मुद्दा : रोकनी होगी दुधमुंहे बच्चों की तस्करी

Last Updated 13 Apr 2024 01:32:39 PM IST

हाल ही में नाबालिग बच्चियों और एक महिला को पुलिस ने मानव तस्करों के गैंग से मुक्त कराया। घटना उत्तरी पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर की है।


मुद्दा : रोकनी होगी दुधमुंहे बच्चों की तस्करी

दक्षिणी परगना (पश्चिमी बंगाल) की 14 वर्षीय नाबालिग लड़की के लापता होने की प. बंगाल पुलिस तहकीकात कर रही थी, तब उन्हें सूचना मिली कि लड़की दिल्ली में है। उन्होंने दिल्ली पुलिस से सहायता मांगी। जांच में पता चला कि नाबालिग शाहदरा या उत्तर पूर्व दिल्ली में है। छानबीन में पता चला कि मंजली बीवी और उसका पति हसन इस तस्कर गिरोह के सरगना हैं।

इससे पूर्व सीबीआई ने तीन ऐसे नवजात शिशुओं को तस्करों से दिल्ली में मुक्त कराया जो पैदा ही हुए थे और उन्हें बेचने वाले सामने आए। इनमें से दो बच्चे डेढ़ दिन, तीसरा 15 दिन का था और लड़की एक महीने की थी। इसमें सीबीआई ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और पंजाब में छापे मारे। इन तहकीकात से पता चला कि अस्पतालों के कर्मचारी, बिचौलियों और तस्करों का जाल बिछा हुआ है।  तस्करों के इन सरगनाओं की भी गिरफ्तारी हुई, जिसमें पुलिस को पता चला कि नीरज सोनीपत हरियाणा और इंदु पवार दिल्ली के पश्चिम विहार के रहने वाले हैं।

उनका एक गिरफ्तार साथी असलम पटेल नगर का है। सीबीआई के सूत्रों के अनुसार मालवीय नगर की अंजली, जो खरीदार की जानकारी देती थी, को भी गिरफ्तार किया गया। तीन और महिलाओं पूजा कश्यप, ऋतु और कविता को भी गिरफ्तार किया गया। इन महिलाओं का काम होता था कि खरीदे हुए बच्चों का तब तक रख-रखाव करना, जब तक बच्चों के खरीदार न मिल जाएं। बच्चों के व्यापार में ऐसे भी लोग पाए गए, जिनकी संतान नहीं है, वे गोद लेने के लिए प्रयास करते हैं। सीबीआई के अनुसार छापेमारी में पता चला कि एक बच्चे की कीमत पांच लाख रुपये तक दी गई। सीबीआई ने उत्तर पश्चिम दिल्ली केशवपुरम से दो बच्चों को छुड़ाया। मानव तस्करों के पास सभी फर्जी कागजात को तैयार करने के तरीके थे।

वे गोद लेने के पेपर भी फर्जी बनाते थे। सीबीआई ने उन माता-पिताओं को भी ढूंढा है, जिनके बच्चे चोरी हुए थे, फिर चोरी किए बच्चों को असली माता-पिताओं के हवाले कर दिया। सीबीआई देश के कृत्रिम गर्भाधान केंद्रों पर भी नजर रखे हुई थी, इस अभियान में जयपुर में भी रेड डाली गई थी, वहां पर आरती नाम की महिला पैदा हुए बच्चों के व्यापार में संलग्न थी, एक दिन का बच्चा भी उसके पास था। यह बच्चों के व्यापारी पहले नवजात शिशुओं को इकट्ठा करते थे, उसके बाद जरूरतबंद लोगों को खोजते थे। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हर वर्ष 40 हजार बच्चों का अपहरण किया जाता है, जिनमें 11 हजार का कोई पता नहीं चल पाता। बाल तस्करी के पीछे कुछ मूल कारण हैं-गरीबी, शिक्षा की कमी और अपने परिवार को आर्थिक रूप से मदद करने की जरूरत। दूसरी ओर सरकार तस्करी के उन्मूलन के लिए न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं करती, केवल प्रयासभर ही चल रहे हैं।

देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर केंद्र सरकार की नीतिगत निगरानी के साथ, तस्करी विरोधी प्रयासों की प्राथमिक जिम्मेदारी थी। इन प्रयासों में मानव तस्करी के अधिक मामलों की जांच करना, कई तस्करी मामलों पर विदेशी सरकारों के साथ सहयोग करना और बंधुआ मजदूरी के लिए अधिक तस्करों को दोषी ठहराना शामिल था। राष्ट्रीय महिला आयोग ने मानव तस्करी विरोधी इकाइयों की क्षमता बनाने के लिए एक नई तस्करी विरोधी इकाई शुरू की। सरकार ने तस्करी सहित अपराध के शिकार बच्चों के लिए सुरक्षा सेवाओं के राज्य और क्षेत्र विस्तार का समर्थन करने के लिए एक नये कार्यक्रम को मंजूरी दी जो सही ढंग से कार्य नहीं कर रहा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार दर्ज किए गए मामालों की संख्या के आधार पर सबसे अधिक मानव तस्करी की घटनाओं वाले शीर्ष तीन राज्य पश्चिम बंगाल, राजस्थान और गुजरात हैं। अपराध दर के आधार पर सबसे अधिक मानव तस्करी की घटनाओं वाले राज्यों में प. बंगाल सबसे आगे है। ध्यान देने की आवश्यकता है कि हमारी सरकारी एजेंसिया कितनी तेजी से अपराधों को पकड़ने में सहायक होती हैं। सामाजिक सुरक्षा एक प्रमुख मुद्दा है। किसी देश की पहचान इसी के आधार पर आंकी जाती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का दायिव है कि इस गंभीर मसले से सही तरीके से निपटें, क्योंकि बगैर इसके हम बहुत सारे नौनिहालों को बलि की बेदी पर बिठा रहे हैं।

भगवती प्र. डोभाल


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