गन्ना किसान : सफर अभी लंबा है

Last Updated 20 Jan 2024 01:52:44 PM IST

आखिर लंबे इंतजार के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2023-24 के लिए गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी की घोषणा कर दी है।


गन्ना किसान : सफर अभी लंबा है

पेराई सत्र के कम से कम चार महीना चलने के बाद परेशान किसानों और किसान संगठनों को गन्ने का मूल्य बढ़ने का बड़ा बेसब्री से इंतजार था, किसानों को उम्मीद थी कि इस वर्ष लोक सभा चुनाव के चलते सरकार गन्ने के दाम में बढ़ोतरी करेगी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बृहस्पतिवार को हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने गन्ना मूल्य में 20 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि को मंजूरी दे दी है। पेराई सत्र 2023-24 के लिए गन्ने की अगैती प्रजातियों के लिए गत वर्ष के 350 रुपए प्रति क्विंटल मूल्य को बढ़ाकर 370 रुपए प्रति क्विंटल का मूल्य निर्धारित किया गया है। वहीं सामान्य प्रजाति के लिए गत वर्ष के 340 रुपए प्रति क्विंटल के मूल्य को बढ़ाकर 360 रु पए प्रति क्विंटल का मूल्य तय किया गया है। 20 पैसे प्रति किलो की यह बढ़ोतरी लंबे समय से इंतजार कर रहे किसानों के लिए बड़ी मायूस करने वाली है। पड़ोसी प्रदेशों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में गन्ने का निर्धारित मूल्य सबसे कम है। पंजाब में जहां यह 392 रु पए क्विंटल तो हरियाणा में 386 रूपए क्विंटल है।

गन्ना उत्पादन के मामले में, उप्र देश के अन्य सभी राज्यों में अव्वल है। आंकड़ों के अनुसार देश में गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसद और उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसद उत्तर प्रदेश में होता है। भारत में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उप्र में हैं। उप्र का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है। उप्र के 50 लाख से ज्यादा किसानों के जीवन में गन्ने के माध्यम से मिठास आती है। प्रदेश के पश्चिमी भू-भाग में गन्ना मिलों द्वारा डेढ़ दो सालों के विलंब से भुगतान करने के बावजूद गन्ने को मुख्य नगदी फसल के रूप में उगाया जाता है। इसके साथ ही अब एथनॉल की उत्पादन में भी प्रदेश अन्य प्रदेशों से आगे निकल चुका है।

प्रदेश में चीनी मिलों के माध्यम से एथनॉल की उत्पादन को 8 गुना तक बढ़ा दिया गया है। उत्तर प्रदेश में गन्ने का रकबा में भी बढ़ोतरी हुई है। विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में गन्ना का रकबा साल दर साल बढ़ रहा है। पिछले एक साल में गन्ना के क्षेत्रफल में 92,052 हजार हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही गन्ना की उपज का रकबा अब 28.53 लाख हेक्टेयर हो गया है। प्रदेश में गन्ने का रिकॉर्ड उत्पादन बढ़ रहा है, तो साथ में खेती की लागत में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन फसल के दाम उस अनुपात में नहीं बढ़े। 2020 में नीति आयोग द्वारा प्रोफेसर रमेश चंद की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स ने बढ़ते एफआरपी के कारण किसानों का गन्ने की फसल के प्रति झुकाव और गन्ने के बढ़ते उत्पादन का मुख्य कारण माना था, और अपनी सिफारिश में किसानों को कम गन्ना बोने की सिफारिश की थी, हालांकि समिति ने रंगराजन समिति की सिफारिश पर आधारित रेवन्यू शेयरिंग (आरएसएफ) फार्मूला लागू करने का भी सुझाव दिया था।

