साइबर अपराध : सावधानी ही बचाव है

Last Updated 18 Apr 2024 01:23:36 PM IST

अनुसंधानकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने हाल में ‘विश्व साइबर अपराध सूचकांक’ तैयार किया है। इसके अनुसार साइबर अपराध के मामले में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है।


साइबर अपराध : सावधानी ही बचाव है

सूचकांक में 100 देशों को शामिल किया गया है। साइबर अपराध के मामले में रूस शीर्ष पर है, जबकि यूक्रेन दूसरे, चीन तीसरे, अमेरिका चौथे, नाइजीरिया पांचवे, रोमानिया छठे और उत्तर कोरिया सातवे स्थान पर है।

भारत में कई तरह के साइबर अपराध होते हैं। हाल के वर्षो में कॉल फॉरवर्डिंग के जरिए  साइबर अपराध करने की घटनाओं में उल्लेखनीय तेजी आई है। टेलीकॉम कंपनियां उपभोक्ताओं को कॉल फॉरवर्डिंग की सुविधा देती हैं, जिसके तहत कॉल एवं एसएमएस को फॉर्वड किया जाता है। उपभोक्ताओं को कॉल फॉरवर्डिंग की सुविधा नंबर पर यूएसएसडी बेस्ड कॉल फॉरवर्डिंग की सेवा को एक्टिवेट करने पर मिलती है। यूएसएसडी कोड का इस्तेमाल आम तौर पर बैलेंस या फोन का आईएमईआई नंबर जानने के लिए किया जाता है।

यह ऐसा फीचर है, जिसकी मदद से एक कोड डायल करके सेवाओं को शुरू या बंद करवाया जा सकता है। कॉल फॉरवर्डिंग के जरिए स्कैमर कॉल करके उपभोक्ताओं को कहता है, ‘हम आपकी टेलीकॉम प्रोवाइडर कंपनी से बोल रहे हैं। हमने नोटिस किया है कि आपके नंबर पर नेटवर्क की समस्या है। समस्या को दूर करने के लिए आपको ‘स्टार 401 हैशटैग’ नंबर डायल करना होगा।’ यह नंबर डायल करने के बाद उपभोक्ता को अंजान नंबर पर कॉल करने के लिए कहा जाता है। जैसे ही, उपभोक्ता कॉल करता है, उसके सभी कॉल और मैसेज स्कैमर के पास पहुंच जाते हैं, जिनमें बैंक और क्रेडिट कार्ड से किए जाने वाले लेन-देन के ओटीपी भी शामिल होते हैं। कॉल और ओटीपी का इस्तेमाल स्कैमर उपभोक्ता के बैंक खाते से पैसे निकालने, सोशल मीडिया में एक्सेस करने और नया सिम जारी करवाने में करते हैं।

कॉल फॉरवर्डिंग के जरिए किए जा रहे साइबर अपराध को रोकने के लिए सरकार ने 15 अप्रैल, 2024 से यूएसएसडी बेस्ड कॉल फॉरवर्डिंग की सेवा बंद कर दी है। इसलिए स्मार्टफोन उपभोक्ताओं को कहा गया है कि अपने मोबाइल फोन की सेटिंग की जांच करें और ‘स्टार 401 हैशटैग’ नंबर डायल करने पर कॉल फॉरवर्डिंग की सेवा चालू दिखती है, तो उसे तुरंत बंद कर दें।

विगत वर्षो में डिजिटलाइजेशन के साथ-साथ साइबर अपराध में तेज वृद्धि हुई है। अब तो फेसबुक और इंस्टाग्राम भी ठगी के साधन बन गए हैं। गूगल सर्च इंजन पर लोग अपने हर प्रश्न का जबाव ढूंढ रहे हैं। ऐसे मनोविज्ञान को दृष्टिगत कर ठग नामचीन भुगतान एप्स जैसे, गूगल पे, फोन पे, पेटीएम के नाम से अपना नंबर इंटरनेट पर सहेज रहे हैं, जिसके कारण खुद से लोग हैकर्स के जाल में फंस जाते हैं। अब तो ब्राउजर एक्सटेंशन की डाउनलोडिंग के जरिए भी साइबर अपराध किए जा रहे हैं। यह काम वायरस के जरिए किया जाता है।

