मुद्दा : शिक्षा के गिरते स्तर की तस्वीर

Last Updated 22 Jan 2024 01:31:59 PM IST

ग्रामीण भारत में 14-18 साल के किशोरों में बड़ी संख्या ऐसी है, जिनमें पढ़ने-लिखने की बुनियादी क्षमता नहीं है।


मुद्दा : शिक्षा के गिरते स्तर की तस्वीर

14-18 साल की उम्र के एक चौथाई किशोर छात्र अपनी क्षेत्रीय भाषा में लिखी दूसरी क्लास की किताब भी फर्राटे से नहीं पढ़ सकते। 42 फीसद से ज्यादा छात्र अंग्रेजी में लिखे वाक्य नहीं पढ़ सकते। जीरो सेंटीमीटर से शुरू कर स्केल मापना हो तो 85 फीसद छात्र लंबाई माप लेंगे लेकिन शुरु आती प्वॉइंट बदल देने पर यह संख्या मात्र 39 फीसद रह जाती है।

ये आंकड़े ‘एन्वल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (एएसईआर) के सर्वे में सामने आए हैं। सर्वेक्षण में लगभग 35 हजार किशोरों को शामिल किया गया। सर्वे 26 राज्यों के करीब 28 जिलों पर आधारित है। सरकारी और प्राइवेट, दोनों तरह के संस्थानों के छात्र इसमें शामिल किए गए। सर्वे का मुख्य फोकस ग्रामीण इलाकों के 14-18 साल की उम्र के किशोर थे। नि:संदेह एएसईआर सर्वे के आंकड़े शिक्षा की मौजूदा स्थिति की भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं। बड़ा सवाल यह नहीं है कि यह गिरावट हो रही है, बल्कि यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है।

उत्तर बहुआयामी हैं, जिनमें पुराने पाठ्यक्रम से लेकर संसाधनों की कमी और कुछ मामलों में योग्य शिक्षकों की कमी जैसे कारक उत्तरदायी हैं। सर्वे में यह भी उल्लेख किया गया है कि ड्रॉपआउट्स यानी अधबीच पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की संख्या अब भी बहुत ज्यादा है। फोकस आयु वर्ग के लगभग 87 फीसद छात्रों ने स्कूल या कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन 14 से 18 साल का होते-होते दाखिला लेने वालों का प्रतिशत भी गिरता गया। मसलन, ऐसे किशोर जिनका किसी भी स्कूल-कॉलेज में अभी दाखिला नहीं है, उनमें 14 साल के आयु वर्ग वालों की तादाद करीब 3.9 फीसद है। वहीं 16 के आयु वर्ग में यह संख्या बढ़कर 10.9 फीसद पर पहुंच गई। 18 साल वालों में यह गिनती 32 फीसदी से ज्यादा पाई गई।

नामांकन में इस गिरावट और स्कूल छोड़ने की बढ़ती दर के पीछे कारण बहुआयामी हैं। आर्थिक चुनौतियां, सामाजिक अपेक्षाएं और शिक्षा प्रणाली की अपर्याप्तताएं औपचारिक शिक्षा से किशोरों के मोहभंग में योगदान करती हैं। एएसईआर के निष्कर्ष किशोरों के बीच प्रचलित डिजिटल विभाजन को भी रेखांकित करते हैं। सर्वेक्षण में शामिल लगभग 90 फीसद किशोरों की स्मार्टफोन तक पहुंच है। इसके उपयोग और डिजिटल साक्षरता में लिंग आधारित विसंगति मौजूद है। लड़कों की स्मार्टफोन तक अधिक पहुंच होती है, और वे अपनी महिला समकक्षों की तुलना में कंप्यूटर या स्मार्टफोन चलाने में अधिक दक्षता दिखाते हैं। यह डिजिटल लैंगिक अंतर व्यापक सामाजिक असमानताओं को दर्शाता है।

डिजिटल जागरूकता एक दोधारी तलवार है जबकि स्मार्टफोन का प्रचलन सीखने के लिए संभावित अवसर प्रदान करता है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि लगभग 80 प्रतिशत किशोर अपने स्मार्टफोन का उपयोग मुख्य रूप से मनोरंजन उद्देश्यों के लिए करते हैं, जैसे संगीत सुनना, वीडियो और फिल्में देखना। शैक्षिक उद्देश्यों के लिए इस शक्तिशाली उपकरण का कम उपयोग पाठ्यक्रम में प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए नवीन रणनीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। डिजिटल प्लेटफॉर्म की क्षमता का उपयोग सीखने के अनुभव को बढ़ा सकता है, जिससे शिक्षा युवाओं के लिए आकषर्क और प्रासंगिक बन सकती है। शिक्षा, जिसे विकास की आधारशिला कहा जाता है, भारत में निर्णायक मोड़ पर है। हालांकि स्कूल में नामांकन बढ़ाने में प्रगति हुई है, लेकिन किशोरों के बीच स्कूल छोड़ने की चिंताजनक दर गंभीर चिंता पैदा करती है।

हम इन निष्कषरे को अलग-अलग घटनाओं या व्यक्तिगत अपर्याप्तताओं का परिणाम कहकर खारिज नहीं कर सकते। इसकी बजाय हमें उन प्रणालीगत खामियों को स्वीकार करना चाहिए जिनके कारण ऐसी स्थिति सामने आई है। शिक्षा में निवेश का मतलब केवल धन आवंटित करना भर नहीं है। शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम डिजाइन और शैक्षिक बुनियादी ढांचे के समग्र पुनर्मूल्यांकन की भी आवश्यकता है। स्कूली शिक्षा के गिरते स्तर की जिम्मेदारी केवल शिक्षकों के कंधों पर नहीं है, यह सामूहिक दायित्व है।

माता-पिता, नीति निर्माताओं और बड़े पैमाने पर शिक्षित समुदाय को सुधारों की वकालत करने के लिए एकजुट होना चाहिए क्योंकि स्कूली शिक्षा का गिरता स्तर कठोर वास्तविकता है, जिस पर हमें ध्यान देने और ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। यह ऐसी चुनौती है, जिसका समाधान नहीं किया गया तो यह हमारे समाज की बुनियाद के लिए खतरा है क्योंकि समाज का भविष्य शिक्षित और कुशल नागरिक वर्ग पर निर्भर करता है। लिहाजा, हमें सामूहिक रूप से इस स्थिति की तात्कालिकता को स्वीकार करना चाहिए और मूल कारणों के समाधानपरक व्यापक सुधारों के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।

देवेन्द्राज सुथार


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