चीन के बहिष्कार में आत्मनिर्भरता बने हथियार

Last Updated 21 Jun 2020 12:30:30 AM IST

लद्दाख सीमा पर चीन की चालबाजी से इस समय पूरा देश उबल रहा है। देश भर में 20 शहीदों का बदला लेने की मांग हो रही है।


चीन के बहिष्कार में आत्मनिर्भरता बने हथियार

जवानों की शहादत के सम्मान में चीनी सामान के बहिष्कार का नारा बुलंद हो रहा है। भावनाओं का जोर सर्वदलीय बैठक में भी दिखा जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शहीद जांबाजों को सलामी दी और कहा कि भारत माता की तरफ आंख उठाकर देखने वालों को वो सबक सिखाकर गए।

प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा कि जिस तरह भारत शांति और दोस्ती में हमेशा अव्वल रहा है, उसी तरह हमारी सेना देश की संप्रभुता की रक्षा में कभी पीछे नहीं हटती। इस बारे में कोई दो-राय नहीं कि हमारी सेना देश की सीमा को सुरक्षित रखना भी जानती है, दुश्मन से लोहा लेना भी जानती है और समय आने पर ईट का जवाब पत्थर से भी देना जानती है। कोई संदेह नहीं कि अगर आन-बान पर बन आई, तो देश की शान बचाने के लिए सेना पराक्रम का मौका नहीं चूकेगी, लेकिन जरूरी नहीं कि दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सेना को बार-बार अपने शौर्य का सबूत देना पड़े। जिस लड़ाई में पिछले 45 साल से एक भी गोली न चली हो, उस जंग को आगे भी सरहद की मर्यादा में रहकर दुश्मन की रीढ़ तोड़कर जीता जा सकता है। अर्थव्यवस्था को ताकत का पैमाना मानने के दौर में आर्थिक चोट का जोर भी कम कारगर नहीं होता। चीन को सबक सिखाने का काम इस तरीके से भी अंजाम दिया जा सकता है। अलग-अलग तरीकों से इसकी शुरु आत भी हो गई है। रेलवे ने चीन से चार साल पहले का 471 करोड़ रुपये का करार खत्म कर दिया है। बीएसएनएल समेत सार्वजनिक क्षेत्र के कई उपक्रमों ने अपने यहां चीनी कंपनियों के सामान का इस्तेमाल कम करना शुरू कर दिया है।  कारोबारियों के राष्ट्रीय समूह कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स यानी कैट ने देश की भावनाओं को देखते हुए ‘भारतीय सामान-भारतीय अभिमान’ अभियान शुरू कर दिया है, जिसके पहले चरण में चीन से आने वाले 500 से ज्यादा सामानों का बहिष्कार किया जाएगा। देश की सरकार भी चीनी माल की ‘सस्ती ताकत’ को पंगु बनाने के लिए उस पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाने का फैसला ले सकती है। इससे चीन से आने वाले माल की कीमत बढ़ेगी और सस्ते दाम होने के कारण हमारे बाजारों पर उसकी ‘दादागीरी’ कम हो सकेगी। हकीकत यह है कि इसी ताकत के दम पर भारत में चीन हर जगह मौजूद है। ड्रॉइंग रूम से बेडरूम तक और किचन से बाथरूम तक। दवा से लेकर मोबाइल और खिलौने से ऑटोमोबाइल पार्ट्स तक के लिए हम चीन पर निर्भर हैं।

चीन हमसे सस्ते दामों पर कच्चा माल खरीदता है और फिर उसी माल से बना सामान हमें ज्यादा कीमत पर बेच देता है। इस व्यवस्था में चीन से हमारा आयात तो 45 गुना तक बढ़ गया है, लेकिन निर्यात दो दशक पहले के स्तर से ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया है। साल 2019-20 में ही हमने चीन से 4.40 लाख करोड़ रुपये का सामान मंगवाया, लेकिन हम उसे केवल 1.10 लाख करोड़ रुपये का सामान ही बेच पाए। आज चीन हमारे यहां की ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक, मीडिया, सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस जैसी सेवाओं में अपना निवेश लगातार बढ़ाता जा रहा है। चीन की ऐसी कम-से-कम 75 कंपनियां हैं, जो इन सेक्टरों में भारत में पैसा लगा रही हैं। शाओमी 29 फीसद हिस्से के साथ भारत में सबसे बड़ी स्मार्टफोन कंपनी बन गई है, भारत में 5-जी के ट्रायल का अधिकार किसी भारतीय कंपनी ने नहीं, बल्कि चीनी कंपनी हुबाबे ने झपट लिया है, अलीबाबा का यूसी ब्राउजर भारत का सबसे लोकप्रिय ब्राउजर बनने की राह पर है। पेटीएम, जोमैटो, ओला, वायजू जैसे यूनिकॉर्न स्टार्टअप में भी चीन ने भारी-भरकम निवेश कर रखा है। यूनिकॉर्न स्टार्टअप वो कंपनियां होती हैं, जिनकी वैल्यूएशन 100 करोड़ डॉलर तक होती है। कमोबेश हर बड़े सेक्टर में चीन की बड़ी घुसपैठ हो चुकी है।

भारत के कुल आयात का 14 फीसद हिस्सा अकेले चीन से आता है।
देश में स्मार्टफोन का बाजार करीब दो लाख करोड़ का है, जिसमें चीन की हिस्सेदारी 73 फीसद यानी 1.46 लाख करोड़ की है।
स्मार्ट टीवी बाजार में 45 फीसद हिस्सा यानी 12 हजार करोड़ रु पये के कारोबार पर चीन का कब्जा है।
भारत में ऑटोमोबाइल पार्ट्स के 4.27 लाख करोड़ रु पये के बाजार में चीन हर साल 26 फीसद यानी एक लाख करोड़ रुपये के कल-पुर्जे बेच लेता है।
देश में सौर ऊर्जा का मार्केट साइज 37,916 मेगावॉट का है और इसके 90 फीसद हिस्से पर चीन का कब्जा है।
स्टील के बाजार में चीन की हिस्सेदारी 18-20 फीसद ही है, लेकिन यहां भी सस्ते चीनी उत्पादों को कोई टक्कर नहीं दे रहा। 
75 फीसद एंटीबायोटिक्स और दवा बनाने का 70 फीसद कच्चा माल भी चीन से ही आ रहा है।

मोटरसाइकिल और साइकिल के 81 फीसद पार्ट्स भी चीन से आयातित होते हैं। अभी हाल ही में अमेरिका से पिछड़ने से पहले तक चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार हुआ करता था, लेकिन कारोबार बढ़ने का फायदा तब भी हमसे ज्यादा चीन को ही था। भारतीय विदेश मंत्रालय की वेबसाइट से पता चलता है कि साल 2018 में दोनों देशों के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ, लेकिन भारत से चीन निर्यात किए गए सामान का दाम केवल 18.84 अरब डॉलर निकला। यानी चीन ने हमसे जितना खरीदा, उससे चार गुना ज्यादा हमें बेच दिया।

मामला कारोबार का ही रहता तब भी ठीक था, लेकिन भारत से कमाई करने वाला चीन उसी पैसे से हमारे ही जवानों का खून बहाए, यह हरगिज मंजूर नहीं होगा। उसे सबक तो सिखाना ही होगा। बेशक यह आसान नहीं होगा और रातों-रात तो बिल्कुल भी संभव नहीं दिखता, लेकिन अगर भारत जैसा विशाल देश एकजुट होकर ठान ले, तो यह लक्ष्य असंभव भी नहीं रह जाएगा। अपनी जरूरत के लिए अगर हम चीन पर निर्भर हैं, तो हमसे सस्ता माल लिए बिना चीन भी दुनिया की फैक्टरी कहलाने का दरजा नहीं बचा सकता। वैसे भी कोरोना महामारी को दुनिया भर में फैलाने में कथित भूमिका के बाद चीन की मैन्यूफैक्चरिंग हब की हैसियत खतरे में पड़ चुकी है। बेशक पूरी सप्लाई चेन को एक जगह से उठाकर दूसरी जगह ले जाना आसान काम नहीं है, लेकिन सच तो ये भी है कि कई कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेटने के लिए भरोसेमंद ठिकानों का मुंह देख रही हैं। चीन की कमजोर हो रही ग्लोबल हैसियत भारत के लिए एक अवसर की तरह है। इन कंपनियों को कारोबारी माहौल देने के लिए भारत लक्जमबर्ग से दोगुने आकार का लैंड पूल तैयार कर रहा है।

अब तक 1,000 से ज्यादा अमेरिकी मल्टी-नेशनल कंपनियां भारत से संपर्क भी साध चुकी हैं। विदेश कंपनियों को साधने के साथ ही घरेलू उत्पादन बढ़ाकर चीन को दोहरी आर्थिक चोट दी जा सकती है। जिन वस्तुओं के निर्माण में हम तकनीकी तौर पर सक्षम हैं, वहां पूरी तरह से चीनी वस्तुओं की जगह भारत में बनी वस्तुओं का ही प्रयोग जा सकता है। इस तरह से भारत चीन पर अपनी निर्भरता को काफी हद तक कम कर सकता है। उदाहरण के लिए देश में ज्यादातर पावर प्लांट चीन से आयात किए जाते हैं, जबकि भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड यानी भेल दुनिया के सबसे बेहतर पावर प्लांट बनाने में सक्षम है। उसे पूरी स्वायत्ता मिले तो वो आत्मनिर्भर भारत के लिए कमाल कर सकता है। आत्मनिर्भर भारत अभियान दरअसल एमएसएमई के कल्याण का भी अभियान है।

इसके जरिए सरकार छोटे उद्योगों, स्टार्ट अप और दूसरे उद्यमियों की सहायता के लिए आगे आई है। इस अभियान की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को यकीन दिलाया था कि भारत अर्थव्यवस्था के संकट को अवसर में बदलेगा, लेकिन अब इसके साथ शहीदों के सम्मान का मकसद भी जुड़ गया है। जाहिर है सरकार तो अपने स्तर पर पूरी तैयारी करती दिख रही है, अब हम नागरिकों की जिम्मेदारी है कि हम भी प्रणलेकर देश का सम्मान बढ़ाने वाले इस रण में सच्चे नागरिक की पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए अपना योगदान करें।

उपेन्द्र राय


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