राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को कहा कि वर्तमान वैश्विक स्थिति को देखते हुए देश को दुर्लभ खनिज के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करनी चाहिए।

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मुर्मू ने यहां ‘राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार’ 2024 में कहा कि इससे भारत को विकसित राष्ट्र बनने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी और यह देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
उन्होंने कहा, ‘‘ वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत दुर्लभ खनिज के उत्पादन में आत्मनिर्भर बने।’’
दुर्लभ खनिज स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में आवश्यक हैं।
उन्होंने कहा कि ये तत्व इसलिए दुर्लभ नहीं हैं क्योंकि इनकी उपलब्धता कम है बल्कि इन तत्वों की पहचान की प्रक्रिया बहुत जटिल है। स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास से इस जटिल प्रक्रिया को पूरा करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि यह कृत्रिम मेधा, सेमीकंडक्टर और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी का युग है।
दुर्लभ खनिज (आरईई) 17 रासायनिक रूप से समान धात्विक तत्वों का एक समूह है जो स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन और पवन टर्बाइन सहित आधुनिक प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक हैं।
उन्होंने कहा कि खान मंत्रालय पर्यावरण अनुकूल उपायों एवं नवाचार के लिए प्रतिबद्ध है। खनन क्षेत्र एआई, मशीन लर्निंग और ड्रोन-आधारित सर्वेक्षण को बढ़ावा दे रहा है। खदानों से निकलने वाले अवशेषों से मूल्यवान तत्वों की प्राप्ति पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
मुर्मू ने कहा कि इस वर्ष देश के कई हिस्सों में बादल फटने और भूस्खलन के कारण लोगों को काफी नुकसान हुआ है। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में समय पर जानकारी प्राप्त करना बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा, ‘‘ भूवैज्ञानिक समुदाय से मेरी अपील है कि वे बाढ़, भूस्खलन, भूकंप और सूनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के अनुसंधान पर अधिक ध्यान दें।’’
राष्ट्रपति ने भूवैज्ञानिकों से ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित करने का अनुरोध किया जिससे आम लोगों को इन प्राकृतिक आपदाओं के बारे में समय पर चेतावनी दी जा सके।
खान मंत्रालय द्वारा 1966 में स्थापित राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार (जिसे 2009 तक राष्ट्रीय खनिज पुरस्कार के रूप में जाना जाता था) भूविज्ञान के क्षेत्र में देश के सबसे पुराने एवं सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक है।
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