मोदी नीति का कमाल, चीन पर दुनिया ’लाल‘

Last Updated 26 Jul 2020 01:18:56 AM IST

पूर्वी लद्दाख में अतिक्रमण के बाद भारत से बार-बार कूटनीतिक मात खाने के बावजूद चीन अपना अड़ियल रु ख छोड़ने को तैयार नहीं है।


मोदी नीति का कमाल, चीन पर दुनिया ’लाल‘

शुक्रवार को डब्ल्यूएमसीसी की बैठक में चीन ने एलएसी पर विवादित इलाकों में शांति बहाल करने की बात तो की, लेकिन वहां से पीछे हटने से मना कर दिया। उल्टे उसने पैंगोंग झील के पास फिंगर 4 इलाके में 40 हजार जवान तैनात कर दिए। डब्ल्यूएमसीसी को खास तौर पर सीमा विवाद के मामले में समन्वय और समझौते के लिए बनाया गया है। शुक्रवार को उसकी तीसरी बैठक थी। इससे पहले दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर की चार बैठकों में भी कोई ठोस पहल नहीं हो पाई। हर बैठक में चीन पीछे हटने की जुबान देने के बाद अपने ही वादे से मुकरता रहा, जिसके कारण सीमा पर तनाव बरकरार है।

राजस्थान में सियासी उठापटक के शोर में भले ही दोनों देशों की तनातनी मीडिया में कहीं गुम हो गई थी, लेकिन हकीकत यही है कि सीमा पर हालात अभी भी विकट हैं। अब तक की बातचीत में चीन की मंशा साफ नहीं हो पाई है और ऐसा लगता है कि वो इस मामले को लंबा खींचकर वहां अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाना चाहता है। ऐसे में गतिरोध तोड़ने के लिए आने वाले दिनों में हमारी ओर से एक बार विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत की पहल देखने को मिल सकती है। पिछले रविवार को ऐसी ही एक बातचीत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और चीनी विदेश मंत्री के बीच हुई थी, जिसके बाद डोगरा, गलवान और हॉट स्प्रिंग्स से चीनी सेनाएं पीछे हटी थीं। पिछले अनुभवों से हमने सीखा है कि चीन के साथ बॉर्डर डिप्लोमेसी में जरा-भी हीला-हवाली हमारे लिए अच्छी नहीं रही है क्योंकि इसमें जो समय जाया होता है, उसमें चीन चालाकी दिखाते हुए अपनी सेना को मजबूत कर लेता है। 

हालांकि चीन के मिजाज और भारत के लिहाज से सीमा पर इस बार हालात अलग दिख रहे हैं। चीन किसी इलाके में एक कदम आगे बढ़ा रहा है, तो दूसरे इलाके में उसे दो कदम पीछे हटने के लिए मजबूर भी होना पड़ रहा है। अब तक जो आक्रामकता चीन की पहचान हुआ करती थी, वो इस बार गीदड़भभकी में बदली दिख रही है। इसकी बड़ी वजह चीन की वैश्विक घेराबंदी है, जिसकी बुनियाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ग्लोबल डिप्लोमेसी को माना जा रहा है। चीन कल तक दुनिया के साथ-साथ भारत को भी मौके-बेमौके आंख दिखा दिया करता था, लेकिन प्रधानमंत्री की अगुवाई में भारत ने अब कई मोचरे पर उसकी नकेल कस दी है। इसमें से एक मोर्चा तो एलएसी का ही है, जहां चीन को उसकी जुबान में ही जवाब देने के लिए भारत लगातार अपनी सैन्य ताकत में इजाफा कर रहा है। एलएसी पर इस बार भारतीय वायुसेना ने जबरदस्त तैयारी की है।

वायुसेना ने सुखोई, जगुआर, मिग और मिराज जैसे लड़ाकू विमानों को रणनीतिक रूप से अहम ठिकानों पर तैनात कर दिया है। चंद सेकेंड में दुश्मन के बख्तरबंद टैंक से लेकर सेना के कैम्प को तबाह कर देने वाले अपाचे हेलीकॉप्टर भी लगातार सीमा पर उड़ान भर रहे हैं, तो टी-90 टैंक लगातार एलएसी की निगरानी कर रहे हैं। सोने पर सुहागा यह है कि भारत जल्द ही एलएसी पर दुनिया का सबसे खतरनाक लड़ाकू विमान राफेल तैनात करने जा रहा है। हमारे राफेल पर हैमर मिसाइल भी लगी होगी जो इसकी धार को और ताकतवार बना देगी। हैमर मिसाइल 60 से 70 किलोमीटर दूर से ही मजबूत से मजबूत बंकर को निशाना बना सकती है। राफेल की तैनाती पहाड़ों में युद्ध लड़ने में वायुसेना की महारत को और बढ़ा देगी। चीन इसी बात से डरा हुआ है।

