आवारा पशु : छोड़ने वालों पर भी कसें नकेल

Last Updated 05 Mar 2024 01:15:12 PM IST

आवारा जानवरों के एकाएक हमलों से राहगीरों की होने वाली मौतें, जबरदस्त चिंता का सबब बनी हुई हैं। कम से कम भारत में आवारा जानवरों को लेकर न तो कोई सख्ती है और न ही लोग खुद ही जागरूक।


आवारा पशु : छोड़ने वालों पर भी कसें नकेल

ऐसे में भरे बाजार, बीच सड़क या हाइवे पर कब कौन सा गोवंश एकाएक आ टकराए या आजू-बाजू से हमला कर दे जिसमें जान तक चली जाए, पता नहीं। सबसे ज्यादा हैरानी और परेशानी तब होती है, जब बेहद शांत और अपनी मस्त चाल में चलने वाला अमूमन अहिंसक माना जाने वाला पशु भी एकाएक बिजली की रफ्तार से पलक झपकते, आक्रामक हो जाए और टूट पड़े।
निश्चित रूप से इसे रोकना होगा। आवारा कुत्तों काटने से हर रोज देश भर में सैकड़ों औसतन घायल होते हैं। लेकिन सवाल वही कि कैसे रु के? ऐसी दुर्घटनाओं का सटीक आंकड़ा नहीं है। कुछ बीमा प्रदाता कंपनियों के अपने आंकड़े जरूर हैं। अनेकों रपटों से साफ है कि देश में सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं महानगरों में होती हैं। लेकिन यह भी सच है कि शहर, कस्बे, गांव हर कहीं ऐसी घटनाएं अब आम हैं।

सर्वाधिक घटनाएं कुत्तों के काटने से होती हैं लेकिन गोवंश के अलावा कुछ जंगली पशुओं के भी एकाएक हमले बढ़े हैं। बीच आबादी में लगातार ऐसी दुर्घटनाएं बड़ी चिंता का सबब हैं। आवारा गोवंश और कुत्तों के बेहद खतरनाक होने का सच यही है कि कई बार पेट नहीं भरने से इनकी मानसिक स्थितियां आपे से बाहर हो जाती हैं। इसके साथ बदलते पर्यावरणीय हालातों पर भी कई शोध सामने आए हैं, जिनसे पशुओं के तंत्रिका तंत्र और मनोदशा पर बुरा प्रभाव पड़ा है। देश का शायद ही कोई प्रान्त, जिला, कस्बा या गांव बचा हो, जहां कभी किसी आवारा जानवर के हमले से दुर्घटना न हुई हो। बीच आबादी, हिंसक होते आवारा पशुओं के बर्ताव में यह तब्दीली क्यों और कैसे आई, इस पर जानकर भी अंजान रहना बड़ी वजह है। कभी, कहीं कोई घटना घट जाती है तो दो-चार दिन चर्चा और विरोध होता है उसके बाद लोग धीरे-धीरे भूल जाते हैं।

ऐसी घटनाओं को न रोक पाना स्थानीय निकायों की विफलता है। पर्याप्त फण्ड और कैटल कैचिंग दस्ता होने के बावजूद दुर्घटनाएं होना और नहीं जागना और भी दुखद है। सबको पता है कि बरसात के मौसम में क्या गांव, क्या शहर, क्या महानगर हर कहीं बेखौफ होकर आवारा पशु उसमें भी विशेषकर गोवंश सड़कों पर आराम फरमाते नजर आते हैं। इससे सड़क से गुजर रहे वाहनों को जितनी परेशानी होती है, उतनी ही उन सड़कों के किनारे रहने या आने-जानेवाले स्थानीय रहवासियों को भी। कई बार सड़कों पर कब्जा जमाए बैठे पशु एकाएक बिदक जाते हैं, जिससे बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं।

चाहे बीते दिनों का वह वायरल वीडियो हो जिसमें एक स्कूटी सवार को बेहद शांत भैंस ने न केवल एकाएक सींग में फंसा कर पटक दिया बल्कि रोकने वालों को भी खदेड़ा। या फिर देश भर में गोवंश के आकस्मिक हमलों से हुई दुर्घटनाओं और मौतों की विचलित करती सच्चाइयां। सब चिंताजनक हैं। ऐसी घटनाएं महानगर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकता, अहमदाबाद, लखनऊ, बनारस, भोपाल, भुवनेर हों या देश के छोटे-मझोले नगर, कस्बे गांव हर कहीं, एकदम आम हैं। आंकड़े बताते हैं कि औसतन तीन लोगों की मौत हर रोज आवारा पशुओं द्वारा भीड़-भाड़ वाले इलाकों में हमलों से हो रही है। वहीं आवारा कुत्तों के काटने की वार्षिक संख्या लाखों में है।

सोचिए, सड़कों पर बैठे ऐसे आवारा पशुओं के झुण्ड आबादी वाले इलाकों में ही क्यों नजर आते हैं? यकीनन ये बदकिस्मत जानवर जिन्हें हम आवारा कहते हैं, वास्तव में आवारा नहीं होते। सच्चाई यह है कि इनमें ज्यादातर बूढ़े या दूध नहीं देने वाले गोवंश होते हैं, जिन्हें भूख मिटाने, आवारा छोड़ दिया जाता है। इनके मालिक ऐसे अनुपयोगी पशुओं पर खर्च न कर सड़क या हाट-बाजार में अपने रहमों करम पर जिन्दा रहने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसे पशु पालक या मालिक, थोड़ी सी कोशिशों से चिन्हित किए जा सकते हैं। इनकी ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदारी और प्रभावी कानून नहीं होने से इनमें कोई खौफ भी नहीं होता। कई बार स्थानीय स्तर पर अपने प्रभाव का भी ऐसे पशु पालक दुरु पयोग करते हैं।

यह सब रोकने के लिए भारत भूमि पर, एक सख्त राष्ट्रीय कानून की दरकार है। इसमें व्यवस्थाएं हो कि कम से कम दुधारू पशुओं सहित सभी पालतू पशुओं के खरीदने-बेचने और उनके जन्म-मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य हो। पशुओं के कानों पर लगे पीले टैग को चिपयुक्त या क्यूआर कोड बनाया जाए जिसमें उसके पालक का संपूर्ण विवरण और पशु के स्वास्थ्य तथा उसकी दशा आदि दर्ज हो। इसके लिए स्थानीय निकाय व पशु चिकित्सा विभाग की सामूहिक जिम्मेदार सुनिश्चित की जाए। पशु में लगी टैगिंग या चिप निकाली नहीं जा सके और ऊपर से ही अपडेट हो। यदि किसी कारण से कोई अपने पशु को पालने में असमर्थ है तो उसे किसी पास की गौशाला या स्वयंसेवी संगठनों को सौंपने की व्यवस्था की जाए। यदि पशुपालन कमाने का जरिया हो सकता है तो उसे आवारा छोड़ना भी दण्डनीय होना ही चाहिए। निश्चित रूप से इससे बड़ा बदलाव आएगा।

ऋतुपर्ण दवे


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