अंबेडकर जयंती : राष्ट्र तो सबसे ऊपर
मध्य प्रदेश की महु छावनी में 14 अप्रैल, 1891 को पिता सूबेदार रामजी सकपाल एवं माता भीमाबाई के परिवार में बाबा साहब का जन्म हुआ था।
अंबेडकर जयंती : राष्ट्र तो सबसे ऊपर |
कुशाग्र बुद्धि, अथक परिश्रमी, शिक्षाविद्, शोषित, वंचित, पीड़ितों के प्रति संघर्ष के कारण मसीहा के रूप में उनको पहचान मिली। आर्थिक विशेषज्ञ, श्रमिक नेता के साथ-साथ राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत बाबा साहब का जीवन था। बाबा साहब सामाजिक समता एवं सामाजिक न्याय के प्रति जीवन पर्यत संघर्ष करने वाले समाज उद्धारक थे। संविधान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के कारण सभी भारतीय बाबा साहब को संविधान निर्माता के रूप में स्मरण करते हैं।
इस बार डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के जन्मदिवस का प्रसंग उस समय आया है, जब हमारे देश में लोक सभा के लिए चुनाव का आयोजन हो रहा है। लगभग 97 करोड़ मतदाता आगामी पांच वर्ष के लिए 18वीं संसद का गठन अपने मतदान से करेंगे। 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद लगभग 2 करोड़ युवा मतदाता भी पहली बार अपने मत का उपयोग कर अपने लिए सरकार चुनने का कार्य करने वाले हैं। इस समय समस्त राजनीतिक दल एनडीए एवं इंडिया दो समूहों में विभाजित हो गए हैं। एनडीए का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के सक्षम हाथों में है, जो 10 वर्ष की अपनी उपलब्धियों के आधार पर देश भर के मतदाताओं से भाजपा एवं गठबंधन को वोट देने का आह्वान कर रहे हैं। वहीं अनिर्णित नेतृत्व के साथ एवं भाजपा सरकार की नीतियों का विरोध कर इंडिया गठबंधन अपने लिए वोट मांग रहा है।
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र (न्याय पत्र) में वादा किया है कि ‘कांग्रेस भोजन, पहनावे, प्यार एवं शादी जैसे व्यक्तिगत विषय पर हस्तक्षेप नहीं करेगी’। यदि इस वादे के माध्यम से कांग्रेस देश में पिछले दिनों कर्नाटक के स्कूलों में हुए हिजाब घटनाक्रम एवं लव जेहाद की मानसिकता को समर्थन कर रही है, तब यह देश के लिए आत्मघाती कदम होगा। योजनाबद्ध तरीके से गैर-मुस्लिम लड़कियों (हिन्दू, ईसाई) को प्रेम जाल में फंसा कर एवं बाद में नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर करना बहुसंख्यक समाज के साथ बहुत बड़ा षड्यंत्र है। लव जेहाद की इसी मानसिकता को केरल सहित देश के अनेक हिस्सों में सरकारी एजेंसियों ने भी उद्घाटित किया है।
देश विभाजन का दंश झेल चुके समाज में यह पुन: विभाजन का भय पैदा करता है। यूरोप सहित दुनिया के अनेक देश ऐसे विषयों पर कठोर कानून बना रहे हैं। उत्तराखंड की भाजपा सरकार संविधान की भावना पूर्ति करते हुए समान नागरिक संहिता लाई है। संविधान सभा की बहस में अल्लादिकृष्णा स्वामी एवं के.एम. मुंशी का समर्थन करते हुए बाबा साहब अंबेडकर ने भी समान नागरिक संहिता का समर्थन करते हुए कहा था कि ‘समान नागरिक संहिता संविधान मसौदे का मुख्य लक्ष्य है।’ सर्वोच्च न्यायालय ने भी अनेक बार अपने निर्णयों में इसके समर्थन में निर्देशित किया है।
