अलविदा हमारे प्रिय सहाराश्री

Last Updated 16 Nov 2023 07:53:22 AM IST

हम स्तब्ध हैं, शोकाकुल हैं, विचलित हैं। हम यानी उस विशाल वृक्ष के साये तले खड़े परिवारजन, जिसका बीजारोपण आपने वर्षो पूर्व किया था। हम यानी सहारा इंडिया परिवार के मीडिया उद्यम से जुड़े साथीगण। हम यानी अपने सहारा इंडिया परिवार के प्रतिबद्ध सदस्य जो हर उतार-चढ़ाव में अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए आपके स्वप्नों को आकार देने के लिए संकल्पित रहे हैं।


सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक, प्रणेता, मुख्य अभिभावक और समूह के प्रबंध कार्यकर्ता एवं चेयरमैन माननीय ‘सहाराश्री’ सुब्रत रॉय सहारा

आपकी विदाई का यह दिन हमारी कल्पना से भी परे है पर नियति किसके टाले टली है। हमारे दिल भरे हुए हैं, दिमाग बेचैन हैं लेकिन आंखों में वे स्वप्न अब भी झिलमिला रहे हैं जो कभी आपने अखबार की अपनी परिकल्पना के तौर पर हम मीडिया से जुड़े साथियों के मन में रोपे थे। विभिन्न मीडिया संस्थानों से जुड़े हम लोग जब आपके आह्वान पर आपकी मीडिया परिकल्पना में भागीदारी करने के लिए एकजुट हुए थे तब लगा था कि हमारे सामने कुछ नया घटित हो रहा है। वह हो रहा है जो हिंदी मीडिया में इससे पहले कभी नहीं हुआ।

आप समझाते हैं कि पत्रकारिता व्यवसाय नहीं होती बल्कि एक रचनात्मक आंदोलन होती है। अखबार अपने समाज का मित्र होता है जो अपने पाठकों तक केवल सूचनाएं ही नहीं पहुंचाता, केवल घटनाओं की जानकारियां ही नहीं देता बल्कि उनमें जागरूकता पैदा करता है, सामाजिक समस्याओं के प्रति उन्हें सचेत करता है, जो अशुभ है उसकी आलोचना करता है और जो शुभ है उसके समर्थन में खड़ा होता है। आप कहते हैं कि अखबार पाठकों का मित्र होता है जो पाठकों के भीतर विवेक पैदा कर उन्हें समाजोन्मुखी बनाता है और जो लोग अखबार की इस भूमिका को स्वीकार नहीं करते उन्हें अखबार नहीं कोई और धंधा कर लेना चाहिए।

आप समझाते हैं कि केवल हिंसा और अपराध से जुड़ी खबरें मनुष्य के सोच को नकारात्मक बनाती हैं इसलिए जरूरी है कि वे खबरें भी प्रमुखता से दी जायें जो प्रेरक हैं, जो मानवीयता के प्रति आस्था जगाती हैं और श्रेष्ठ जीवन मूल्यों के प्रति भरोसा पैदा करती हैं। आप खबरों को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए तथ्य और आंकड़ों की प्रस्तुति को महत्त्वपूर्ण बताते हैं। इसके लिए आप एक अनुसंधान प्रकोष्ठ की भी स्थापना करते हैं जो अखबार के समाचार, विचार के पक्षों को मजबूती प्रदान करता है। आप जनसंख्या, शिक्षा, धर्म, राजनीतिक नेतृत्व और मीडिया जैसे सामाजिक जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपनी बदलावकारी स्पष्ट राय भी प्रस्तुत करते हैं और अखबार इनके विमर्श को अभियान के तौर पर आगे बढ़ाता है।

सहारा इंडिया परिवार का मीडिया प्रभाग हिंदी तक ही सीमित नहीं रहता। अनेक संस्करणों वाला उर्दू अखबार ‘रोजनामा राष्ट्रीय सहारा’, उर्दू पत्रिका, अंग्रेजी पत्रिका भी प्रकाशित होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक समाचार मीडिया की भी धमाकेदार शुरुआत होती है। राष्ट्रीय चैनल ‘सहारा समय’ के साथ-साथ कई क्षेत्रीय चैनल भी अस्तित्व में आते हैं। क्षेत्रीय चैनलों की आज की लोकप्रिय अवधारणा आपकी ही देन है।

