मोदी की ’मेडिकल डिप्लोमेसी‘ से बढ़ा रुतबा

Last Updated 12 Apr 2020 12:03:01 AM IST

कोरोना का कहर भले ही विव्यापी हो, लेकिन लगभग हर देश अपने-अपने तरीके से इससे निपट रहा है। जरूरी नहीं कि किसी एक देश में इलाज के प्रोटोकॉल का दूसरे देश में भी वैसा ही मोल हो।


मोदी की ’मेडिकल डिप्लोमेसी‘ से बढ़ा रुतबा

बेशक हालात ‘अंधेरे में तीर’ चलाने जैसे न हों, लेकिन ऐसा कोई ‘वीर’ भी सामने नहीं आया है जो कोरोना के खिलाफ दुनिया की लाचारी को दूर कर सके। ऐसे कठिन दौर में भारत ने एक बार फिर मानवता की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसने नाउम्मीदी में उम्मीद का चिराग रोशन कर दिया है।

दरअसल, कोरोना से बिना वैक्सीन की लड़ाई साजो-सामान से लैस दुश्मन से निहत्थे लड़ने जैसा है। दुनिया पर राज करने वाला अमेरिका भी कोरोना के सामने बेबस है। इस लड़ाई में फिलहाल मलेरिया के इलाज में दी जाने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) अकेली ऐसी दवा बनकर सामने आई है जो कोरोना से लोहा ले सके। हमारा देश दशकों से इस दवा का सबसे बड़ा निर्माता रहा है। ऐसे में अमेरिका से लेकर दुनिया के कई देश कोरोना से बचाव के लिए भारत-भरोसे हैं और भारत हमेशा की तरह इस बार भी दुनिया की डूबती नाव का खिवैया बनकर सामने आया है। घरेलू चुनौतियों के बीच भारत ने एचसीक्यू के निर्यात पर लगी पाबंदी हटाकर दुनिया की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है।

भारत की मदद पर ट्रंप ने जिस अंदाज में पीएम मोदी का शुक्रिया अदा किया है, उस पर भी ध्यान देना जरूरी है। आम तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति किसी दूसरे देश से मिली सहायता का केवल औपचारिक रूप से संज्ञान लेते आए हैं। लेकिन ट्रंप ने पीएम मोदी के मजबूत नेतृत्व की सराहना करते हुए इसे मानवता की बड़ी मदद बताया है और कहा है कि अमेरिका इस मदद को हमेशा याद रखेगा। ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो ने तो हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को संजीवनी बताते हुए पीएम मोदी की तुलना हनुमान से ही कर दी। इस लिस्ट में इस्रइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू का नाम भी जुड़ गया है, जिन्होंने मलेरिया की दवा देने के लिए भारत को थैंक यू कहा है। वैश्विक स्वास्थ्य की सबसे बड़ी संस्था डब्ल्यूएचओ तो कोरोना से लड़ने में भारत की भूमिका को पहले से ही सबसे अहम मान रही है।

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का यह कहना काफी मायने रखता है कि संकट की घड़ी में भारत से मिली मदद को भुलाया नहीं जाएगा। बदले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का-मुश्किल समय ही दोस्तों को करीब लाता है-वाला बयान उनका बड़प्पन ही दिखाता है, वरना तो मदद मांगते समय भी ट्रंप का लहजा धमकी भरा ही था। हालांकि ट्रंप को शायद जल्द ही अपनी गलती का अहसास भी हो गया क्योंकि दवा की पहली खेप मिलते ही उनके सुर बदल गए। उम्मीद की जा सकती है कि इस कदम के बाद भारत-अमेरिका की साझेदारी पहले से ज्यादा मजबूत होगी। व्हाइट हाउस का ट्विटर हैंडल पर पीएम मोदी का ‘फॉलोवर’ बन जाना इसका बड़ा प्रतीक समझा जाना चाहिए, क्योंकि मोदी पहले और अकेले ऐसे नेता हैं जिन्हें व्हाइट हाउस ने यह सम्मान दिया है। महामारी के इस दौर में भारत एक अच्छा पड़ोसी भी साबित हो रहा है। हम अपना ध्यान तो रख ही रहे हैं, साथ ही कोरोना के सामने लाचार दिख रहे पड़ोसी देशों की भी बढ़-चढ़कर मदद कर रहे हैं।

भूटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, म्यांमार, सेशेल्स, मॉरिशस और कुछ अफ्रीकन देशों को दवाइयों की बड़ी खेप भेजने की तैयारी है। संकट की इस घड़ी में भारत दुनिया की तेल की जरूरत को पूरा करने वाले खाड़ी देशों के लिए भी मददगार बना है। इस हफ्ते की शुरु आत में ही भारत ने श्रीलंका को करीब 10 टन दवाइयां भेजी हैं। श्रीलंका की यह मदद सार्क फ्रेमवर्क के तहत दान के रूप में की गई है, जो बताती है कि घरेलू चुनौतियों और दिक्कतों के बावजूद भारत ने हमेशा अपने संसाधनों और विशेषज्ञता को अपने दोस्त और भागीदार देशों के साथ साझा करने में विश्वास किया है। अच्छी बात यह है कि वैश्विक जिम्मेदारी निभाते हुए हमारी सरकार ने देश की जनता की जरूरतों के साथ कोई समझौता नहीं किया है। बाकी दुनिया को कोरोना के खिलाफ दवाओं का कवच देने से पहले सरकार ने यह अच्छी तरह से सुनिश्चित कर लिया है कि अगर हमारे देश में भी दूसरे देशों की तरह हालात बिगड़ते हैं, तो बुरी-से-बुरी हालत में भी देश की जनता को किसी सूरत में दवाइयों की कमी न होने पाए।

दरअसल, कोरोना को जब डब्ल्यूएचओ ने महामारी घोषित किया, उसके बाद पैरासिटामोल और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर पाबंदी लगाई ही इस मकसद से गई थी कि किसी भी विषम परिस्थिति का सामना करने के लिए हम इसका जरूरी स्टॉक तैयार कर लें। कई देशों से मदद की गुहार आने के बाद हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से निर्यात की पाबंदी हटाने के मोदी सरकार के फैसले ने वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को और चमकदार बना दिया है। इस फैसले को एक जिम्मेदार देश का ऐसा कदम बताया जा रहा है जो दुनिया को संकट से उबारने में पीछे नहीं रहना चाहता। वैसे भारत को लेकर दुनिया की यह राय हमें गौरवान्वित तो करती है, लेकिन हैरान नहीं करती। आतंकवाद से लेकर ग्लोबल वॉर्मिग जैसे वैश्विक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर दुनिया प्रधानमंत्री की सक्रियता पहले ही देख चुकी है।

कोरोना के दौर में ही जहां ज्यादातर देशों ने खुद को अपने आप तक ही सीमित कर रखा था, तब पीएम मोदी ने ही भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का विचार सिद्ध करते हुए सार्क देशों को साथ लाकर पहली सामूहिक पहल की थी। प्रधानमंत्री की इसी पहल ने जी-20 देशों को कोरोना के खिलाफ एकजुट होने का हौसला दिया था। ये जरूर गौर करने वाली बात है कि भारत के लिए ये ‘कृतज्ञता’ ऐसे समय में सामने आ रही है, जब चीन के दामन पर कोरोना से जुड़ी जानकारियों को कथित रूप से छिपाने के दाग लग रहे हैं। जले पर नमक छिड़कने वाली बात ये भी है कि जब चीन मुश्किल में था तब इटली, स्पेन और फ्रांस जैसे देशों ने आगे बढ़कर मेडिकल उपकरण और दूसरे संसाधन दान देकर उसकी मदद की, लेकिन जब इन देशों पर आपदा आई तो चीन ने दान में मिली मदद की मुंहमागी कीमत ही नहीं वसूली, बल्कि मुनाफे के लिए इन देशों में घटिया सामान निर्यात कर दिया। वैसे चीन की इस ‘चालबाजी’ ने भारत के लिए नए दरवाजे भी खोले हैं।

अमेरिका, ब्राजील, इस्रइल जैसे देशों से डिमांड आने के बाद माना जा रहा है कि दूसरे देश भी यह दवा मांगेंगे। एचसीक्यू और पैरासिटामोल पेटेंट-फ्री होने के कारण सस्ती और जेनेरिक दवाएं हैं, जिनका भारत में बड़ी तादाद में उत्पादन होता है। एक अनुमान है कि भारत के पास एचसीक्यू की सालाना 20 करोड़ टैबलेट उत्पादन की मूल्यवान क्षमता है। दवा के क्षेत्र में भारत पहले से ही अमेरिका का प्रमुख सहयोगी रहा है। दोनों देश गांधी-रीगन विज्ञान और तकनीकी समझौते के जरिए संक्रामक बीमारियों के टीके बनाने के लिए रिसर्च करते हैं। अब इसमें कोरोना को भी शामिल किया जा सकता है। एचसीक्यू के बहाने बनी ताजा प्रगाढ़ता दोनों देशों को मुक्त व्यापार समझौते के करीब ला सकती है।

कोरोना के बाद के संभावित गंभीर आर्थिक मंदी के दौर में यह समझौता तात्कालिक राहत के साथ ही लंबी साझेदारी की बुनियाद भी रख सकता है। वैसे भी अमेरिका उन चुनिंदा देशों में है, जिसके साथ व्यापार संतुलन का झुकाव भारत के पक्ष में है। बहरहाल कोरोना काल में एक बात फिर साबित हुई है कि कई राष्ट्र आज भी भारत को सांस्कृतिक तौर पर अपना गुरु , मित्र और बड़ा भाई मानते हैं और संकट के समय उम्मीद की नजरों से देखते हैं। दुनिया को भारत के शासक से इसी भूमिका की अपेक्षा रहती है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत इस अपेक्षा को बखूबी पूरा करता भी नजर आ रहा है।

उपेन्द्र राय


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