वास्तव में देखा जाए तो देश में नक्सलवाद एवं सीमावर्ती आतंकवाद कम हुआ है। गुंडे, बदमाश, आतंकवादी एवं आतंकवाद का समर्थन करने वाले भयाक्रांत हैं। भय का वातावरण यदि है तो भ्रष्टाचारियों में है, जो देश की संपत्ति को अपनी संपत्ति मान बैठे थे। उनमें भय अच्छे प्रशासन का लक्षण है। परिवार के आधार पर चलने वाले दलों के नेताओं में अपने अस्तित्व के समाप्त होने का भय है। संविधान सभा की बहस के समय सभा के सदस्य महावीर त्यागी ने चिंता व्यक्त करते हुए परिवारवाद की ओर इंगित करते हुए कहा था कि भविष्य में एक विशिष्ट वर्ग ‘वृत्तिभोगी राजनीतिज्ञों’ का जन्म होगा, जो अपने जीवन यापन के लिए राजनीति पर ही आश्रित रहेंगे।
देश में उपजी परिवारवादी पार्टी उनकी उस समय की चिंता का प्रकट रूप है। एजेंसियां दोषियों पर कार्रवाई करें यह उनसे अपेक्षित ही है। न्यायालयों के निर्णयों ने भी एजेंसियों का समर्थन किया है। शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के भवन निर्माण के लिए छपी रसीद बुकों के संग्रह के समय कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बाबा साहब ने कहा था कि ‘पावती पुस्तकें न लौटाना एवं संपूर्ण संग्रह न जमा करना संगठन और जनता के साथ सरासर धोखा है। ऐसा धोखा कानूनन अपराध है।’ बाबा साहब के ये विचार भ्रष्टाचार के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रकट करते हैं।
कांग्रेस द्वारा अपने न्याय पत्र में सामाजिक न्याय का संदेश देने वाले महापुरुषों को पाठ्यक्रमों में स्थान देने एवं बाबा साहब डॉ. अंबेडकर के नाम से भवन एवं पुस्तकालय खोलने का वादा किया गया है, जबकि कांग्रेस का व्यवहार सदैव बाबा साहब के प्रति उपेक्षा का ही रहा है। मुंबई एवं भंडारा चुनावों में कांग्रेस बाधक बनी। संसद के केंद्रीय कक्ष में उनका चित्र लगाने की मांग को नेहरू जी ने खारिज किया।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के व्यवहार से अपमानित होकर एवं समाज विरोधी नीतियों के कारण उन्होंने 1951 में मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दिया था। उनको भारत रत्न के योग्य भी कांग्रेस ने नहीं समझा। बाबा साहब की स्मृति के स्थानों पर पंचतीथरे का निर्माण एवं उनके विचारों के अध्ययन के लिए शोध पीठ की स्थापना प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में हुई। सामाजिक न्याय के लिए कार्य करने वाले महापुरुषों को प्रतिष्ठा देने का कार्य प्रधानमंत्री मोदी द्वारा योजनाबद्ध तरीके से हुआ। भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को जनजाति गौरव दिवस की घोषणा, संत कबीरदास की पुण्य स्थली मगहर को भव्य बनाना, संत रविदास के जन्म स्थान काशी पर विकास का प्रकल्प, संत ज्योतिबा फुले, संत वसवेर, नारायण गुरु आदि महापुरु षों के विचारों का ‘मन की बात’ के समय उल्लेख, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इन महापुरुषों के प्रति संवेदनशीलता को प्रकट करता है।
वामपंथ प्रेरित इतिहासकारों ने पाठ्यक्रमों में इन महापुरु षों को उचित स्थान नहीं मिलने दिया। यह वामपंथी मानसिकता ही आज की कांग्रेस की दिशा-दर्शक बनी है। डॉ. अंबेडकर ने संविधान समिति के अपने अंतिम भाषण में कहा था कि यदि दलों ने अपनी राजनीतिक प्रणाली को राष्ट्र से श्रेष्ठ माना तो अपनी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है । हम संविधान में उल्लेखित ‘एक व्यक्ति एक मत और एक मत एक मूल्य’ को पहचानकर अपने मत का उपयोग करें यही डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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