नजरिया : राष्ट्रवाद का ’ट्रंप‘ कार्ड!

Last Updated 22 Dec 2019 12:14:48 AM IST

लोकतंत्र की ताकत अवाम को मिली अभिव्यक्ति की आजादी और शासन से सवाल पूछने के अधिकार की व्यवस्था में निहित होती है।


नजरिया : राष्ट्रवाद का ’ट्रंप‘ कार्ड!

अवाम की देश के प्रति जिम्मेदारी और शासन की अवाम के लिए जवाबदेही इस व्यवस्था में अंकुश का काम करती है। लेकिन ‘आपसी संतुलन’ की इस व्यवस्था के खतरे भी हैं। लोकतंत्र में बहुमत की ढाल शासक को निरंकुशता की ताल ठोकने का मौका देती है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसकी सबसे ताजा मिसाल हैं।  

ट्रंप के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव में अब तक जो हुआ है, और आगे जो होने वाला है, वह बहुमत के इसी अपेक्षित खतरे की अभिव्यक्ति लगता है। ट्रंप के खिलाफ ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स’ में महाभियोग पारित हो गया क्योंकि वहां विरोधी डेमोक्रेट के पास बहुमत था। महाभियोग के समर्थन में 230 वोट पड़े, जबकि खिलाफ में 197 वोट। लेकिन यह मंजिल का आधा सफर ही है। अभी इस प्रस्ताव को सीनेट की भी मंजूरी मिलनी है जहां ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी बहुमत में है। सीनेट में रिपब्लिकन के 53 सांसद हैं। महाभियोग पास होने के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए। ऐसा तभी हो सकता है जब कम-से-कम 20 रिपब्लिकन सांसद पार्टी लाइन से हटकर डेमोक्रेट का साथ दें। इसके आसार बहुत कम हैं। यानी बहुमत की लाठी लहरा रहे ट्रंप का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। ये तब है, जब ट्रंप पर लगे इल्जाम बेहद गंभीर हैं। अपने विरोधी डेमोक्रेट सांसदों के खिलाफ जांच के लिए देश के सर्वोच्च पद का दुरुपयोग करना, यूक्रेन सरकार पर अपने प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन के खिलाफ जांच के लिए दबाव डालना कोई छोटी घटना नहीं है। बिडेन राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के खिलाफ उम्मीदवार होने वाले हैं। वैसे न तो अपने राष्ट्रपतियों के खिलाफ महाभियोग लाना अमेरिका के लिए कोई नई बात है, और न ही राष्ट्रपतियों का उससे बच निकलना नई परंपरा है।

अमेरिका के 243 साल के इतिहास में ट्रंप तीसरे राष्ट्रपति हैं, जिनके खिलाफ हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में महाभियोग प्रस्ताव पारित हुआ है। इससे पहले 1868 में एंड्रयू जॉन्सन और 1998 में बिल क्लिंटन के खिलाफ ऐसा ही हुआ था। मगर, सीनेट में अब तक कोई महाभियोग पारित नहीं हो पाया है। 1974 में राष्ट्रपति र्रिचड निक्सन ने महाभियोग प्रस्ताव पेश होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। कहना यह कि ट्रंप के खिलाफ विपक्ष की यह कामयाबी अधूरी ही रहने वाली है।

खुद ट्रंप अपने खिलाफ मुहिम से विचलित नहीं हैं। ट्विटर पर उन्होंने अपने पक्ष में ‘स्वच्छता अभियान’ छेड़ रखा है, जिसमें  दावा कर रहे हैं कि उनके खिलाफ महाभियोग अनुचित है क्योंकि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया। एक तर्क यह भी है कि उनके नेतृत्व में देश आगे बढ़ा है, आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है, इसलिए भी महाभियोग चलाना गलत है। निश्चित रूप से ट्रंप के नेतृत्व में ‘अमेरिका फस्र्ट’ की नीति आर्थिक मोच्रे पर सफल रही है। ट्रेड वार में चीन को विवश करना उनकी उपलब्धियों में एक है। अमेरिका में रोजगार पैदा हुए हैं,और पिछले 50 साल में रोजगार की दर इतनी पहले कभी नहीं थी। यह स्थिति भारत से उलट है, जहां पिछले 45 साल में बेरोजगारी की दर ऐसी पहले कभी नहीं थी। सवाल है कि क्या इन कामयाबियों की पनाह में ट्रंप को उनके ‘गुनाह’ से मुक्ति दी जा सकती है?

यह कमोबेश वैसा ही है, जैसा पाकिस्तान में हो रहा है, जहां के हुक्मरान रह चुके जनरल परवेज मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाई गई है। हालांकि मामला देशद्रोह का है, लेकिन सेना इसी बिनाह पर फैसले का विरोध कर रही है कि मुशर्रफ ताउम्र ‘पाकिस्तान फस्र्ट’ के हिमायती रहे। ट्रंप और मुशर्रफ के मामले में यह समानता दिखती है कि राजनेता पद पर रहकर देश के लिए कई काम करते हैं, लेकिन उनका हर काम देश हित में हो यह जरूरी नहीं होता। ऐसे में उनकी पुरानी ख्याति के आभामंडल में उनके कारनामे को माफीनामे का जामा पहनाना कितना जायज है?

