ग्रामीण विकास : नल से उत्साह मगर जल संरक्षण जरूरी

Last Updated 28 Jan 2024 01:35:20 PM IST

निवाड़ी ब्लॉक और जिले के गांव मजरा मकारा (मध्य प्रदेश) के लोग बहुत खुश हैं कि यहां के नलों में पानी आ गया है।


ग्रामीण विकास : नल से उत्साह मगर जल संरक्षण जरूरी

उन्होंने बताया कि घर में नल का पानी आ जाए तो जिंदगी बहुत हद तक बदल जाती है। उनके गांव में पहले दो किमी. दूर पानी लेने जाना पड़ता था जहां खेत की सिंचाई वाले कुएं से पानी लाते थे। यह पूरी तरह साफ नहीं होता था। गांव में एक ही हैंडपंप ठीक से पानी दे रहा था और उस पर बहुत लाइन लगती थी। दिन में कितने ही चक्कर पानी लाने के लिए लगते थे। परिवार के एक सदस्य को तो इसी कार्य में अपना अधिक समय लगाना पड़ता था। पानी लाने का अधिक बोझ महिलाओं पर था पर अब कई महीनों से दिन में लगभग 40 मिनट पानी नल में आता था, जिससे जरूरत लायक पानी आ जाता है। पशुओं को पानी अब भी प्राय: कुएं या तालाब से ही पिलाया जाता है।

पहले स्कूल के बच्चों को भी पानी की बहुत कठिनाई थी। अब बच्चों को प्यास बुझाने में कठिनाई नहीं है। शौचालयों के लिए भी पानी उपलब्ध है और इस कारण उनका उपयोग भी बढ़ा है। अनेक गांवों में घर-घर नल का पानी पहुंचने से खुशी की लहर है, पर यदि गांव समुदाय में जागरूकता हो तो इस स्थिति को और बेहतर बनाया जा सकता है। कुछ ऐसी ही भूमिका निभाई है निवाड़ी ब्लॉक और जिले के राजापुर गांव में परमार्थ संस्था के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने। यहां आसपास के कुछ गांवों के नलों में पानी आ गया पर यहां नहीं आया तो यहां के कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से मिलकर बाधाओं को दूर किया ताकि गांव के नलों में शीघ्र पानी आ सके।

कुछ घरों के भीतर नल लगाने के स्थान पर इन्हें बाहर ही लगा दिया। ऐसे कुछ नल चुरा लिए गए और कुछ क्षतिग्रस्त हो गए। इनकी जगह नये नल लगाए गए और प्रयास हो रहे हैं कि नल घर के अंदर ही लगें ताकि सुरक्षित रहें। नलों में चाहे पानी टंकी से आ जाए, पर गांव के जल-स्रेतों की रक्षा करना और जल संरक्षण कार्य करते रहना बहुत जरूरी है। अत: यहां सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गांववासियों को प्रेरित किया कि टूट-फूट गए एक चेक डैम की भली-भांति मरम्मत कर दी जाए। इसमें श्रमदान की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। अब आगे एक और तालाब को बेहतर करने की योजना है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि पंचायत और  ठेकेदार में या किसी अन्य स्तर पर कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हो जाते हैं, पर हमारी जबावदेही और जिम्मेदारी समुदाय के सदस्यों के प्रति बनी रहेगी।

यहां के लोगों ने बताया कि लगभग 80 प्रतिशत परिवारों के शौचालय उपयोग हो रहे हैं, पर कुछ दलित परिवारों के लिए अभी शौचालय नहीं बने हैं। कुछ शौचालयों का प्रयोग पहले नहीं होता था, पर नल में पानी आने के बाद होने लगा। दूसरी ओर ऐसे भी गांव हैं जहां अभी पानी का इंतजार ही हो रहा है। टीकमगढ़ जिले (मध्य प्रदेश) के मोहनगढ़ ब्लॉक का खाकरौन गांव ऐसा ही गांव है। जिला और ब्लॉक मुख्यालय से अधिक दूरी पर स्थित ऐसे गांवों को अधिक इंतजार करना पड़ रहा है। ललितपुर जिले (उत्तर प्रदेश) के विजयपुरा गांव (तालबेहट ब्लॉक) की स्थिति अधिक विचित्र है। यहां तो टैंक बहुत पहले बन गया, नल लग गए थे पर बस ट्रायल का पानी आया, पर उसके बाद गायब हो गया। बम्होरी गांव (जिला ललितपुर, उत्तर प्रदेश) के नरैनी नाले पर लोगों के सामूहिक प्रयास और मनरेगा के आधार पर एक चेक डैम बना है, जिसने 50 से 60 एकड़ की सिंचाई में मदद की और बहुत सुनसान, उपेक्षित क्षेत्र को अच्छी उत्पादकता वाला क्षेत्र बना दिया। बाद में अधिक पानी की जरूरत पड़ने पर इसकी हेडवाल को और बढ़ाया गया। सिंचाई के साथ यहां मछली-पालन भी हो रहा है। आसपास का जल-स्तर भी बढ़ा रहा है, कुओं में बेहतर मात्रा पानी उपलब्ध है।

