पाकिस्तान : धांधली की सरकार
किसी भी लोकतांत्रिक देश के नए प्रधानमंत्री सदन में जब पहला भाषण देते हैं, तो वे पक्ष-विपक्ष की राजनीति से कहीं दूर देश की भावी स्वर्णिम संभावनाओं को लेकर अपना नजरिया सामने रखते हैं, लेकिन पाकिस्तान में ऐसा कुछ भी नहीं होता क्योंकि वहां असल लोकतंत्र दिखाई ही नहीं पड़ता।
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दरअसल, पाकिस्तान में पाकिस्तान मुस्लिम लीग, नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बीच गठबंधन सरकार का गठन हुआ और शहबाज शरीफ को दूसरी बार पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुना गया।
कर्ज में डूबे पाकिस्तान को नई सरकार कैसे राहत देगी, इस पर नए प्रधानमंत्री के किसी विजन का इंतजार करते पाकिस्तानी अवाम को निराशा ही मिली। शहबाज ने अपने भाषण में इमरान खान और उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर निशाना साधते हुए पाकिस्तान सेना मुख्यालय पर हमला करने वालों को देशद्रोही करार दिया। पिछले साल इमरान की गिरफ्तारी के बाद देश भर में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया था। इनमें से कुछ हिंसक हो गए थे। लाहौर में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के आवास समेत सेना की दूसरी इमारतों पर हमले के आरोप में इमरान के सैकड़ों समर्थकों को गिरफ्तार किया गया था। शाहबाज ने अपने पहले भाषण में कश्मीर को लेकर भी विवादित बातें कहते हुए साफ कर दिया कि इस सरकार से भी भारत से बेहतर संबंधों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। नई सरकार को पाकिस्तान की विपक्षी पार्टयिां जियाओं और जुल्फिकारियों की सियासत कह रही हैं।
पाकिस्तान मुस्लिम लीग, नवाज के प्रमुख नेता नवाज शरीफ, जनरल जिया उल हक की खोज माने जाते हैं, वहीं पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी उन जुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी है जिसे पाकिस्तान में लोकतंत्र का असल हत्यारा माना जाता है क्योंकि उनके दौर में ही चुनावी जीत को सेना ने बंधक बना कर बांग्लादेश के जन्म का रास्ता प्रशस्त कर दिया था। पाकिस्तान की नई सरकार का विपक्ष को लेकर दृष्टिकोण भी पहले दिन ही सामने आ गया। पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के नेता जब भाषण देने लगे तो उसका प्रसारण पाकिस्तान की सरकारी टीवी से गायब हो गया।
पाकिस्तान के आम चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ही बनकर उभरी है। पाकिस्तान में 2018 का चुनाव बिना नवाज शरीफ के हुआ था, वहीं इस बार प्रतिबंध की तलवार इमरान पर लटकी। इमरान को राजनीति से प्रेरिश्वत मामलों में जेल में डाल दिया गया और चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। अट्ठावन फीसद निरक्षरता दर वाले पाकिस्तान में मतपत्र पर उम्मीदवारों के पहचानने लायक चुनाव चिह्न का होना महत्त्वपूर्ण माना जाता है, जबकि चुनाव आयोग ने पीटीआई से उसका चुनाव चिह्न बैट जब्त कर सुनिश्चित किया कि इमरान का जादू खत्म हो, लेकिन इसके बावजूद इमरान समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने 93 सीटें जीत कर नवाज और भुट्टो की सियासत बेदम कर दी।
माना जा रहा था कि नवाज शरीफ सेना की मदद से बहुमत से चुनाव जीतेंगे लेकिन जनता ने सेना और शरीफ के मंसूबों पर पानी फेर दिया। शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग दूसरे नंबर पर रही और उसे 75 सीटें मिलीं। बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी 54 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही। जनता इसे धांधली की सरकार कह रही है। पाकिस्तान में मतदान के दिन इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी गई थी और चुनाव में बड़े पैमाने पर अनियमितता के आरोप लगे। पाकिस्तान चुनाव आयोग के सामने मतदान सामग्री छीनने और उसे नुकसान पहुंचाने की कई शिकायतें मिलीं वहीं चुनाव धांधली के खिलाफ कई रैलियां निकाली गई। पाकिस्तान में चुनाव परिणामों में हुई देरी के विरोध में पीटीआई ने रविवार को देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया। पीटीआई ने दावा किया है कि उसके समर्थित उम्मीदवारों ने सबसे अधिक सीटें जीती हैं, लेकिन नतीजों में हेरफेर किया गया। सेना ने प्रशासन पर कब्जा करके फॉर्म 45 में जीते कैंडिडेट को फॉर्म 47 में हरा दिया। चुनाव में धांधली के मामले कोर्ट तक पहुंच गए हैं। हारे हुए उम्मीदवार अनंतिम परिणामों को चुनौती देने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं। अदालतें ऐसे मामलों से भर गई हैं।
नई सरकार के देश की एकता एवं अखंडता कायम करने की चुनौती भी है। पाकिस्तान की जेल में बंद पाकिस्तान तहरीक- ए-इंसाफ समर्थित उम्मीदवार अली अमीन गंडापुर को अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत का मुख्यमंत्री चुना गया है। सशस्त्र समूह प्रतिबंधित पाकिस्तानी तालिबान का इस प्रांत में प्रभाव है। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में कई कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन प्रभावी हैं, और पूरे प्रांत की सुरक्षा करना सेना के लिए मुश्किल काम रहा है। सेना इलाके में अशांति के लिए अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को जिम्मेदार मानती है। इस समय पीटीआई और सेना के बीच संबंध बेहद खराब हैं। इससे खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सेना और आम लोगों के बीच विवाद बढ़ने की आशंका है। इससे पश्तून राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिलेगा और पाकिस्तान में फिर विभाजन का खतरा गहरा सकता है। इन सबके बीच सेना की स्थिति जटिल हो गई है। सेना ने शरीफ की घर वापसी इसलिए कराई थी कि वे चुनाव जीत कर पाकिस्तान का वैिक स्तर पर नेतृत्व कर सकें। वैिक संस्थाओं की मदद लेने के लिए पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार होना जरूरी है। लिहाजा, सेना उन्हें मुखौटा बना कर प्रशासन करना चाहती थी, लेकिन जनता ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया।
इमरान अभी जेल में हैं, सेना और नई सरकार बखूबी जानती है कि इमरान को लेकर कोई कठोर निर्णय देश में अराजकता को बढ़ा सकता है। पाकिस्तान चीन के कर्ज के बोझ में दबा रहा है और उस पर सीपीईसी परियोजना पूरा करने का गहरा दबाव है, जबकि बलूचिस्तान के लोग इस परियोजना को संसाधनों की लूट के तौर पर देखते हैं। इसके साथ ही बलूचिस्तान देश की मांग हिंसा को बढ़ा रही है। पाकिस्तान के पड़ोसी देशों से संबंध बेहद खराब दौर में पहुंच गए हैं। ईरान और पाकिस्तान सैन्य टकराव के करीब पहुंच चुके हैं, अफगानिस्तान से लगती उसकी सीमा रेखा को तालिबान स्वीकार नहीं करता वहीं भारत से भी उसके संबंध जटिल बने हुए हैं। शहबाज शरीफ के सामने घरेलू और वैिक स्तर पर विसनीयता का संकट है , और यह पाकिस्तान की समस्याओं को और बढ़ा सकता है।
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