दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे
दिल्ली देश की राजधानी है। जहां से देश की सियासत चलती है, लेकिन पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में एक ऐसी घटना घटी जिसने दिल्ली के स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई खोल दी।
दिल्ली : स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे |
दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था विश्वस्तरीय होने का दंभ आम आदमी पार्टी की सरकार भरती है, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। पिछले दिनों नशे में धुत एक युवक ने पुलिस की वैन से छलांग लगा दी, मगर अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो सका, लेकिन पुलिस वैन से कूदने की वजह से आरोपी के सिर में गंभीर चोटें आई, जिसके इलाज के लिए पुलिस उसे दिल्ली के चार बड़े अस्पलाओं में लेकर गयी और दु:खद बात यह रही कि उक्त आरोपी को कहीं इलाज नसीब नहीं हुआ।
इलाज के अभाव में सिर्फ आरोपी की मौत नहीं हुई, बल्कि इस घटना ने दिल्ली के अस्पतालों की पोल-पट्टी खोल दी। उन दावों की धज्जियां उड़ा दी, जिसमें अक्सर कहा जाता रहा है कि दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे बेहतर है। वैसे ये कोई पहली घटना नहीं है, जिसने दिल्ली की चरमरा चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था को उघाड़कर दुनिया के सामने रख दिया हो। पिछले महीने दिसम्बर की एक घटना है। जब ब्लड कैंसर से जूझ रही बच्ची का वीडियो सोशल मीडिया में काफी वायरल हुआ था।
सोशल मीडिया पर एक दर्द से कराहती बच्ची कह रही थी कि, ‘बार-बार बोलते हैं कि बेड नहीं है। जब इंसान मर जाएगा, तब बेड देंगे क्या? हर अस्पताल में यही बोला जा रहा है कि बेड नहीं है। ऐसे ही जमीन पर डाल रखा है। मेरी पढ़ाई भी खराब हो गई है एक साल से।’ इतना ही नहीं दिल्ली के लोक नायक अस्पताल की हालत तो बद्द से बदतर है। जहां मरीजों को सर्जरी के लिए छह-छह महीने आगे की डेट मिलती है। यही वजह है कि समय-समय पर दिल्ली हाई कोर्ट भी दिल्ली की बदत्तर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की है, लेकिन राजनीति की भेंट चढ़ चुकी दिल्ली में मरीजों को बेड और डॉक्टर समय पर मुहैया नहीं हो पाते, जिसकी वजह से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में गंभीर रोग से पीड़ित रोगियों के इलाज के लिए नाकाफी चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर चिंता व्यक्त की है। साथ ही दिल्ली सरकार से बेड की मांग और उपलब्धता का ब्योरा भी मांगा है। गौरतलब है कि दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी खस्ताहाल है, वह कोरोना काल में सभी ने देखा। इन सबके बावजूद सियासतदां सबक लेने को तैयार नहीं। एक आंकड़े के अनुसार दिल्ली सरकार के अधीन अस्पतालों में 4 में से 1 ऑपरेशन थियेटर काम नहीं करते हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के आंकड़ों के अनुसार इन अस्पतालों में कुल 235 ऑपरेशन थिएटर हैं, जिनमें से 62 काम नहीं कर रहे हैं।
वहीं एक अन्य मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार के नौ अस्पतालों में आईसीयू बेड हैं ही नहीं! दरअसल, हाईकोर्ट पैनल का गठन दिल्ली के अस्पतालों में आईसीयू बेड, वेंटिलेटर आदि की स्थिति की जांच करने और भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों की सिफारिश करने के लिए किया गया था, जिसमें पता चला कि दिल्ली सरकार के अधीन संचालित अस्पतालों में 11,473 बेड थे, लेकिन केवल 1,396 आईसीयू या वेंटिलेटर बेड थे। इसके अलावा कमेटी ने कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में एनिस्थीसिया डाक्टरों की भारी कमी है।
दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल जीबी पंत की स्थिति भी काफी दयनीय है। एक आरटीआई रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि यह अस्पताल खुद डॉक्टरों की कमी से पीड़ित है। डॉक्टर व अन्य स्टाफ की कमी से जूझ रहे जीबी अस्पताल को स्वयं इलाज की जरूरत है। एम्स, आरएमएल और मौलाना आजाद कलाम मेडिकल कॉलेज की स्थिति भी खराब है।
ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था सिर्फ कागजों में ही विस्तरीय है? स्वास्थ्य और शिक्षा राजनीति करने का विषय नहीं, लेकिन सोचिए जब पुलिसवालों के होते हुए एक व्यक्ति को 8 घंटे दिल्ली के चार बड़े सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटने के बावजूद इलाज नहीं मिला, फिर एक आम इंसान के साथ क्या सलूक होता होगा? यह घटना वाकई हैरान करती है। सिर्फ कागजों में बेहतरीन सुविधाओं का दावा करने वालों को ईमानदारी से विचार करने की जरूरत है। हम कहने को तो आज वैश्विक परिदृश्य पर बड़ी महाशक्ति बनकर उभर रहे हैं, लेकिन जब देश में किसी व्यक्ति की सिर्फ इसलिए मौत हो जाती है कि उसे अस्पताल में भर्ती करने के लिए बेड उपलब्ध न हो, उचित इलाज की सुविधा न हो, तो फिर हम किस महाशक्ति बनने का दावा करते हैं? यह आत्ममंथन का विषय होना चाहिए, न कि राजनीति का।
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