प्राण-प्रतिष्ठा : नव्य, भव्य और दिव्य क्षण

Last Updated 22 Jan 2024 01:35:21 PM IST

चार सौ 96 वर्ष के कालखंड में मुगल शासन, बर्तानिया हुकूमत और संप्रभु भारत में समय-समय पर हुए अनेक रक्तरंजित संघषर्, रामभक्तों के अगणित बलिदान, अदालती कार्यवाही से गुजरने के बाद अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर बने मंदिर की पुनप्र्रतिष्ठा को लेकर पूरा देश उल्लसित है।


प्राण-प्रतिष्ठा : नव्य, भव्य और दिव्य क्षण

सबको 22 जनवरी के उस अविस्मरणीय क्षण की प्रतीक्षा है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशिष्ट उपस्थिति में श्रीरामलला नव्य, भव्य, दिव्य मन्दिर में विराजित होंगे। इन सबके बीच श्रीराम मन्दिर आंदोलन को निर्णायक दिशा देने वाली गोरक्षपीठ के वर्तमान अगुआ और संप्रति प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भावनाएं स्वत:स्फूर्त हैं। यह क्षण उनके गुरु  और दादागुरु  को सच्ची श्रद्धांजलि देने का है। संन्यासी जीवन चुनने के अपने निर्णय पर संतोष प्रकट करने का है।

वर्ष 1528 में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बने प्राचीन मन्दिर का वजूद मिटाने की कोशिश हुई थी। जन-जन के आराध्य श्रीराम के अपने इस मन्दिर के लिए संघर्ष की शुरु आत तो तभी से हो गई थी पर इस संघर्ष को पहली बार रणनीतिक रूप देने का श्रेय गोरक्षपीठ को जाता है। इस रणनीति के शिल्पकार थे ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ। उनकी मौजूदगी में जन्मभूमि के प्राचीन मन्दिर के गर्भगृह में 1949 में श्रीरामलला के विग्रह का प्राकट्य होने की दैवीय घटना से मन्दिर आंदोलन को जो दिशा मिली, उसे नब्बे के दशक में उनके शिष्य ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीर महंत अवैद्यनाथ ने निर्णायक मोड़ तक पहुंचाया। गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन पीठाधीरद्वय महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ के श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति और मन्दिर निर्माण के लिए किए गए परिणामजन्य संघर्ष को अपनी देखरेख में मूर्त रूप देते हुए वर्तमान पीठाधीर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बेहद प्रफुल्लित हैं। इसके दो अहम कारण हैं।

पहला, राम मन्दिर आंदोलन ही उनके संन्यास मार्ग की प्रेरणा रहा। दूसरा, अपने गुरु और दादागुरु  के सपनों को साकार करने में योगदान देना। दैवीय योग है कि श्रीराम मन्दिर को लेकर शीर्ष न्यायालय का निर्णय आने के वक्त वर्तमान गोरक्षपीठाधीर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इसके बाद मन्दिर के शिलान्यास से लेकर 22 जनवरी को श्रीराम के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का खाका भी उन्हीं के नेतृत्व में खींचा गया है। अपने गुरुदेव महंत अवैद्यनाथ के सान्निध्य में आने के बाद से ही और मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी अयोध्या को श्रीरामयुगीन वैभव देने के लिए प्राणपण से कार्य कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ का गोरखनाथ मन्दिर और इसके तत्कालीन पीठाधीर महंत अवैद्यनाथ से जुड़ाव नब्बे के दशक में हुआ था जब श्रीराम मन्दिर का आंदोलन उफान पर था। नाथ पंथ की दीक्षा लेने के दौरान ही उन्होंने अपने गुरु देव और अन्य संतों के सान्निध्य में आंदोलन की ऐतिहासिक और तत्कालीन पृष्ठभूमि को करीब से देखा-समझा।

15 फरवरी, 1994 को महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया तो इसके बाद योगी मन्दिर आंदोलन से जुड़ी हर गतिविधि में अपने गुरु  के साथ सम्मिलित होने लगे। 1998 के लोक सभा चुनाव से पूर्व महंत अवैद्यनाथ ने राजनीति की कमान भी उन्हें सौंप दी। 1998 में संसदीय चुनाव में सबसे कम उम्र का सांसद बनने के साथ ही वह गुरु की तरह लोक सभा में मन्दिर आंदोलन की आवाज बन गए। 6 दिसम्बर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद मामला अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा में भले ही था, लेकिन योगी इस बात को मुखरता से रखते रहे कि राम मन्दिर का निर्माण उनके लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि जीवन का मिशन है। गोरक्षपीठ का 1994 में उत्तराधिकारी घोषित होने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ श्रीराम मन्दिर के लिए जनजागरण के अभियान में जुट गए। 1998 में सांसद बनने के बाद इसमें और तेजी आई। उन्होंने 2003 और 2006 में गोरखपुर में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विराट हिन्दू संगम का आयोजन किया, जिसमें साधु-संतों से लेकर आम जन की ऐसी भीड़ जुटी कि गोरखनाथ मन्दिर से लेकर कार्यक्रम स्थल महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज तक तिल रखने की जगह नहीं थी।

सितम्बर, 2014 में महंत अवैद्यनाथ के महासमाधिस्थ होने के बाद यह गुरु तर दायित्व पूरी तरह योगी जी के कंधों पर आ गया। इसे सुखद दैव संयोग कहें या ईरीय प्रसाद, लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद 9 नवम्बर, 2019 को जब सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया और विवादित जमीन रामलला को सौंपने की बात कही तब गोरक्षपीठाधीर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनसेवा में रत थे। जब 2017 में उन्हें प्रदेश की सत्ता संभालने का दायित्व मिला तो उन्होंने अयोध्या को श्रीरामयुगीन वैभव दिलाने के प्रयास शुरू कर दिए। बतौर मुख्यमंत्री पहले ही साल से अयोध्या में भव्य दीपोत्सव का जो सिलसिला शुरू किया वह साल दर साल विश्व कीर्तिमान रच रहा है। श्रीराम मन्दिर निर्माण के संकल्प के कारण ही योगी ने अयोध्या को अपना दूसरा घर बना लिया। अब तक मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने गोरखपुर के बाद सर्वाधिक दौरे अयोध्या के ही किए हैं। अयोध्या के लिए हजारों करोड़ रु पये के विकास कार्यों की सौगात देने के साथ ही उन्होंने जिला, कमिश्नरी का नामकरण फैजाबाद की जगह अयोध्या किया।

इसके पहले श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या का नाम एक कस्बे के भूगोल में सिमट कर रहा गया था। योगी के मुख्यमंत्रित्व काल में अयोध्या दुनिया की सबसे खूबसूरत धार्मिंक-पर्यटन नगरी बन रही है, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं लगता। कारण, अयोध्या रोड कनेक्टिविटी में नायाब हुई है तो इसे पांच सितारा रेलवे स्टेशन और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की भी सौगात मिल चुकी है। 5 अगस्त, 2020 को श्रीराम मन्दिर निर्माण के लिए भूमि पूजन प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संयोजन में आयोजित भव्य समारोह में किया था तो अब 22 जनवरी को मन्दिर में श्रीरामलला की दिव्यतम प्राण-प्रतिष्ठा भी सीएम योगी की देखरेख में पीएम मोदी करने जा रहे हैं। हालांकि इसके पहले 25 मार्च, 2020 अपनी गोद में लेकर श्रीरामलला को टेंट से अस्थायी मंदिर में ले जाने वाले और चांदी के सिंहासन पर विराजमान कराने वाले भी योगी आदित्यनाथ ही हैं।

पीयूष बंका


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment