कोरोना से लड़ाई, मोदी-मंत्र ने राह दिखाई

Last Updated 05 Apr 2020 12:14:56 AM IST

कोरोना से लड़ाई में भारत अब तक बेहतरीन योद्धा साबित हुआ है। दुनिया के महारथी देश जिस वायरस के सामने एक के बाद एक घुटने टेकने को मजबूर हुए हैं, उस कोरोना के सामने भारत न केवल मजबूती से डटा हुआ है, बल्कि उसे काबू में रखने में भी काफी हद तक कामयाब हुआ है।


कोरोना से लड़ाई, मोदी-मंत्र ने राह दिखाई

पिछले दो महीनों में भारत में कोरोना की धीमी चाल ने अमेरिका और यूरोप के उन देशों को हैरान कर दिया है, जहां ये वायरस काल बनकर कहर बरपा रहा है। लड़ाई बेशक अभी जीती नहीं गई है, लेकिन जो कामयाबी मिली है; उसका बड़ा श्रेय देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी जाता है। कोरोना से लड़ाई में देश ही नहीं, पूरी दुनिया के लीडर के तौर पर उनकी छवि और पुख्ता हुई है।

इसकी एक नहीं, कई वजह हैं। पीएम मोदी की दूरदर्शी सोच की वजह से भारत सीमित संसाधनों के बावजूद कोरोना से मुकाबले में बेहतर स्थिति में है। देश के लिए यह गर्व का विषय है कि इस मामले में संयुक्त राष्ट्र से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई यूरोपियन थिंक टैंक भी हमारे प्रधानमंत्री के नेतृत्व का लोहा मान रहे हैं। अपनी बुद्धिमता, तत्काल निर्णय लेने की खूबी और फैसलों के क्रियान्यवन में तत्परता से पीएम मोदी ने वैश्विक राजनीति के मंच पर वो स्थान हासिल कर लिया है, जहां उन्हें अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली और रूस जैसे विकसित देशों के राष्ट्राध्यक्षों के मुकाबले बेहतर नेता माना जा रहा है। पहले जनता कर्फ्यू लगाकर कोरोना के खिलाफ युद्ध का उद्घोष और फिर परिस्थितियों को भांपते हुए देश भर में लॉक-डाउन को लागू कर उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। सामाजिक दूरी को हथियार बनाने की उनकी समझ कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मास्टरस्ट्रोक साबित हुई है। पूरी दुनिया ने माना कि सीमित संसाधन और सघन आबादी की चुनौतियों के बीच इस जंग की और कोई बेहतर रणनीति नहीं हो सकती थी। हमारे मुकाबले अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों ने कोरोना को रोकने के लिए कड़े फैसले लेने में देरी कर दी। नतीजा सबके सामने है।

अमेरिका, इटली और स्पेन में कोरोना पॉजिटिव के मामले चंद दिनों में ही लाख के ऊपर पहुंच गए, जबकि भारत में कोरोना पिछले 30 दिनों से दूसरी स्टेज में ही ‘कैद’ है।  इस कामयाबी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी भारत की जबर्दस्त क्षमता का अहसास करवा दिया है। डब्ल्यूएचओ मान रहा है कि भारत ने पहले भी ‘साइलेंट किलर’ कही जाने वाली दो गंभीर बीमारियों  ‘स्मॉल पॉक्स’ और ‘पोलियो’ को खत्म करने में दुनिया की अगुवाई की थी और अब लॉक-डाउन के फैसले ने एक बार फिर दुनिया को नई राह दिखाई है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य के स्तर पर भारत की आक्रामक कार्रवाई ही कोरोना का भविष्य तय करेगी। यूरोप की नामी संस्था ‘यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज’ ने भी भारत की विशाल जनसंख्या को लॉकडाउन के दायरे में लाने के फैसले को मजबूत इच्छाशक्ति की मिसाल बताया है।

इस संकट काल में सामाजिक कल्याण और अर्थव्यवस्था को सहारा देने के मामले में भी भारत ने नेतृत्व क्षमता दिखाई है। लॉक-डाउन के दौरान प्रधानमंत्री के सामाजिक सरोकार से जुड़े फैसलों की दुनिया में सराहना हुई है। करीब-करीब 80 करोड़ जरूरतमंदों को मुफ्त राशन और गैस सिलेंडर की सुविधा ऐसे संकट के बीच किसी संजीवनी से कम नहीं है। इसमें जन-धन खातों के जरिए 21 करोड़ गरीबों तक पहुंच रही आर्थिक मदद को भी जोड़ दिया जाए तो यह 1.7 लाख करोड़ रु पये का ऐसा जनिहत कार्यक्रम बन जाता है जिसे लागू करने में विकासशील देश ही नहीं, कई विकसित देशों को भी संघर्ष करना पड़ रहा है। दुनिया भर की संस्थाओं ने माना है कि गरीबों के हित में इस तरह की सामाजिक और आर्थिक पहल कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत को और मजबूत बनाएगी।

