प्लास्टिक से जंग बेहतर उम्मीदों के संग

Last Updated 19 Oct 2019 05:50:36 PM IST

महाबलीपुरम के समुद्र तट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्लॉगिंग करना केवल देश को स्वच्छता का संदेश देना भर नहीं था, बल्कि यह एक संवेदनशील राष्ट्र प्रमुख की ओर से दुनिया को चेतावनी भी थी कि अब नहीं जागे तो फिर बहुत देर हो जाएगी।


प्लास्टिक से जंग बेहतर उम्मीदों के संग

'प्लॉगिंग' का मतलब जॉगिंग करते या दौड़ते वक्त प्लास्टिक की उपयोग की हुई बोतल जैसे कूड़ा-कचरा उठाना/हटाना होता है। महाबलीपुरम की यह मिसाल पूर्व नियोजित नहीं थी, लेकिन इसके पीछे की सोच और मकसद पूरी तरह सुविचारित है। इसका इशारा प्रधानमंत्री अपने 15 अगस्त के भाषण में कर चुके थे जब उन्होंने ऐतिहासिक रूप से देश के सुप्रसिद्ध स्मारक से प्लास्टिक-मुक्त भारत का आह्वान किया था।

अपने पहले कार्यकाल में साल 2014 में प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से स्वच्छता और योग को जन आंदोलन बनाने का संकल्प लिया था। पांच साल में इस क्रांतिकारी संकल्प की सफलता आज पूरी दुनिया में गूंज रही है। अपने दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने सिंगल-यूज प्लास्टिक के खात्मे का बीड़ा उठाया है। प्रधानमंत्री का कहना है कि स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और पशु महात्मा गांधी जी को बहुत प्रिय थे। प्लास्टिक इन सभी के लिए बड़ा खतरा है, इसलिए साल 2022 तक इसे समाप्त करने के लक्ष्य को हर कीमत पर हासिल करना होगा। सिंगल-यूज प्लास्टिक का मतलब प्लास्टिक से बनी उन चीजों से होता है, जिनका केवल एक बार ही इस्तेमाल होता है, और उसके बाद इन्हें फेंक दिया जाता है। तकनीकी रूप से चालीस माइक्रोमीटर या उससे कम स्तर के प्लास्टिक को सिंगल-यूज प्लास्टिक कहा जाता है।

बाजार से सब्जी या फल लाने वाली पॉलीथीन से लेकर चाय की दुकान पर मिलने वाला प्लास्टिक कप तक सिंगल-यूज प्लास्टिक की श्रेणी में ही आता है। जिस पानी की बोतल से आप अपनी प्यास बुझाते हैं, या बच्चे के जन्मदिन पर प्लास्टिक के चाकू से बर्थडे केक काटते हुए उसकी लंबी उम्र की कामना करते हैं, वो सब उसी सिंगल-यूज प्लास्टिक के अलग-अलग रूप हैं, जिसके बेपरवाह इस्तेमाल ने अब हमारी जिंदगी को ही खतरे में डाल दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी की चिंता वाजिब भी है। हैरानी की बात है कि उनसे पहले किसी विश्व नेता ने इसे अपनी प्राथमिकता बनाने के बारे में नहीं सोचा। प्लास्टिक आज हमारे देश के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चुनौती बन गया है। यह चुनौती कितनी बड़ी हो चुकी है, इसका अंदाजा प्लास्टिक से जुड़े कुछ आंकड़ों से लगाया जा सकता है:

  • दुनिया भर में हर साल औसतन 300 मिलियन यानी 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा जमा हो रहा है। यह भार पृवी पर मनुष्यों के कुल भार के बराबर है यानी हर साल पृवी पर मनुष्य की कुल आबादी के भार के बराबर प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है।
  • प्लास्टिक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए होता है। पैकेजिंग उद्योग करीब दो सौ अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसके तहत करीब आठ करोड़ टन प्लास्टिक सालाना तैयार होता है, लेकिन बहुत ही मामूली हिस्सा रिसाइकिल होता है। बचा हुआ प्लास्टिक जमीन से लेकर महासागरों तक फैलता रहता है।
  • यूरोप में जो खाना बिकता है, उसका एक-तिहाई प्लास्टिक में पैक किया जाता है। यूरोप में रहने वाला हर शख्स हर साल 31 किलो प्लास्टिक का कचरा निकालता है।
  • पूरी दुनिया में हर मिनट पानी की 10 लाख प्लास्टिक बोतलें और हर साल पांच ट्रिलियन प्लास्टिक बैग खरीदे जाते हैं, जो एक बार के इस्तेमाल के बाद फेंक दिए जाते हैं।
  • प्लास्टिक कचरे का 70 फीसदी हिस्सा महासागरों में फैला हुआ है। इसमें केवल एक फीसदी कचरा समुद्र तट पर दिखाई देता है, जबकि 99 फीसदी या तो समुद्र तल में जा चुका है, या फिर समुद्री जीवों के पेट में।
  • प्लास्टिक कचरे के असर से हर साल 11 लाख से ज्यादा समुद्री जीव दम तोड़ रहे हैं, जबकि 700 से ज्यादा प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं।
  • अंदेशा है कि साल 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा।
  • केवल जानवर ही नहीं, हम-आप जिस समुद्री नमक का बेधड़क इस्तेमाल करते हैं, अब तो प्लास्टिक उसमें भी घुल कर मानव शरीर में भी अपनी जगह बना रहा है।