टीकमगढ़ जिले के मोहनगढ़ ब्लॉक के एक दूर के क्षेत्र के सात गांवों (जैसे खाकरौन, बरेठी, अचर्रा आदि) में नाबार्ड की एक वाटरशेड परियोजना का कार्य हो रहा है। इसमें ‘रिज से वैली’ सिद्धांत के अनुसार मिट्टी और जल संरक्षण, वृक्षारोपण आदि के कार्य हो रहे हैं। खेत-तालाब बनाना, वीयर और गैवियन आदि के माध्यम से नदी-नालों पर जल-संरक्षण कार्य इस परियोजना के अंतर्गत हो रहे हैं। आगे इसमें आजीविका और सामुदायिक विकास के अन्य कार्य भी जुड़ते जाएंगे। अभी इसमें कुछ ही कार्य हुआ है पर इसके भी काफी अच्छे परिणाम मिले हैं। कुओं में जल-स्तर ऊपर आते देखा जा सकता है। उम्मीद है कि इसमें जल-स्तर के सुधार से काफी मदद मिलेगी जिसकी बहुत जरूरत है।

खाकरौन गांव के लोगों ने बताया कि दो दशक में यहां जल-स्तर बहुत नीचे गया था पर बारगी नदी और दो नालों में जो जल संरक्षण कार्य हुआ है तो अब यह क्षति रुकी है और जल स्तर ऊपर आने लगा है। लोगों में उत्साह है। प्रमोद नामक किसान ने बताया है कि उसके पास कम भूमि है तो भी उसने अपने खेत में तालाब बनाया है क्योंकि जल-संरक्षण बहुत जरूरी है। गांववासियों ने बताया कि वाटरशेड के विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी अच्छी भागीदारी प्राप्त की जाती है। सागर जिले में बेहतर वाटरशेड विकास देखने के लिए कुछ गांववासियों को ले जाया गया तो वहां से भी अच्छी सीख लेकर आए। जल संरक्षण की दृष्टि से नदी पुनार्जीवन के कायरे में सबसे अधिक उत्साह नजर आ रहा है।

बरुआ नदी तालबेहट प्रखंड (ललितपुर जिला, उत्तर प्रदेश) में 16 किमी. तक बहने वाली नदी है जो आगे जामनी नदी में मिलती है। इस पर पहले बना चेक डैम टूट-फूट गया था और खनन माफिया ने अधिक बालू निकालकर भी इस नदी की बहुत क्षति की थी। इस स्थिति में परमार्थ संस्था की ओर से इस नदी की रक्षा के लिए विमर्श होता रहा, नदी पर यात्रा निकाली गई, इसकी रक्षा की समिति का गठन हुआ। नया चेक डैम बनाने के पर्याप्त संसाधन न होने के कारण यहां रेत भरी बोरियों का चेक डैम बनाने का निर्णय लिया गया। लगभग 5000 बोरियां एक संस्था ने उपलब्ध करवाई। इन्हें गांववासियों विशेषकर विजयपुरा की महिलाओं ने रेत से भरा और फिर इसे गांववासी नदी तक ले गए और वहां विशेष तरह से जमाया।

इस तरह बिना किसी मजदूरी या बड़े बजट के अपनी मेहनत के बल पर बोरियों का चेक डैम बनाया। इससे सैकड़ों किसानों को बेहतर सिंचाई प्राप्त हुई। गांव का, कुओं का जल-स्तर भी बढ़ा। गांववासियों और विशेषकर महिलाओं ने खनन माफिया के विरुद्ध कार्रवाई  के लिए प्रशासन से संपर्क किया और इस बारे में कार्रवाई भी हुई। आपसी सहयोग से हजारों पेड़ नदी के आसपास लगाए गए। नदी में कोई गंदगी या कूड़ा डालने के विरुद्ध अभियान चलाया गया। मोहनगढ़ ब्लाक में बहने वाली बारगी नदी को नया जीवन देने में हाल के हुए जल-संरक्षण कायरे से सहायता मिली है। इसके अतिरिक्त छतरपुर जिले (मध्य प्रदेश) में बछेड़ी नदी के पुनर्जीवन के भी कुछ उल्लेखनीय प्रयास हाल के समय में हुए हैं, जिनमें प्रशासन, संस्था और पंचायत का सहयोग देखा गया। चेक डैमों की मरम्मत हुई, नये चेक डैम बनाए गए और वृक्षारोपण भी हुआ।

भारत डोगरा


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