‘अच्छे दिन’‘ से आत्मनिर्भर अभियान तक

Last Updated 31 May 2020 02:08:27 AM IST

देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच साल के पहले कार्यकाल के बाद शनिवार को दूसरे कार्यकाल का पहला साल भी पूरा कर लिया।


‘अच्छे दिन’‘ से आत्मनिर्भर अभियान तक

इन छह साल के कार्यकाल में दुनिया जिस रफ्तार से बदली है, उससे कहीं तेज बदलाव हमारे देश में दिखा है। छह साल में पहले जो सफर अच्छे दिन के वादे के साथ शुरू हुआ था, वो अब देश को आत्मनिर्भर बनाने के दावे तक पहुंच गया है। इस सफर में बतौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की झोली में बेशुमार सफलताएं हैं, तो गिने-चुने असफल प्रयास भी हैं।

छह साल की इस अवधि की विभाजक रेखा बिल्कुल साफ और स्पष्ट है। पहले कार्यकाल के पांच साल और दूसरे कार्यकाल का पहला साल। साल 2014 में मोदी जब पहली बार चुनकर आए तो यह प्रधानमंत्री पद के लिए एक नए नेता को विकास के एजेंडे पर साफ-सुथरी और मजबूत सरकार की उम्मीद से दिया गया समर्थन था। मोदी इस कसौटी पर उम्मीद से भी ज्यादा खरे उतरे। घर में ही नहीं, विदेशों में भी उन्हें अपरंपार समर्थन मिला, लेकिन पिछले साल से शुरू हुई दूसरी पारी में उनका फोकस विदेश नीति से बदलकर घरेलू नीति पर शिफ्ट हो गया है। शायद इसकी वजह पहले से भी ज्यादा बहुमत का मिलना हो सकता है, जिसने उन्हें संघ के दशकों पुराने हिन्दुत्व के एजेंडे को जमीन पर उतारने का अवसर भी दिया और अधिकार भी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को यह अधिकार सहज ही हासिल नहीं हुआ है। इसकी बुनियाद साल 2014 से ही पड़नी शुरू हो गई थी जिस पर अपने राजनीतिक साहस और प्रशासनिक हुनर के बूते उन्होंने बुलंदी की वो इमारत तैयार की, जिसका फर्क आज हर हिंदुस्तानी महसूस करता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने दुनिया के नजरिये को कितना बदल दिया है और कैसे भारत का कद विश्व में बढ़ा है, इसकी कई बेहतरीन मिसालें हैं। सऊदी अरब से लेकर यूएई सहित कई देशों ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन के पूर्व पीएम डेविड कैमरु न, इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू समेत कोई भी उनकी ‘जादू की झप्पी’ के सम्मोहन से बच नहीं पाया।

इसी साल फरवरी में अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम के लिए आए करीब 1 लाख लोगों का खुमार तो अमेरिकी राष्ट्रपति पर कई दिनों तक छाया रहा। लेकिन उससे पहले भी हाउडी मोदी जैसे आयोजनों से नरेन्द्र मोदी ऐसे इकलौते विदेशी नेता बनकर सामने आए, जिनके लिए ऐतिहासिक भीड़ जुटी और जिसका राजनीतिक लाभ उठाने के आकषर्ण से उन देशों के हुक्मरान भी नहीं बच पाए। विदेशों में जाकर उन्हीं देशों के राष्ट्राध्यक्ष की मेजबानी करने की ऐसी मिसाल कायम करना आज शायद ही किसी दूसरे अंतरराष्ट्रीय नेता के बूते की बात हो। पहले कार्यकाल में ही पाकिस्तानी सीमा में सर्जिकल और एयर स्ट्राइक ने दिखा दिया कि कैसे विश्व कल्याण के लिए नया हिंदुस्तान अपनी शतरे पर अपनी कूटनीतिक प्राथमिकताएं तय करता है, किसी दूसरे के दबाव में आकर नहीं। और जब बात जनकल्याण की आई, तो प्रधानमंत्री मोदी जन-धन योजना, उज्ज्वला योजना, घर-घर बिजली पहुंचाने वाली सौभाग्य योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत योजना के लिए दरियादिली दिखाने में भी पीछे नहीं रहे। लेकिन उनके दूसरे कार्यकाल का पहला साल संघ के एजेंडे को समर्पित कहा जा सकता है। इस साल सरकार ने अपने घोषणापत्र के उन वादों को पूरा किया, जिसके लिए विपक्ष सदैव से जनता को भ्रमित करने का आरोप लगाता रहा था। प्रधानमंत्री ने एक तरफ जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एक देश, एक विधान के सपने को सच करते हुए जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया, तो लम्बी अदालती लड़ाई जीतकर 90 के दशक से बीजेपी के लिए संजीवनी साबित होते आ रहे अयोध्या के राम मंदिर निर्माण का रास्ता भी साफ करवा दिया। तीन तलाक का मुद्दा भी बीजेपी के कोर एजेंडे में तब से शामिल था, जबसे शाहबानो प्रकरण में तत्कालीन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था। तीन तलाक की लड़ाई में संसद से जीत के बाद सरकार अवैध घुसपैठ रोकने वाले नागरिक संशोधन कानून पर भी संसद की मुहर लगवाने में कामयाब रही है। हालांकि धारा 370 और नागरिकता संशोधन जैसे कानूनों पर देश में विवाद के हालात भी बने हैं। इन मामलों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी को लेकर यह धारणा है कि समर्थन से ज्यादा यह भारत को नाराज न करने की रणनीति है। इस लिहाज से भी मानें तो इसे दुनिया में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत के बढ़ते दबदबे का सबूत ही कहा जाएगा। 