कोई कम तो कोईज्यादा जिम्मेदार

इस हालत तक पहुंचने के लिए कुछ देश नहीं, बल्कि पूरी दुनिया कम-ज्यादा अनुपात में जिम्मेदार है। इसलिए यह भी जरूरी है कि इसका सामना कुछ देश ही नहीं, बल्कि सभी देश मिलकर करें। यही वजह है कि बीते 28-29 जून को जापान के ओसाका जी-20 सम्मेलन में दुनिया के दिग्गज राष्ट्राध्यक्षों ने इस दिशा में मिलकर काम करने का संकल्प लिया। इस चुनौती के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच दुनिया के लिए प्रेरणा बन गई है। प्रधानमंत्री जता चुके हैं कि लोग प्लास्टिक की पन्नी और बोतलों का इस्तेमाल न करें और अगर करते भी हैं, तो उन्हें कूड़े में न फेंकें और अगर किसी ने फेंक भी दी है, तो उसे उठाकर रिसाइकलिंग के लिए दे दें। लेकिन क्या प्लास्टिक को बैन करना या उसकी रिसाइकलिंग से समस्या का 100 फीसदी निदान हो पाएगा। जो प्लास्टिक आज इंसानियत ही नहीं, हर तरह के जीव का दुश्मन बन चुका है, क्या उससे पीछा छुड़ाना संभव हो पाएगा। दरअसल, दुनिया-भर के विशेषज्ञों का मानना है कि:

  • प्लास्टिक को प्रतिबंधित कर एक बार में पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। ऐसा करने के लिए चरणबद्ध तैयारी करनी होगी। रिसाइकलिंग के बाद भी इसका कुछ हिस्सा पर्यावरण में शेष रह जाता है।
  • प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के सबसे प्रभावी विकल्पों में से एक विकल्प उससे ईधन बनाना है।
  • अमेरिका और कनाडा में दस साल के अनुभव के आधार पर रिन्यूएबल कंपनी की सीईओ और एमआईटी एल्युमिनी प्रियंका बकाया के मुताबिक 10 टन प्लास्टिक से औसतन 60 बैरल डीजल जैसे पाररोलिसिस तेल का उत्पादन किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में पारंपरिक तरीके से तेल बनाने की तुलना में 75 फीसदी कम कार्बन उत्सर्जित होता है, और 75 फीसदी तक प्लास्टिक रिसाइकल हो जाता है।
  • लेकिन विशेषज्ञ इस प्रक्रिया को पर्यावरण के सामने दूसरी चुनौती की तरह देखते हैं। उनके मुताबिक इस प्रक्रिया से निकले तेल का सल्फर कंटेंट और उत्सर्जन मानक पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं। कुछ विशेषज्ञ इस प्रक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा खर्च होने और बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसें निकलने पर भी सवाल उठाते हैं।
  • सिंगल-यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल का एक विकल्प सड़क और टाइल्स बनाना भी हो सकता है। कई देशों में इस पर सफलतापूर्वक काम भी हो रहा है।द प्लास्टिक के इस्तेमाल से जुड़ा एक विरोधाभास यह भी है कि पर्यावरण पर इसका नकारात्मक असर कागज या कपड़े या फिर ऑर्गेनिक सूती जैसे इसके विकल्पों की तुलना में कम है।
  • ऐसे विकल्पों की पूर्ति के लिए कटने वाले पेड़ों और निर्माण प्रक्रिया में इस्तेमाल पानी-बिजली की काफी बड़ी मात्रा में खपत होती है।
  • डेनमार्क में पिछले साल हुई एक स्टडी बताती है कि पर्यावरण पर प्लास्टिक की एक थैली के बराबर प्रभाव हासिल करने के लिए पेपर बैग का 43 बार इस्तेमाल करना होगा। कपड़े की थैली और ऑर्गेनिक सूती के बैग के मामले में तो यह आंकड़ा क्रमश: 7,100 और 20 हजार तक पहुंच जाता है।
  • प्लास्टिक के विकल्प तलाशने में एक चुनौती उपकरणों में लगने वाली जंग भी है। लगभग सभी विकल्प इस मामले में प्लास्टिक के सामने बौने साबित होते हैं।


बेशक, इस तस्वीर का एक सुखद पहलू भी है। अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, कनाडा, फ्रांस, ताइवान, बांग्लादेश, केन्या और जिम्बाब्वे में या तो पूरे तौर पर या देश के बड़े हिस्सों में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध प्रभावी तरीके से काम कर रहा है। हमारे अपने देश में सिक्किम में भी यह प्रयोग सफल साबित हुआ है, जहां इसे एक के बाद एक विभिन्न चरणों में लागू किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने प्लास्टिक के खिलाफ जो जंग छेड़ी है, उसमें सिक्किम का मॉडल पूरे देश के लिए मिसाल साबित हो सकता है। ठीक उसी तरह जैसे योग जैसे विषय पर उनकी सोच कई देशों के लिए प्रेरणा साबित हुई है।

प्लास्टिक के खिलाफ जंग का ऐलान और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक कदम उठाने पर संयुक्त राष्ट्र भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘‘चैंपियन ऑफ द अर्थ’ सम्मान से नवाज चुका है। वाकई में आज प्रधानमंत्री इस दिशा में दुनिया के चैंपियन की तरह ही कदम बढ़ा रहे हैं। शायद यह उनकी प्रेरणा का ही असर है कि सिंगल-यूज प्लास्टिक को खत्म करने का उनका लक्ष्य अब विश्व आंदोलन का रूप ले चुका है।द

उपेन्द्र राय


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