यह केवल संयोग नहीं हो सकता कि जिस दिन प्रधानमंत्री ने भारत में राहत पैकेज का एलान किया, उसके दूसरे दिन ही अमेरिका में ट्रंप सरकार ने भी दो ट्रिलियन डॉलर की योजना घोषित कर दी। जरूर ही अमेरिका में इस दिशा में पहले से ही तैयारी चल रही होगी, लेकिन यह भी हकीकत है कि ट्रंप की इस योजना के ज्यादातर प्रावधानों में पीएम मोदी की सोच झलकती है। ट्रंप ने अमेरिकियों के खातों में डायरेक्ट ट्रांसफर की जो बात कही, उसकी बुनियाद तो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल 1.0 में ही रख दी गई थी।

कोरोना की वैश्विक तबाही के बीच भारत का नेतृत्व केवल घरेलू जनता ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के जरिए संपूर्ण मानवता की ढाल बनकर भी सामने आया है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही पहल थी, जिसने इस समस्या से लड़ने के लिए सार्क देशों को एक मंच पर लाने का काम किया। जी-7 और जी-20 देशों ने भी भारत की दिखाई राह पर चलने में जरा भी देर नहीं की। इन बैठकों में भारत की ओर से यही पैगाम सामने आया कि जब पूरी दुनिया की समस्या एक है तो उससे लड़ने के लिए भी पूरी दुनिया को एक होना पड़ेगा और इस लड़ाई में मानवीय मूल्यों को केंद्र में रखना होगा। कोरोना काल में प्रधानमंत्री ने अपने तमाम विमर्श में इस बात को बार-बार स्थापित भी किया है। गरीबों के लिए राहत पैकेज इसकी व्यापक अभिव्यक्ति है। साथ ही अस्पताल में जान दांव पर लगा कर मरीजों की जान बचा रहे स्वास्थ्यकर्मिंयों और सड़क पर लॉक-डाउन के बंदोबस्त में जुटे पुलिसकर्मिंयों का सम्मान कायम रखने की उनकी अपील एक मायने में मानवीय मूल्यों की रक्षा का ही विस्तार है।

जनता कर्फ्यू के दौरान देशवासियों ने जब ताली-थाली और घंटी-शंख बजाए तो उससे केवल कोरोना के इन योद्धाओं का ही सम्मान नहीं हुआ, बल्कि पूरी दुनिया में मानवता को बचाने के लिए भारत की नई लड़ाई का शंखनाद भी हुआ। इस मुश्किल घड़ी में प्रधानमंत्री देश की जनता से तीन बार संवाद कर चुके हैं और हर संवाद में उन्होंने परिवार के एक मुखिया की तरह एक-एक देशवासी की संवेदना को छुआ है। इस ‘हीलिंग टच’ के जरिए प्रधानमंत्री केवल देशवासियों का मनोबल बढ़ाने में ही नहीं, दुनिया का भरोसा जीतने में भी कामयाब हुए हैं। इस बात की अहमियत इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि भारत पर यह भरोसा ऐसे वक्त में बढ़ रहा है, जब चीन की छवि बड़ी तेजी से धोखेबाज राष्ट्र के रूप में स्थापित हो रही है।
कोरोना को अमेरिका कई बार चीनी वायरस कह चुका है। कोरोना के बाद चीन में एक और वायरस ‘हंता’ सक्रिय हुआ है और ऐसी भी खबरें हैं कि वहां के हुबेई प्रांत में एक समय 1,500 से ज्यादा स्ट्रेन वायरस बैंक में जमा थे। डब्ल्यूएचओ ने भी सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन संकट से उबरने के बाद इन आरोपों की जांच का इशारा किया है। इस सबसे यही बात स्थापित होती है कि किसी समस्या को लेकर हुक्मरानों की सोच भविष्य की राहें भी तय करती हैं। कोरोना के संकट काल में चीन पर आरोप लग रहे हैं कि वो दुनिया को घुटनों पर लाकर अपने साम्राज्य के विस्तार का अवसर तलाश रहा है। दूसरी तरफ पीएम मोदी के नेतृत्व में भारतीय अभियान की इस बात के लिए सराहना हो रही है कि वो मानवता का सिर उठाकर इस समस्या से मुकाबले के लिए डटकर खड़े रहने का साहस दे रहा है।

उपेन्द्र राय


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