया से चुन कर आए दोनों सांसद भी शपथ ले लेंगे और क्योंकि दोनों डेमोक्रेट हैं, तो सीनेट में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन का संख्या बल 50-50 पर आ जाएगा। ऐसे में जब कमला हैरिस भी उप राष्ट्रपति पद की शपथ ले लेंगी, तो पलड़ा डेमोक्रेट की तरफ झुक जाएगा, लेकिन ट्रम्प को दोषी साबित करने और पद से हटाने के लिए सीनेट के दो-तिहाई वोट की जरूरत पड़ेगी। 51-50 की मामूली बढ़त से यह संभव होता नहीं दिख रहा, इसके लिए रिपब्लिकन खेमे में बड़े पैमाने पर ‘मन परिवर्तन’ की जरूरत पड़ेगी। ऐसा भी नहीं है कि रिपब्लिकन पार्टी में ट्रम्प के लिए सहानुभूति का अकाल पैदा हो गया हो। अगर उपराष्ट्रपति माइक पेंस संविधान के 25वें संशोधन का इस्तेमाल करने के लिए राजी हो जाते, तो ट्रम्प को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग लाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। यह साल 2019 के उन हालातों के एकदम विपरीत है, जब ट्रम्प के खिलाफ पहली बार महाभियोग लाया गया था। तब डेमोक्रेट ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग लाने की जल्दी में थे, लेकिन हाउस की स्पीकर नैन्सी पेलोसी को फैसला लेने में पांच महीने लग गए। इस बार वही काम एक दिन में हो गया, जिसने ट्रम्प को अमेरिकी इतिहास का ऐसा पहला राष्ट्रपति बना दिया, जिसके खिलाफ दो बार महाभियोग लाया गया है। उनसे पहले देश के 17वें राष्ट्रपति एंड्र्यू जॉनसन और 42वें राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के खिलाफ भी महाभियोग लाया गया था।
पिछली बार जब ट्रम्प ने महाभियोग प्रस्ताव का सामना किया था, तब भी उन पर गंभीर आरोप थे। उन्होंने उस वक्त तक भूतपूर्व उप-राष्ट्रपति हो चुके जो बाइडेन के बेटे के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए कथित तौर पर अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ एक मिलिट्री डील साइन कर ली थी। तब ट्रम्प के खिलाफ जांच पूरी होने में तीन महीने का वक्त लग गया था। इस बार क्योंकि घटना के वक्त प्रतिनिधि सभा के सभी सदस्य कैपिटल हिल में ही मौजूद थे, इसलिए हो सकता है कि स्पीकर नैन्सी पेलोसी जांच समिति या सुनवाई की प्रक्रिया में जाने के बजाय सीधे सदन के फ्लोर पर ही वोट करवा लें।
ट्रम्प बेशक दो बार इस ‘अपमान’ को झेलने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए हों, लेकिन वो सजा पाने वाले पहले राष्ट्रपति भी बनेंगे, यह अभी दावे से नहीं कहा जा सकता। पिछले तीनों मौकों पर तो महाभियोग प्रस्ताव कम संख्या बल के कारण गिर गया, लेकिन इस बार हालात अलग हैं। पिछले मौकों पर जब-जब राष्ट्रपतियों के खिलाफ महाभियोग चला, वो पद पर बने हुए थे। यह पहला मौका है, जब राष्ट्रपति के खिलाफ पद से हटने के बाद महाभियोग का मुकदमा चलेगा। अगर ट्रम्प दोषी पाए जाते हैं, तो उनकी योजना के मुताबिक वो साल 2024 में दोबारा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे और उनके सियासी कॅरियर पर हमेशा के लिए फुलस्टॉप लग जाएगा, लेकिन अमेरिका के लिए महाभियोग का महत्त्व ट्रम्प के भविष्य की चिंता से कहीं ज्यादा है। दरअसल, इससे अमेरिका के भविष्य का सवाल भी जुड़ा है। बहुत से अमेरिकी मानते हैं कि महाभियोग का कामयाब होना यह संदेश देने के लिए भी जरूरी है, कि भविष्य में कोई भी राष्ट्रपति अमेरिकी शासन के खिलाफ बगावत करने की हिमाकत न कर सकें, लेकिन क्या केवल इतने आश्वासन भर से अमेरिका को कैपिटल हिल कांड के दाग से मुक्ति मिल जाएगी?
कैपिटल हिल जैसी हिंसा को अंजाम देने वाली कट्टरता रातों-रात पैदा नहीं होती। ऐसे जुनूनी लोगों को कट्टरता के चक्रव्यूह से निकालकर वापस लाना भी साधारण काम नहीं होता। ऐसी कोशिश सफल ही होगी, इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती। छह जनवरी को फसाद के दौरान ट्रम्प समर्थक जिस तरह के झंडे लहरा रहे थे और एक-दूसरे को हाथों के जरिए कोड लैंग्वेज में संकेत दे रहे थे, उससे उनके नफरती समूहों से संबंध और हिंसक विचारधारा के कट्टर समर्थक होने का स्पष्ट संदेश मिल रहा था। यह याद रखना जरूरी है कि ऐसे लोग जिनकी साधन होने के बावजूद पढ़ने-लिखने में कोई दिलचस्पी नहीं होती, जो सच्ची खबरों से दूरी बना कर रखते हैं, विरोधी विचारधारा से विमर्श करना जरूरी नहीं समझते, उन्हें उनके हिंसक नेता का कट्टरवाद एक दिन बलि का बकरा बना ही लेता है।
आज का अमेरिका अपने निवर्तमान राष्ट्रपति की ऐसी ही हिंसक चाशनी में लिपटे राष्ट्रवाद और उसके अशिक्षित अंधभक्तों की जुनूनी महत्त्वाकांक्षा की सजा भुगतने के लिए अभिशप्त है। शायद यही वो वजह है कि कल तक जो अमेरिका दुनिया की नजरों में लोकतंत्र की मिसाल पेश करता था, वही आज सत्ता हथियाने के लिए हथियार बने अपने भीड़तंत्र की वजह से कई देशों के लिए सबक बन गया है।
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