मध्य-पूर्व : अमन की ओर बढ़ें गाजा के हालात

Last Updated 21 Jan 2024 01:15:36 PM IST

मध्य-पूर्व का संकट और इसके समाधान बहुपक्षीय हैं पर इस समय सबसे बड़ी जरूरत तो गाजा के लोगों की रक्षा की है।


मध्य-पूर्व : अमन की ओर बढ़ें गाजा के हालात

इसके लिए शीघ्र से शीघ्र युद्ध विराम होना चाहिए और इसके बाद गाजा के लोगों के लिए राहत और पुनर्वास का बड़ा अभियान चलना चाहिए। दुनिया के सभी अमन-पसंद लोगों की मांग है कि सीज फायर हो, युद्ध विराम हो।

इस्राइल और फिलिस्तीनियों का टकराव बहुत समय से चल रहा है पर हिंसा के मौजूदा दौर की शुरुआत हमास के 7 अक्टूबर, 2023 के हमले से हुई जिसमें उसने चंद घंटों में इस्राइल के 1200 व्यक्तियों को मारा और 250 को बंधक बनाया। यह हमला अनुचित था पर इस्राइल ने इसका कई गुणा अनुपात से अधिक का जो जवाबी हमला किया वह भी अनुचित था। इसमें लगभग 24,000 लोग मारे गए हैं और गाजा की आबादी का बड़ा हिस्सा विस्थापित हो गया है।

इन दोनों हमलों से लगता है कि दोनों पक्षों में अधिक आक्रामक तत्व अधिक असरदार हो गए हैं और इनके स्थान पर यदि अमन-शांति की ताकतें और आवाजें, दोनों ओर से आगे आ सकें तो शांतिपूर्ण समाधान प्राप्त करने की संभावना बढ़ेगी। विश्व स्तर पर अधिक मान्यता इसी समाधान की है कि इस्राइल और फिलिस्तीन, दोनों के अलग राज्य हों जो परस्पर सुलह-समझौते से रहें। इसके लिए इस्राइल को वेस्ट बैंक क्षेत्र में अपने केंद्र हटाने पड़ेंगे पर ये  तो बढ़ते ही जा रहे हैं।

इस्राइल की आक्रामकता के बावजूद यहां भी अमन-शांति चाहने वाले लोग हैं जो अपने देश की सुरक्षा अवश्य सुनिश्चित चाहते हैं पर फिलिस्तीनियों से सुलह-समझौते और अमन-शांति भी चाहते हैं। ऐसे लोगों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में चिन्तित अन्य लोगों ने भी सवाल उठाया होगा कि हमास के हमले के बाद इतना बड़ा और विध्वंसक हमला करने से कहीं अधिक जरूरी था कि हमास के हमले को रोकने के लिए जरूरी कार्यवाही की जाती।

इस्राइल की सीमा पर तैनात अनेक महिला सुरक्षा गाडरे ने यहां के समाचारपत्रों को बताया है कि उन्होंने हमास द्वारा किए जा रहे खतरनाक प्रशिक्षणों की जानकारी बार-बार अपने अधिकारियों को दी थी पर उन्होंने समय पर कोई कार्यवाही नहीं की। न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित समाचार के अनुसार ‘जेरिचो वाल’ नाम का 40 पृष्ठ का हमास के हमले का एक दस्तावेज इस्राइल के अधिकारियों को एक वर्ष से उपलब्ध था। वास्तविक हमला इसके अनुरूप ही हुआ।

6 अक्टूबर को ‘योम किप्पूर’ युद्ध की 50वीं वषर्गांठ थी। अत: इसके आसपास सुरक्षा-व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए थी पर 7 अक्टूबर को जब हमला हुआ तो बहुत कम सुरक्षा दल मौजूद थे क्योंकि उन्हें अन्यत्र भेज दिया गया था। यदि सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होती तो न तो हमास का हमला इतना विध्वंसक होता और न ही गाजा के लोगों को इस्राइल का बहुत विध्वंसक जवाबी हमला सहना पड़ता।

अंत में सवाल यही उठता है कि आखिर, इस तरह की परस्पर आक्रामकता वर्षो तक चलती रहने से क्या हासिल होता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पहली गलती तो इस्राइल की ओर से हुई जब 1948 के आसपास बहुत से फिलिस्तीनियों को अपने घरों और खेतों से उजाड़ कर अन्यत्र भेजा गया और उनकी भूमि पर इस्राइल स्थापित किया गया। निश्चय ही यह अन्यायपूर्ण था पर अंत में कभी न कभी तो इस अन्याय के कारण उत्पन्न हुए हिंसक टकरावों को रोकना ही पड़ेगा।

