मध्य-पूर्व : सऊदी अरब की नई कूटनीति
तेल के सबसे बड़े निर्यातक और इस्लाम धर्म के लिए सबसे पवित्र समझे जाने वाले सऊदी अरब में दुनिया की अर्थव्यवस्था, भू-राजनीति, ऊर्जा और सुरक्षा को प्रभावित करने की अनेक क्षमताएं मौजूद हैं।
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इस समय सऊदी अरब आर्थिक और रणनीतिक शक्ति संतुलन के बहुआयामी लक्ष्यों की ओर प्रेरित होकर भारत, अमेरिका, चीन, रूस, ईरान और इस्रइल के साथ नियंत्रण और संतुलन की कूटनीति पर निरंतर आगे बढ़ रहा है, इससे मध्य-पूर्व की राजनीतिक स्थिति में गहरे बदलाव की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इस्रइल के फिलिस्तीन पर कड़े रु ख के बाद भी सऊदी अरब का कोई बड़ा कदम नहीं उठाना, उसकी नियंत्रण और संतुलन की नई कूटनीति का परिचायक है।
सऊदी अरब ईरान पर दबाव बनाए रखने के लिए इस्रइल को लेकर किसी ठोस और व्यापक नीति पर काम नहीं कर रहा है। अमेरिका से सामरिक लाभ लेने के लिए सऊदी अरब को इस्रइल का विश्वास जीतना जरूरी है। यूएई, बहरीन और कतर जैसे देशों में अमेरिकी सैन्य अड्डे मौजूद हैं। ईरान की मांग रही है कि उन्हें यहां से हटाया जाए। सऊदी अरब को डर है कि ईरान पर से पूरी तरह से दबाव हटाने का मतलब होगा उसे निर्विवाद रूप से इस्लामिक शक्ति बनाना और यह सऊदी अरब की महत्ता और इस्लामिक दुनिया में स्वीकार्यता के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। सऊदी अरब के पास मुसलमानों के दो सबसे पवित्र स्थल-मक्का और मदीना-हैं।
लिहाजा, यह खुद को मुस्लिम दुनिया के नेता के रूप में देखता है। उसे अपनी धार्मिंक पहचान बनाए रखनी है। ईरान, तुर्की, पाकिस्तान और सऊदी अरब दशकों से मुसलमानों के मुद्दों को लेकर आगे चलते रहे हैं। उनके बीच अपनी धार्मिंक पहचान की वजह से सऊदी अरब की रणनीतिक स्थिति अहम है, इसे बनाए रखते हुए सऊदी अरब को वैश्विक स्तर पर छाप भी छोड़नी है। इस्लामिक शक्तियों से संबंध मजबूत रखते हुए भी सऊदी अरब सतर्कता से आगे बढ़ रहा है। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान ने इस साल जनवरी में पाकिस्तान में निवेश 10 अरब डॉलर तक बढ़ाने को लेकर साफ कहा था कि वह अब किसी देश को वित्तीय मदद बिना शतरे के नहीं करेगा। यह नीति बड़े बदलाव के रूप में देखी जा रही है।
उसका कहना है कि आर्थिक मदद की शर्त होगी कि मदद लेने वाला देश अपनी अर्थव्यवस्था दुरु स्त करने के लिए ठोस फैसले करे। सऊदी अरब का यह रुख उन इस्लामिक देशों के लिए चेतावनी की तरह देखा गया जिन्हें सऊदी अरब खुले दिल से मदद करता आया है। नियंत्रण और संतुलन की नीति पर चलते हुए तथा नई विश्व व्यवस्था के नये मजबूत दावेदार की भूमिका में उभरने के लिए सऊदी अरब भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के लिए तैयार दिखता है, वहीं रूस और यूक्रेन के बीच भी बातचीत का माहौल तैयार कर रहा है।