चीन की गर्दन मरोड़ने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक घेराबंदी का ऐसा चक्रव्यूह रचा है, जिससे बाहर निकलने के लिए चीन को फिलहाल तो कोई राह नहीं सूझ रही है। इस घेराबंदी का आधार बना है दुनिया के नेताओं से दोस्ताना संबंध बनाने का प्रधानमंत्री का बेमिसाल हुनर। इसी हुनर के दम पर भारत चीन के कट्टर दुश्मन अमेरिका और उसके करीबी सहयोगी रूस का एक साथ, एक ही समय में समर्थन हासिल करने में कामयाब हुआ है। रूस के साथ रिश्तों में दोबारा गर्माहट लाना आसान काम नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी दबाव को दरकिनार करते हुए अपनी चतुर कूटनीति से असंभव दिखने वाले लक्ष्य को भी संभव कर दिखाया।

जापान और इजराइल के साथ तो हमारे संबंधों के नये शिखर को छूने की वजह ही वहां के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और बेंजामिन नेतन्याहू के साथ प्रधानमंत्री मोदी के निजी ताल्लुकात हैं। हमेशा से पाकिस्तान के भरोसेमंद रहे संयुक्त अरब अमीरात को भारत के खेमे में लाना भी प्रधानमंत्री की पर्सनल टच वाली डिप्लोमेसी का ही नतीजा है। चीन के खिलाफ घेराबंदी में यह तमाम देश भारत के साथ मजबूती से खड़े हैं। जिस इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को लेकर चीन की महत्त्वाकांक्षाएं हिलोरें मारती हैं, वहां भी अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का गठजोड़ चीन के सपनों पर पानी फेर रहा है। ताइवान और हांगकांग पर भी रु ख में बदलाव कर प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को साफ जता दिया है कि विश्व राजनीति में भारत अब अपनी शतरे पर ही आगे बढ़ेगा। 

इस सबके साथ ही भारत चीन को आर्थिक मोर्चे पर भी एक-के-बाद झटके दे रहा है। सबसे ताजा झटका जनरल फाइनेंशियल नियम में बदलाव का है, जिसके बाद चीन के लिए अब सरकारी खरीद में बोली लगाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। बेशक इसका चीन की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इस पाबंदी को लाकर भारत ने यह तो बता ही दिया है कि वो रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से पूरी तरह चौकस है और डेटा चुराने और जासूसी करने वाली चीनी कंपनियों के मंसूबे कम-से-कम भारत में तो कभी कामयाब नहीं होंगे। चीन के 59 ऐप्स को बैन करना, तमाम हाई-वे और रेलवे प्रोजेक्ट्स से चीन का पत्ता काटना, चीनी सामान के बहिष्कार से आयात बिल को एक लाख करोड़ रु पए तक घटाना जैसे कदम चीन की अर्थव्यवस्था के सामने बेशक मामूली हों, लेकिन चीन की साख पर इनकी चोट गहरी लगी है, लेकिन ये मान लेना कि सिर्फ  भारत के रोकने से चीन को कोई बड़ा फर्क पड़ेगा, बहुत बड़ी भूल होगी। हालांकि यह जरूर है कि भारत के ऐसे कदम से दुनिया के दूसरे देशों पर एक नैतिक दबाव बना है। ये हमारी नई विदेश नीति का हिस्सा है, जिसे ‘डी-कपलिंग’ कहा जा रहा है। एक-दो देशों को छोड़कर लगभग पूरी-की-पूरी दुनिया चीन के साथ ‘डी-कपलिंग’ की मुहिम में शामिल हो गई है। भारत में चीनी ऐप बैन हुए तो अमेरिका ने भी टिक-टॉक बैन कर दिया, भारत में सरकारी प्रोजेक्ट से चीनी कंपनियों का पत्ता कटा, तो ब्रिटेन और अमेरिका ने भी हुवावे जैसी टेलिकॉम कंपनियों की छुट्टी कर दी।

सबसे ताजा खबर यह है कि ट्रंप सरकार चीन को यूएस डॉलर सिस्टम यानी ‘स्विफ्ट’ से भी बाहर निकालने जा रही है। ऐसा हो गया तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश में चीन का भट्ठा बैठना तय हो जाएगा। डी-कपलिंग की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए 27 देश चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में जाने वाले हैं, तो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन को रोकने के लिए ऑस्ट्रेलिया अपने रक्षा बजट में 40 फीसद तक की बढ़ोतरी करने जा रहा है। दक्षिण चीन सागर पर अब तक खामोश रहे आसियान देश भी अब चीन के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं। बेशक चीन को लेकर दुनिया के नजरिये में इस बदलाव का पूरा श्रेय भारत को देना तर्कसंगत न हो, लेकिन यह भी तय है कि लद्दाख में सीमा पर तनाव बढ़ाना चीन को महंगा पड़ रहा है। कूटनीतिक तौर पर भारत चीन को अलग-थलग करने में सफल रहा है और सीमा विवाद पर दुनिया को भारत के नजरिये पर ज्यादा यकीन है और यह इसलिए हुआ है कि भारत ने पहली बार इस विवाद पर स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण कार्रवाई की है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वैश्विक नीति इतिहास में सदैव याद रखी जाएगी, जिसने चीन जैसे देश की नाक में दम कर दिया और बदले में चीन चुनौतियां पेश करने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाया।

उपेन्द्र राय


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