अनेक प्रयासों के बाद ‘दो राज्य समाधान’ यानी ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ पर सहमति बनी थी और इसे आगे ले जाना चाहिए था। इस समाधान के अनुसार इस्राइल और फिलिस्तीन दोनों के स्वतंत्र राज्य बन जाते और वे एक दूसरे से सुलह-समझौते से रहते पर दोनों ओर के आक्रामक तत्वों में एक तरह की नजदीकी और यहां तक कि तालमेल भी दिखाई देता है क्योंकि दोनों ही ‘दो राज्य समाधान’ को विफल करना चाहते थे। अब पिछले अनुभव से स्पष्ट हो गया है कि जब तक दोनों ओर आक्रामक तत्व हावी हैं तब तक अमन-शांति स्थापित होना कठिन है। यहां का हाल का जो इतिहास रहा है, वहां जो ऊपर से नजर आता है, सच्चाई प्राय: उससे अलग होती है। जहां ऊपरी तौर पर लगता है कि जो दोनों ओर सबसे आक्रामक तत्व हैं।

वे एक दूसरे के सबसे बड़े विरोधी हैं, वहां कभी-कभी उनमें वास्तविकता में समझौते भी होते हैं जो गुप्त रहते हैं। इस वजह से जो अमन-पसंद लोग हैं, वे चाहते हैं कि पारदर्शिता बढ़ती जाए और सच्चाई सबके सामने आई है। इस्राइल की महिला सुरक्षा गाडरे ने समाचारपत्रों को बताया है कि जब उन्होंने अपने सामने हो रहे हमास के खतरनाक प्रशिक्षणों की रिपोर्ट भेजी तो उन्हें उच्च अधिकारियों ने कहा कि बढ़ा-चढ़ा कर खबरें मत भेजो। बाद में जो उन्होंने रिपोर्ट भेजी थी उसी तरह का हमला हुआ जिसकी उन्होंने चेतावनी दी थी और इसमें अनेक महिला सुरक्षा गार्ड भी मारी गई। इस स्थिति में उनके गहरे दुख को समझा जा सकता है और इस बढ़ती मांग को भी समझा जा सकता है कि इन मामलों में जो सच्चाई है वह सामने आनी चाहिए। इस तरह के सवाल पूछे जाने पर इस्राइल के सुरक्षा अधिकारियों ने कहा है कि अभी युद्ध का समय है, इन सवालों के जवाब बाद में खोजे जाएंगे और दिए जाएंगे।

पर कुछ लोगों का कहना है कि युद्ध पता नहीं कितने दिन चलेगा और उसके बाद क्या स्थिति होगी, अत: इस तरह के सवालों के जवाब इस समय ही खोजे जाने चाहिए क्योंकि इससे अमन-शांति की ओर बढ़ने में भी सहायता मिलेगी। दुनिया भर में इस्राइल के गुप्तचर और सुरक्षा संस्थानों को बहुत प्रतिष्ठा प्राप्त है और इनके पास साधन भी बहुत हैं। अत: यह बात बहुत से लोगों को समझ नहीं आ रही है कि इस स्थिति में हमास के हमले के बारे में मिल रहीं पूर्व चेतावनियों की उपेक्षा कैसे हो गई। हाल में मिस्र के एक उच्चाधिकारी ने कहा कि मिस्र ने इस्राइल को हमास के हमले की पूर्व चेतावनी दी थी। पहले इस्राइल ने इसे स्वीकार नहीं किया पर जब एक प्रमुख अमेरिकी सांसद ने इसकी पुष्टि की और कहा कि तीन दिन पहले ही इसकी चेतावनी मिस्र की ओर से मिली थी तो इस्राइल ने भी इस बारे में चुप्पी साध ली।

खैर, इस समय तो जरूरत तेजी से अमन-शांति की ओर बढ़ने की है। यह गाजा निवासियों की रक्षा के लिए तो जरूरी है ही, साथ ही इसलिए भी जरूरी है कि कहीं युद्ध अधिक व्यापक न हो जाए। ईरान में 3 जनवरी को एक विस्फोट में 80 से अधिक लोग मारे गए। यमन में हूती तत्व जो हमले समुद्री जहाजों पर कर रहे हैं या इस्राइल और हिज्बुल्लाह के बीच जो राकेट दागे जा रहे हैं, उन सबसे नये खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। इस तरह यदि एक बहुपक्षीय क्षेत्रीय युद्ध आरंभ हो गया तो पूरे विश्व की शांति के लिए यह बड़ा संकट होगा। वैसे कहा जा रहा है कि इसकी विध्वंसकता का अंदाज लगाते हुए कोई भी देश ऐसा बड़ा क्षेत्रीय युद्ध नहीं चाहता है पर कई बार, कई तरह की हिंसक वारदात के बीच अनियंत्रित ढंग से युद्ध बढ़ जाते हैं। अत: सावाधनी की जरूरत है और सभी का प्रयास होना चाहिए कि युद्ध शीघ्र समाप्ति की ओर हम बढ़े, व्यापक प्रसार की ओर कतई न बढ़े। अमन-शांति के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र को भी और सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। यह समय बहुत सावधानी का है, और अमन-शांति के लिए गहरी प्रतिबद्धता भी बहुत जरूरी है।

भारत डोगरा


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