इसके लिए सऊदी अरब ने अपने यहां सम्मेलन आयोजित कर भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, चीन, रूस, अमेरिका जैसे देशों को आमंत्रित किया। इसमें रूस शामिल तो नहीं हुआ लेकिन उसने इस पर नजरें होने की बात स्वीकार कर सऊदी अरब की कोशिशों को महत्त्व प्रदान कर दिया। क्राउन प्रिंस सलमान मध्य-पूर्व में मौजूदा क्षेत्रीय गठजोड़ और अमेरिकी ब्लॉक से दूर जाने की कोशिश कर रहे हैं। सऊदी अरब की तेल निर्भरता खत्म करना भी उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है। यही कारण है कि ओआईसी, अरब लीग, यूनाइटेड नेशन जैसे मंचों को छोड़कर दूसरे मंचों से अक्सर दूर रहने वाला सऊदी अरब अब क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका में दिखाई दे रहा है। उसे पता है कि नई वैश्विक व्यवस्था में रूस और चीन दो वैकल्पिक ताकत के तौर पर उभर रहे हैं। सऊदी अरब के लिए खाद्य सुरक्षा बेहद जरूरी है क्योंकि वो यूक्रेन और रूस से बड़ी मात्रा में अनाज मंगाता है। इसलिए रूस और यूक्रेन के बीच शांति कायम होती है तो खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर उसकी चिंता खत्म हो जाएगी। सऊदी अरब का दूसरा बड़ा हित उसके तेल कारोबार से जुड़ा है। रूस के साथ उसकी नजदीकी उसके तेल कारोबार को और मजबूती देगी। रूस के साथ खड़े होने से वह अमेरिकी तेल लॉबी को भी चुनौती दे सकेगा। सउदी अरब अमेरिका को चुनौती देता हुआ नजर आ रहा है, और इसे अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन की कूटनीतिक विफलता भी माना जा सकता है। सऊदी पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या में सऊदी क्राउन प्रिंस का नाम सामने आया तो बाइडन ने अपने चुनाव अभियान के दौरान क्राउन प्रिंस सलमान को सजा दिलाने की बात कह कर भावी राजनीति के कड़े संकेत दिए थे।
सऊदी अरब, अरब प्रायद्वीप के बड़े हिस्से को कवर करता है। पश्चिम एशिया और मध्य-पूर्व के लिए इसकी रणनीतिक स्थिति बेहद महत्त्वपूर्ण है। सऊदी अरब एकमात्र देश है जिसकी तटरेखा लाल सागर और फारस की खाड़ी, दोनों के साथ है। रूस और चीन के साथ मिल कर सऊदी अरब एशिया में निर्णायक भूमिका में आ सकता है तथा उसकी कड़ी नीतियां अमेरिका और यूरोप का आर्थिक संकट बढ़ा सकती हैं। सऊदी अरब भारत का महत्त्वपूर्ण आर्थिक साझेदार अवश्य है, लेकिन पाकिस्तान के प्रभाव से वह बच नहीं सका है। ईरान, चीन और सऊदी अरब की बढ़ती साझेदारी से भारत पर दबाव बढ़ सकता है, और उसके सामरिक हितों को दीर्घकालीन चोट पहुंच सकती है। इसका प्रभाव हिन्द महासागर पर भी पड़ सकता है। तेल पर से निर्भरता कम करने के लिए क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने एक महत्त्वाकांक्षी केंद्रीकृत विकास योजना विजन 2030 प्रारंभ की है। इसके माध्यम से सऊदी अरब ने देश में पर्यटन, आवास, रक्षा, व्यापार तथा निवेश जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना प्रारंभ किया है जिससे आर्थिक राजस्व के स्रेतों का विविधीकरण किया जा सके।
भारत इसमें भागीदार है। भारत तथा सऊदी अरब के मध्य द्विपक्षीय संबंधों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सुरक्षा, निवेश व्यापार के साथ-साथ शिक्षा तथा ऊर्जा के क्षेत्र में भागीदारियां बढ़ रही हैं। सऊदी अरब के साथ मजबूत संबंध न केवल भारत के हित में हैं, बल्कि अमेरिका और इस्रइल का प्रभाव भी इस खाड़ी देश पर कायम रहना चाहिए। अंतत: सामूहिक सुरक्षा की नीति पर चलना लोकतंत्र और वैश्विक सुरक्षा के लिए जरूरी है, लेकिन सऊदी अरब, चीन, ईरान और रूस जैसे देश मिलकर संकट को बढ़ा रहे हैं।
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