वैश्विकी : पूर्व से पश्चिम तक संकट में एशिया

Last Updated 14 Apr 2024 12:39:31 PM IST

जापान के प्रधानमंत्री किशिदा की हाल की अमेरिका यात्रा के दौरान एशिया में अमेरिका और पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो को प्रकारांतर से खुला न्यौता दिया गया। किशिदा ने अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए अमेरिका के विश्व स्तर पर कायम वर्चस्व को बनाए रखने की वकालत की।


वैश्विकी : पूर्व से पश्चिम तक संकट में एशिया

उन्होंने अमेरिका की हिमायत में वे सभी बातें कहीं जो वहां के नेताओं और सांसदों के लिए कर्णप्रिय थीं। किशिदा ने अमेरिका के नेतृत्व और नीतियों की इतनी पुरजोर तारीफ की कि पता लगाना मुश्किल हो गया कि अमेरिका ही वह देश था जिसने नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए थे। इस हमले के लिए अमेरिका ने कभी जापान से माफी नहीं मांगी। किशिदा जैसे जापानी नेताओं ने मानो यह स्वीकार कर लिया कि परमाणु हमले के लिए हम खुद जिम्मेदार थे।

किशिदा का संबोधन भारत और एशिया के अन्य देशों के लिए समस्या पैदा कर सकता है। सबसे अधिक हैरानी की बात यह है कि उन्होंने चीन के साथ ही रूस पर भी निशाना साधा। उन्होंने दक्षिण चीन सागर और पूर्व एशिया में चीन की आक्रामक गतिविधियों का हवाला देते हुए कहा कि यह क्षेत्र नया यूक्रेन बन सकता है। जाहिर है कि वह अमेरिका के नेताओं से गुहार लगा रहे थे कि वे यूक्रेन युद्ध पर ध्यान देते समय इंडो पेसेफिक देशों को नजरअंदाज न करें। किशिदा ने कहा कि उनका देश रूसी आक्रमण के खिलाफ संघषर्रत यूक्रेन के साथ खड़ा है। किशिदा ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की इंडो पेसिफिक में सक्रियता बढ़ाने पर जोर दिया। उनके भाषण का यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वह एक ‘एशियाई नाटो’ के पक्ष में है।

गौर करने वाली बात होगी कि पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे वर्षो पहले क्वाड के जरिए अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया को एक मंच पर लाए थे। क्वाड का कोई सैनिक मंसूबा नहीं था, लेकिन किशिदा जिस एशियाई सुरक्षा ढांचे की बात कर रहे हैं, वह अमेरिका के वर्चस्व वाला सैनिक गठबंधन जैसा है। जाहिर है कि भारत किशिदा के इन विचारों और नीतियों से सहमत नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक को दिए गए साक्षात्कार में चीन के साथ संबंधों को पटरी पर लाने के लिए एक पहल की है। मोदी ने कहा है कि सीमा पर लंबे समय से चल रहा तनाव दोनों देशों में से किसी के हित में नहीं है। उनकी यह सोच किशिदा से एकदम अलग है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी के बीच किशिदा की यह यात्रा बाइडन को राजनीतिक रूप से फायदा पहुंचा सकती है। किशिदा ने कहा कि अमेरिका के नेताओं को अपनी ग्लोबल भूमिका को लेकर कोई संदेह और दुविधा नहीं होनी चाहिए। अमेरिका ने अपने बलबूते दुनिया में स्थायित्व कायम रखा है। उसे अपनी यह भूमिका जारी रखनी चाहिए तथा इस क्रम में जापान पूरी तरह उसके साथ है। जापान को दूसरे विश्व युद्ध के बाद निशस्र कर दिया गया था।

तकनीकी रूप से जापान आज भी सेना नहीं रख सकता लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों की सैन्य मुहिम को बिना शर्त समर्थन देने का ही नतीजा है कि जापान आज एक सैन्य ताकत बनने की राह पर है। जिस देश से शांति के पैगाम की उम्मीद थी, वह युद्ध का नगाड़ा बजा रहा है। वह भी ऐसे समय जब गाजा में इस्रइल का नरसंहार जारी है तथा फारस की खाड़ी के बीच संभावित संघर्ष जापान के लिए मारक सिद्ध हो सकता है। यह संघर्ष यदि व्यापक रूप लेता है तो दुनिया का कच्चे तेल का आधा कारोबार ठप हो जाएगा। रूस से ऊर्जा आयात कम करने वाला जापान इस नये संकट का सामना कैसे करेगा।

वास्तव में भारत के लिए भी पश्चिम एशिया का संकट नई आर्थिक चुनौती पेश कर सकता है। गनीमत यह है कि रूस एक विश्वसनीय ऊर्जा प्रदाता देश है जो आड़े समय में भारत के काम आएगा। आने वाले दिनों में कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय मूल्य कितना ऊपर जाता है, यह विश्व अर्थव्यवस्था की बहाली के लिए निर्णायक होगा। रूस के खिलाफ यदि प्रतिबंध जारी रहा और पश्चिमी एशिया से तेल आपूर्ति बाधित हुई तो जापान और यूरोप के देशों की अर्थव्यवस्था की कमर टूट सकती है।

डॉ. दिलीप चौबे


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