छह साल का यह कामयाब सफर एक बेहद खास घटनाक्रम का जिक्र किए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। वो है पिछले करीब तीन दशकों से उनके सबसे विस्त सिपहसालार अमित शाह की भूमिका में बदलाव। प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल में अमित शाह ने संगठन की बागडोर संभालते हुए बीजेपी के ‘सियासी दिग्विजय’ का देश भर में विस्तार किया था। दूसरे कार्यकाल में उन्हें सरकार में शामिल किया गया, तो यहां भी वो प्रधानमंत्री के बाद दूसरे सबसे ताकतवर मंत्री साबित हुए हैं। धारा 370, सीएए जैसे मुद्दों पर बतौर गृहमंत्री अमित शाह की छाप बेहद स्पष्ट है। एक के बाद एक कामयाबियों के बीच कम-से-कम दो ऐसे स्पष्ट मौके भी आए हैं जहां देश ने प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत छवि को दांव पर लगते देखा। पहला मौका था पहले कार्यकाल में नोटबंदी का और दूसरा मौजूदा कार्यकाल में तालाबंदी का। नोटबंदी के दौरान आम जनता को जहां जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए अपनी ही गाढ़ी कमाई हासिल करने में हफ्तों मशक्कत करनी पड़ी, तो तालाबंदी में प्रवासी मजदूरों को भूख से बिलखते परिवार के साथ पैदल पलायन करने की दिक्कत झेलनी पड़ी। हालांकि इन परेशानियों के बीच इस हकीकत को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि सही समय पर लॉकडाउन लागू करने की प्रधानमंत्री की पहल के कारण ही भारत कोरोना की महामारी को अब तक सीमित रखने में सफल रहा है, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह उसे लागू किया गया उसमें प्रशासनिक कमजोरी के साथ-साथ समाज की संवेदनहीनता भी सामने आई है। हालांकि दोनों मौके पर प्रधानमंत्री ने एक जननायक की तरह जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली और प्रभावितों का दर्द साझा करने की हरसंभव कोशिश भी की। 

वैसे एक नजरिये से देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी का अब तक का कार्यकाल इस बात से भी परिभाषित किया जा सकता है कि वो चुनौतियों से लड़खड़ाए नहीं हैं, बल्कि डटकर सामना करते हुए उन्होंने चुनौतियों को अवसर में बदला है। कोरोना के खिलाफ उनकी अगुवाई में भारत सरकार की लड़ाई भी इसी रास्ते पर आगे बढ़ रही है। एक तरफ अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों को इस आर्थिक और मानवीय आपदा से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है, वहीं प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का नारा देकर अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने का अभियान छेड़ दिया है क्योंकि आज के दौर में अर्थव्यवस्था पक्की होगी तो ही देश में खुशहाली लौटेगी और चीन-नेपाल जैसे पड़ोसियों का बर्ताव भी सुधरेगा। प्रधानमंत्री मोदी का अब तक का छह साल का कार्यकाल यह भरोसा तो देता ही है कि हम ना केवल कोरोना की लड़ाई जीतेंगे बल्कि 21वीं शताब्दी में उन गिने-चुने फ्रंटलाइन देशों में भी शामिल होंगे जो दुनिया का नेतृत्व करेंगे। अगले चार साल में प्रधानमंत्री की भी शायद यही कोशिश होगी।

उपेन्द्र राय


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment