स्मार्ट डिवाइसेज : क्या कृत्रिम दुनिया में कैद हैं हम

Last Updated 13 May 2025 12:49:35 PM IST

स्मार्ट डिवाइसेज की चमक ने हमारे जीवन को नई रोशनी से नहला दिया है। गूगल होम्स, एलेक्सा और सिरी जैसे यंत्र घरों में नहीं, बल्कि हमारे दिलों में बस गए हैं।


स्मार्ट डिवाइसेज : क्या कृत्रिम दुनिया में कैद हैं हम

एक आवाज के इशारे पर ये हमारे लिए गीत गाते हैं, खाना बनाने की विधियां सुझाते हैं और यहां तक कि हमारी दिनचर्या को संवारते हैं। मगर इस तकनीकी जादू की चकाचौंध में एक गहरा सवाल छिपा है, जो हमारे मन के कोनों को झकझोरता है-क्या ये यंत्र, जो हमारी जिंदगी को सरल बनाते हैं, हमारे मानसिक स्वास्थ्य को चुपके से प्रभावित कर रहे हैं? यह प्रश्न केवल एक विचार नहीं, बल्कि हमारे युग की सबसे जरूरी और अनछुई बहस का आह्वान है।

आज स्मार्ट डिवाइसेज हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। ये यंत्र तुरंत जानकारी देते हैं, घरेलू कार्य को स्वचालित करते हैं, और हमें मनोरंजन के अनिगनत रास्ते खोलते हैं। मगर क्या हमने कभी सोचा कि इनके निरंतर उपयोग का हमारे मन पर क्या असर पड़ रहा है? एक ओर, ये डिवाइसेज तनाव से राहत दे सकते हैं। जब हम अकेलेपन में डूबे होते हैं और किसी से बात करने का मन नहीं करता, तो हम अपने स्मार्ट स्पीकर से संवाद करते हैं। ये उपकरण हमें तुरंत जवाब देते हैं, जिससे हमें क्षणिक सुकून मिलता है। कुछ अध्ययनों का दावा है कि ऐसे यंत्रों से बातचीत एकाकीपन को कम कर सकती है, खासकर उन लोगों में जो सामाजिक रूप से कटे हुए हैं।

मगर क्या यह सुकून सच्चा है? इन डिवाइसेज के साथ संवाद करते समय हम एक कृत्रिम भावनात्मक रिश्ता जोड़ लेते हैं। हम उन्हें केवल मशीन नहीं, बल्कि एक सहायक या साथी मानने लगते हैं। यह रिश्ता हमें तात्कालिक राहत देता है, मगर लंबे समय में यह हमें वास्तविक मानवीय रिश्तों से दूर ले जाता है। हम दोस्तों या परिवार से बात करने के बजाय अपने स्मार्ट डिवाइस से सवाल पूछना ज्यादा आसान समझते हैं। यह प्रवृत्ति सामाजिक दूरी को बढ़ाती है और एकाकीपन को और गहरा करती है। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि मानवीय संपर्क-चाहे वह आमने-सामने हो या दूरभाष पर-हमारे मानसिक कल्याण की रीढ़ है।

स्मार्ट डिवाइसेज, चाहे कितने भी बुद्धिमान हों, इस संपर्क की गहराई और भावनात्मक तृप्ति नहीं दे सकते। इसके साथ ही, स्मार्ट डिवाइसेज का अत्यधिक उपयोग हमारी रचनात्मकता और स्वतंत्र चिंतन को कमजोर कर सकता है। जब हर सवाल का जवाब एक आवाज के आदेश पर उपलब्ध हो, तो हम खुद सोचने और समस्याएं हल करने की कला भूलने लगते हैं। यह खासकर बच्चों और युवाओं के लिए खतरनाक है, जिनका मस्तिष्क अभी विकसित हो रहा है। यदि वे हर जानकारी के लिए स्मार्ट डिवाइसेज पर निर्भर रहेंगे, तो उनकी संज्ञानात्मक क्षमताएं सिकुड़ सकती हैं। उदाहरण के लिए, पहले लोग नक्शे पढ़कर रास्ता ढूंढते थे, जिससे उनकी स्थानिक बुद्धि पुष्ट होती थी।

आज हम जीपीएस और स्मार्ट डिवाइसेज के भरोसे हैं, जिससे यह क्षमता धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। स्मार्ट डिवाइसेज हमारी गोपनीयता को भी खतरे में डालते हैं, जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर अप्रत्यक्ष रूप से असर डालता है। ये यंत्र हमारी बातचीत को रिकॉर्ड करते हैं और हमारी रु चियों का विश्लेषण करते हैं। कई लोगों को यह डर सताता है कि उनकी निजी जानकारी गलत हाथों में पड़ सकती है। यह चिंता तनाव और अविश्वास को जन्म देती है, जो हमारे मन की शांति को भंग करती है। हालांकि कंपनियां डेटा सुरक्षा का दावा करती हैं, मगर डेटा उल्लंघन की घटनाएं इस विश्वास को कमजोर करती हैं। दूसरी ओर, स्मार्ट डिवाइसेज कुछ मामलों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी भी हो सकते हैं। कई स्मार्ट स्पीकर्स में ध्यान और माइंडफुलनेस के लिए गाइडेड सत्र उपलब्ध हैं, जो तनाव प्रबंधन और नींद में सुधार में सहायक हैं।

स्मार्ट डिवाइसेज़ का प्रभाव हमारी जीवनशैली और मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। यदि हम इनका उपयोग जागरूकता और संयम के साथ करें, तो ये हमारे जीवन को समृद्ध बना सकते हैं मगर अगर हम इन पर आंख मूंदकर निर्भर हो जाएं, तो ये हमारी भावनात्मक और संज्ञानात्मक शक्तियों को कमजोर कर सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि तकनीक हमारी सेवक है, न कि हमारी स्वामिनी। अपने मानसिक कल्याण को प्राथमिकता देने के लिए, हमें वास्तविक दुनिया से जुड़े रहना होगा-चाहे वह प्रकृति की गोद में समय बिताना हो, अपनों से दिल की बातें साझा करना हो, या स्वतंत्र रूप से चिंतन करना हो।

स्मार्ट डिवाइसेज के साथ हमारा रिश्ता एक नाजुक डोर पर टिका है-यह हमें सशक्त बना सकता है, मगर लापरवाही बरती तो हमारे मन की शांति को छीन भी सकता है। हमें हर कदम पर खुद से पूछना होगा: क्या ये यंत्र हमारी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं, या हमें एक कृत्रिम दुनिया में कैद कर रहे हैं? हमारी भावनाएं और विचार मशीनों के लिए नहीं, बल्कि इंसानों के लिए हैं। तकनीक ने हमें अनगिनत उपहार दिए हैं, मगर हमारा मन हमारी अपनी अमानत है। इस अमानत को संभालने की कला ही हमें सिखाएगी कि स्मार्ट डिवाइसेज हमारे जीवन को संवारें, न कि मन की शांति को बिखेरें।

प्रो. आर.के. जैन


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