रंगराजन फार्मूला के अनुसार गन्ने का मूल्य चीनी उत्पादन से प्राप्त  रेवन्यू का 70 फीसद से 75 फीसद ( जिसमें 5 फीसद अतिरिक्त गन्ने से प्राप्त होने वाले अन्य उत्पादों) से लिंक होना चाहिए, जबकि आरएसएफ से निर्धारित मूल्य हमेशा एफआरपी से ज्यादा होगा, अगर यह मूल्य एफआरपी से कम हो जाता है तो इसकी भरपाई गन्ना विकास कोष, शुगर डेवलपमेंट फंड (एसडीएफ) से की जाएगी। सरकार द्वारा गठित इस समिति द्वारा मिल मालिकों के हित में दिए गए सुझाव तो मान लिये गए, परंतु किसान हित में दिए गए सुझाव आज भी लागू होने का इंतजार कर रहे हैं। अगर गत वर्षो में गन्ने के दामों में बढ़ोतरी देखी जाए तो अब तक सबसे ज्यादा बसपा प्रमुख मायावती सरकार के पांच साल के दौरान इसमें 92 फीसद की बढ़ोतरी हुई थी, जिसने अपने पांच साल के कार्यकाल में गन्ने का मूल्य 125 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 240 रु पए प्रति क्विंटल कर दिया था। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के पांच साल में दो बार में कुल 65 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ोतरी के साथ गन्ने के मूल्य में 27 फीसद बढ़ोतरी देखी गई। अगर भाजपा सरकार की बात करें तो पिछले सात साल से सूबे में भाजपा की सरकार है, जिसने अपने कार्यकाल में तीन बार गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी की है, इससे पहले 2017 में मात्र 10 रु पए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई थी। उसके बाद 2021 में 25 रुपए और अब 2024 में 20 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाने की घोषणा की है, जो बढ़ते खाद, उर्वरक और अन्य लागत की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा डालने जैसा है।

कई वर्षो से, हमने देखा है कि (इनपुट) लागत उत्पादन के सकल मूल्य में वृद्धि की तुलना में अधिक दर से बढ़ रही है। उत्पादकता लगभग स्थिर हो गई है। मूल्य समर्थन ने लागत में वृद्धि के साथ तालमेल नहीं रखा है, यह एक समस्या है जिसका समाधान किया जाना चाहिए। जनवरी 2017 में डीजल के भाव 63.35 रुपए प्रति लीटर था, जो जनवरी 2024 में 90 रुपए पार कर गया है, मतलब करीब 43 फीसद की बढ़ोतरी। यूरिया का दाम बढ़ाने की बजाए प्रति कट्टे का वजन 50 किलो से 45 किलो करते हुए 40 किलो कर दिया गया है, मतलब करीब 20 फीसद की बढ़ोतरी। मतलब साफ है देश का किसान जिसमें अस्सी प्रतिशत के करीब सीमांत किसान (3 एकड़ से कम) है, खेती की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण लगातार गरीबी और कर्ज में डूबता जा रहा है। अगर कृषि और दूसरे क्षेत्र के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो आप पाएंगे कि किसान ने खेती से जितना कुछ कमाया है, उससे ज्यादा वो डीजल-पेट्रोल, खाद, उर्वरक, घर का खर्च और बच्चों की पढ़ाई से लेकर दवा में खर्च रहा है।

ख़्ाुद सरकारी संस्थान शाहजहांपुर सुगर केन इंस्टीटयूट ने एक क्विंटल गन्ने की खेती में 304 रु पए का खर्च बताया है। गन्ना उत्पादन लागत बढ़ने से बेहाल किसानों के उद्धार के लिए वर्तमान पेराई सत्र 2023-2024 के लिए गन्ने का एसएपी कम से कम 450 रु पए प्रति क्विंटल होना चाहिए था। आज उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। इसमें देरी के लिए सख्त प्रवर्तन और दंड के माध्यम से चीनी मिलों द्वारा समय पर बकाया भुगतान सुनिश्चित करना, लागत के साक्षेप गन्ने के लिए उचित मूल्य स्थापित करना शामिल होना चाहिए।
(सहलेखक बिशन नेहवाल आर्थिक चिंतक हैं)

के.सी. त्यागी


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