सार्वजनिक चार्जर पोर्ट के माध्यम से भी मोबाइल एवं लैपटॉप संक्रमित हो जाते हैं। क्रोम, मोजिला आदि ब्राउजर के जरिए किए गए ऑनलाइन लेन-देन ब्राउजर के सर्वर में सेव हो जाते हैं, जिन्हें सेटिंग में जाकर डिलीट करने की जरूरत होती है, लेकिन अज्ञानतावश लोग ऐसा नहीं करते और इसका फायदा साइबर ठगों को मिल जाता है। इसलिए जरूरी है कि बैंकिंग डिजिटल उत्पादों जैसे डेबिट और क्रेडिट कार्ड, एटीएम, यूपीआई, इंटरनेट बैंकिंग, क्यूआर कोड आदि के उपयोग में विशेष सावधानी बरती जाए क्योंकि इनके उपयोग में बरती गई असावधानी आपकी  जेब को खाली कर सकती है।

फिशिंग के तहत किसी बड़ी या नामचीन कंपनी या यूजर की कंपनी की फर्जी बेवसाइट, जिसका स्वरूप असली बेवसाइट जैसा होता है, बना कर लुभावने मेल किए जाते हैं, जिनमें मुफ्त में महंगी चीजें देने की बात कही गई होती है। मोबाइल का चलन बढ़ने के बाद हैकर्स एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिए भी ऑफर वाले मैसेज भेजते हैं, जिनमें मैलवेयरयुक्त हाइपर लिंक दिया हुआ होता है। मैलवेयर, कंप्यूटर या मोबाइल या टैब में इंस्टॉल सॉफ्टवेयर को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ यूजर की वित्तीय जानकारी जैसे डेबिट या क्रेडिट कार्ड का विवरण, उनके पार्सवड, ओटीपी, मोबाइल नंबर, पता, बैंक खाता नंबर, जन्मतिथि आदि चुरा लेता है।

यह यूजर की जानकारी के बिना उसके ईमेल खाते से दूसरे को फर्जी ईमेल भी भेज सकता है, और इसके जरिए ठगी करने के साथ-साथ संवेदनशील जानकारी अवांछित लोगों को बेची भी जा सकती है। इसकी मदद से किसी की सामाजिक प्रतिष्ठा को भी धूमिल किया जा सकता है। आजकल साइबर अपराधी फोन कॉल्स या एसएमएस द्वारा लोगों को बिना कर्ज लिए ही कर्जदार बता कर उनसे पैसों की वसूली कर रहे हैं। लोन रिकवरी एजेंट धमकी देते हैं, आपने हमसे कर्ज लिया है और अगर दो-तीन दिनों में पैसे वापस नहीं करेंगे तो आपकी आपत्तिजनक तस्वीरें वायरल कर दी जाएंगी।

यूजर पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़; आज सभी साइबर अपराध के शिकार बन रहे हैं। ऑनलाइन ठगी से न तो शहरी क्षेत्र के लोग बच पा रहे हैं, और न ही ग्रामीण क्षेत्र के लोग। बड़े अधिकारी, बैंक अधिकारी, जज, विधायक, सांसद, मंत्री, पुलिस सभी इसके शिकार हो रहे हैं। बैंक के डिजिटल उत्पाद साइबर अपराध का जरिया बन गए हैं। फिर भी, सजग और जागरूक रह कर डिजिटल उत्पादों से किए जा रहे साइबर अपराधों से बचा जा सकता है। लोग ब्राउजिंग सेशन के दौरान संदेहास्पद पॉप अप से सतर्क रहें, https:// पैड लॉक सिंबल वाला URL है या नहीं को सुनिश्चित करें, वेबसाइट्स या मोबाइल या पब्लिक लैपटॉप या डेस्कटॉप पर कार्ड की जानकारी साझा नहीं करें, अनजान नंबर या ईमेल आईडी से आए अटैचमेंट को तुरंत डिलीट कर दें और ऑनलाइन लॉटरी, कैसिनो, गेमिंग, शॉपिंग या फ्री डाउनलोड वाले मैसेज की उपेक्षा करें तो फिशिंग मेल या एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिए फॉर्वड होने वाले संदेहास्पद हाइपर लिंक के जाल से बचा जा सकता है। मामले में सावधानी ही बचाव है। लालच नहीं करें। यह सभी समस्याओं की जड़ है। मनोवैज्ञानिक दबाव में नहीं आएं। धमकी मिलने पर पुलिस की मदद लेने से नहीं हिचकें। निडर बनें। तभी साइबर अपराध का शिकार बनने से बचा जा सकता है।

सतीश सिंह


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