आप मनचाही और अनचाही खबरों की बात करते हैं कि मनचाही खबरें यानी अच्छी खबरें जो अखबार में दी जानी चाहिएं, अनचाही खबरें यानी हिंसा-अपराध से जुड़ी खबरें जिन्हें सूचना के तौर पर देना जरूरी होता है। आप अखबार यानी मीडिया की नैतिकता को शब्दायित करते हैं-राष्ट्रीयता, कर्त्तव्य और समर्पण-यानी राष्ट्र के प्रति प्रेम, राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य निर्वाह और अपने कर्त्तव्यों के प्रति समर्पण का भाव।

आप सिखाते हैं कि गलती करना मनुष्य का स्वभाव है लेकिन गलती को स्वीकार करना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है इसलिए अगर अखबार में किसी से भी कोई गलती हो जाये तो उसे न केवल स्वीकार किया जाना चाहिए बल्कि उस गलती के लिए क्षमा भी मांगी जानी चाहिए। ‘राष्ट्रीय सहारा’ अखबार में यह प्रथा बन जाती है और अखबार की ईमानदार छवि को लगातार निखारती जाती है।

आप अपनी बैठकों में जब अखबारकर्मियों से बात करते हैं तो केवल पत्रकारिता पर ही बात नहीं करते बल्कि समग्रता में जीवन की बेहतरी की बात करते हैं। आप अपने अखबार को भी जहां वैचारिकता का आंतरिक व्यक्तित्व प्रदान करते हैं तो उसके प्रस्तुतिकरण को श्रेष्ठतम रूप-सज्जा देकर बाह्य व्यक्तित्व भी प्रदान करते हैं। आपके निर्देशन में निकला ‘राष्ट्रीय सहारा’ अखबार हिंदी का पहला अखबार है जो एक तरफ चार रंगीन पृष्ठों का मनोरंजन परिशिष्ट ‘उमंग’ देता है तो दूसरी ओर विशुद्ध वैचारिक परिशिष्ट ‘हस्तक्षेप’ देता है। अगर मुझे ‘हस्तक्षेप’ निकालने के लिए आपका संसाधनात्मक और अवधारणात्मक सहयोग-समर्थन नहीं मिलता तो ‘हस्तक्षेप’ जैसा परिशिष्ट संभव नहीं हो पाता।

यही नहीं ‘राष्ट्रीय सहारा’ हिंदी का वह पहला अखबार बनता है जो अपने पत्रकारों को आकर्षक, लुभावना कार्यालयीय वातावरण उपलब्ध कराता है। पत्रकारों के बैठने के खूबसूरत कैबिन, भव्य पुस्तकालय, व्यवस्थित संदर्भ कक्ष आपकी अवधारणा के तहत ही निर्मित होते हैं। मीडियाकर्मियों की आवश्यकताओं और सुविधाओं के अनुरूप खान-पान की समुचित व्यवस्थाएं और सेवाएं सुचारु रूप से संचालित होती हैं। मीडिया परिसर का प्राकृतिक सौंदर्य थकान दूर करने वाले अनूठे आकर्षण की सृष्टि करता रहता है। भारत के किसी भी अखबार का यह अपनी तरह का पहला परिसर है। दूसरे अन्यान्य अखबारों में काम करके आये हुए पत्रकारों को लगता है जैसे वे अखबार की एक नयी दुनिया से साक्षात्कार कर रहे हैं। और इस सबका असर यह है कि सहारा इंडिया परिवार का मीडिया उद्यम पाठकों और दर्शकों की दुनिया में अपना एक सुनिश्चित मुकाम बना लेता है।

वस्तुत: आपकी मीडिया दृष्टि सिर्फ सहारा इंडिया परिवार के मीडिया के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण मीडिया के लिए अनुसरणीय है। हम जानते हैं अगर हमें मीडिया को अधिक जिम्मेदार, अधिक प्रभावाली, अधिक जनहितकारी और अधिक राष्ट्रहितकारी बनाना है तो हमें उन विचारों को आगे बढ़ाना ही होगा जो हमें आपसे प्राप्त हुए हैं। आपको हमसे छीनकर नियति ने भले ही अपना कुटिल खेल खेला हो और आप भले ही सदेह हमारे बीच न हों लेकिन आपके स्वप्न सदैव हमारे भीतर जिंदा रहेंगे।

अलविदा हमारे प्रिय सहाराश्री जी !

विभांशु दिव्याल


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