अंग्रेजी का एक लोकप्रिय जुमला है-अटैक इज द बेस्ट डिफेंस। जब मुश्किल सिर पर हो तो आक्रमण करो। ट्रंप इस वक्त ठीक ऐसा ही कर रहे हैं, और लग रहा है कि इसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है। एक सर्वे में शामिल 52 फीसद लोग उन पर महाभियोग चलाने के पक्ष में थे, लेकिन महाभियोग की घड़ी करीब आते-आते यह आंकड़ा 6 फीसद फिसल कर 46 तक गिर गया। यह महाभियोग से भागने नहीं, बल्कि उसका सामना करने की ट्रंप की आक्रामक नीति का चमत्कार नहीं तो और क्या है? ट्रंप यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स’ में उनके विरोधियों में अेत हैं, मुसलमान हैं, और दूसरे देश से आकर नागरिक बने राजनीतिज्ञ। वे खुलकर ऐसी टिप्पणियां करते रहे हैं, जो विदेश नीति के मामले में उन्हें बड़बोला, मगर घरेलू मोर्चे पर अमेरिका का हिमायती दिखाती हैं।    

-घरेलू मोर्चे पर इमीग्रेंट यानी अप्रवासी नागरिक और विपक्ष ट्रंप के निशाने पर रहा है।
-ट्रंप के नस्लवादी प्रचार अभियान से लैस सियासी हमलों में राष्ट्रवाद का नया पैराडाइम दिखा है।
-माइग्रेशन की राजनीति को केंद्र में लाकर ट्रंप ने ‘नेशन स्टेट’ को अपना प्रमुख एजेंडा बनाया है।
-देश में वैध नागरिक रहें, अमेरिकी सीमाएं सुरक्षित हों, अमेरिकी कानूनों में राष्ट्रहित सबसे आगे दिखे, नौकरियों में अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता की वकालत ने ट्रंप के लिए बड़ा समर्थक वर्ग तैयार किया है।

इस वर्ग के साथ-साथ ट्रंप अमेरिका में बसे बड़े भारतीय समुदाय को साधने में भी शामिल रहे हैं। इसमें भारतीयों के लिए एच-वन वीजा को लेकर उनका नरम रु ख भी मददगार रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी नजदीकी ने भी भारतीयों के प्रति ट्रंप के रवैये को बदला है। नतीजा यह है कि भारतीय समुदाय के लोगों को ट्रंप पर महाभियोग का कोई असर नहीं पड़ा है। हालांकि कश्मीर मुद्दे पर पीएम मोदी पर मध्यस्थता की पेशकश की तोहमत लगाकर ट्रंप ने भारतीय समुदाय को नाराज कर दिया था, लेकिन इस मामले पर पीएम की दो-टूक के बाद नरेन्द्र मोदी को ‘फादर ऑफ इंडिया’ कहकर वह पुरानी गलती की भरपाई करने की कोशिश भी कर चुके हैं। कश्मीर के अलावा भी ऐसे कई मौके आए हैं, जब पीएम की ओर से ट्रंप को इस बात का अहसास करवाया गया है कि भारत अब अपने हितों के लिए किसी देश से समझौता नहीं करेगा। पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हो या आयात शुल्क का मसला, भारत ने अमेरिका को आइना दिखाने में देरी नहीं की है।

इसके बावजूद वैिक मंच पर भारत का बढ़ा हुआ कद ट्रंप को भारत से प्रगाढ़ रिश्ते बनाए रखने और हाउडी मोदी जैसे अवसरों का फायदा उठाने के लिए मजबूर करता रहा है। अमेरिका आज भी भारत का वैसा ही रणनीतिक साझेदार बना हुआ है, जैसा मोदी-ओबामा काल में हुआ करता था। पीएम मोदी के सत्ता संभालने के बाद बराक ओबामा दो साल अमेरिका के राष्ट्रपति रहे और इस दौरान दोनों नेता के बीच नौ बार मुलाकात हुई। पद छोड़ने से 48 घंटे पहले बराक ओबामा ने पीएम नरेन्द्र मोदी को फोन किया था और दोनों देशों के राजनीतिक-सामरिक रिश्तों को नया आयाम देने के लिए पीएम को धन्यवाद दिया था।

बहरहाल, अब यह दोस्ती उस दौर में है, जहां दोनों ही देश ‘नेशन फर्स्ट’ की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं। जिस तरह भारतीयों को हर हाल में भारतीय हित को आगे रखने की मोदी-नीति पसंद है, उसी तर्ज पर ट्रंप ने भी अमेरिकियों से करीबी बढ़ाई है। इसी रणनीति को हथियार बनाकर ट्रंप महाभियोग का भी सामना कर रहे हैं। ट्रंप सही थे या गलत, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन जन समर्थन और सीनेट का बहुमत जिस तरह उनके साथ है, वह कम-से-कम इस बात का संकेत जरूर है कि महाभियोग में ट्रंप नहीं फंसने जा रहे हैं, कोई फंसेगा तो वे हैं उनके विरोधी।

उपेन्द्र राय


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