मिजोरम विस चुनाव : सत्ता की चाबी ईसाइयों के पास
आगामी कुछ दिनों में मिजोरम समेत जिन पांच राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना) में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें मिजोरम का चुनाव अन्य चार राज्यों की तुलना में अलग नहीं, बल्कि बिल्कुल अलग है।
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यहां अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग वाली कहावत को ध्यान में रखते हुए मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम), कांग्रेस, भाजपा व आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार मतदाताओं के शीशे में उतारने की कोशिश में जी-जान एक किए हुए हैं। एमएनएफ को जहां फिर से सत्ता में आने की उम्मीद है, वहीं कांग्रेस को मिजोरम में अपनी सरकार व अपना मुख्यमंत्री बनाने की, भाजपा को बीते चुनाव की तुलना में कुछ बेहतर प्रदर्शन और कुछ अधिक सीटें जीतने की तो आम आदमी पार्टी को खाता खुलने की। अब किसकी उम्मीद पूरी होगी और कितनी होगी, इसका खुलासा तो 3 दिसम्बर को मतगणना के बाद ही होगा।
चालीस सीटों वाली मिजोरम विधानसभा के लिए मात्र एक चरण में 7 नवम्बर को मतदान होना है और इसके लिए 5 नवम्बर की शाम 5 बजे प्रचार का शोर थम जाएगा। 7 नवम्बर को सुबह सूबे के करीबन सवा सात लाख मतदाता 150 से अधिक उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करते हुए अपने-अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। चुनाव में फतह हासिल करने के लिए तमाम राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार इस बार न केवल नए और युवा मतदाताओं पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, बल्कि उम्मीदवारों ने कॉलेज और विविद्यालयों के छात्रों के साथ चुनाव प्रचार के लिए टीम बनाई है। विद्यार्थियों के मुद्दों को हर दल और हर उम्मीदवार बेहद गंभीरता से उठा रहा है।
इतना ही नहीं, मोटरसाइकिल रैली, रोड शो व सांस्कृतिक मंचों का इस्तेमाल कर उम्मीदवार बैंकिंग, विदेश में शिक्षा और नौकरी में मदद करने जैसे वादों के साथ युवा केंद्रित सामाजिक-आर्थिक विकास और कल्याण की योजनाओं की बात चुनाव प्रचार के दौरान कर रहे हैं। अचरज की बात यह है कि उम्मीदवारों की ओर से वाहनों का इस्तेमाल बहुत कम किया जा रहा है। प्रचार सामग्री का उपयोग भी सीमित मात्रा में ही किया जा रहा है। निजी वाहनों और स्थानों पर पार्टी या उम्मीदवार के पोस्टर और होर्डिंग भी बेहद कम दिख रहे हैं। यहां स्टार प्रचारकों के स्वागत में सीमित स्तर पर ही होर्डिंग और पोस्टर देखे जा रहे हैं। उम्मीदवार घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क करने पर अधिक जोर दे रहे हैं। अन्य राज्यों की तुलना में यहां चुनावी रैलियों के जरिए प्रचार का प्रचलन नहीं के बराबर है। राजनेता अभी भी चुनाव प्रचार के परंपरागत तरीकों से मतदाताओं से व्यक्तिगत जनसंपर्क करने को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। इस बार रोड शो के जरिए प्रचार अभियान को आगे बढ़ाया जा रहा है।
अधिकतर उम्मीदवार सम्मेलन कक्षों में पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ संवाद कार्यक्रमों से अपना संदेश मतदाताओं तक पहुंचा रहे हैं। उम्मीदवार मिजोरम पीपुल्स फोरम के साझा मंचों पर अपनी बात रख रहे हैं। इसमें उम्मीदवार बारी-बारी से मतदाताओं के सामने अपनी बात रखते हैं। इस दौरान कभी-कभार वोटरों को भी उनसे सवाल पूछने का मौका मिल जाता है। एमएनएफ और जेडपीएम अपने स्तर पर प्रचार कर रहे हैं। मालूम हो राज्य में मिजोरम पीपुल्स फोरम का गठन यहां के कुछ नागरिक समाज संगठनों के सहयोग से 2006 में राजनीति को साफ, सुथरी और धनबल से मुक्त करने के लिए किया गया था। कहना गलत नहीं होगा कि इस बार काफी दिलचस्प मुकाबला होने वाला है। एमएनएफ, कांग्रेस और जेडपीएम के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है। वहीं भाजपा को पहले से अधिक सीट व आप के उम्मीदवार खाता खोलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। जहां एमएनएफ, कांग्रेस व जेडपीएम ने अपने-अपने मुख्यमंत्रियों के नाम घोषित कर दिए हैं, वहीं भाजपा गठबंधन की बात कर रही है, जबकि मुख्यमंत्री को लेकर आप की तरफ से कोई बयान नहीं आया है।
बताते चलें कि मौजूदा मुख्यमंत्री जोरमथांगा की बहुसंख्यक मिजो समुदाय में पकड़ अब भी कायम है। वहीं नए अध्यक्ष लालसावता के नेतृत्व में कांग्रेस लंबे अंतराल के बाद फिर से सत्ता आने की पूरी कोशिश कर रही है और आक्रामक रूप से जोरमथांगा को सत्ता से हटाने में लगी है। अब देखना यह है कि किस में कितना दम है और कौन किस पर भारी पड़ सकता है। इसके लिए मतगणना तक इंतजार करना पड़ेगा। कांग्रेस ने अपने कई नेताओं को स्टार प्रचारक के तौर पर उतारा और भाजपा ने 40 स्टार प्रचारकों को। जेडपीएम व एमएनएफ ने कई सेलेब्रिटीज को चुनावी मैदान में उतारा। मिजोरम की पूरी आबादी 10 लाख से थोड़ी ज्यादा है। राज्य के अधिकांश लोग ईसाई धर्म मानते हैं। यहां की 94 फीसद आबादी आदिवासी है। यह संख्या पूरे देश में सबसे अधिक है। 85 फीसद ईसाई आबादी के अलावा शेष 15 फीसद में कुछेक अन्य धर्मो के अलावा बौद्ध और हिंदू हैं। यानी सत्ता की चाबी ईसाइयों के पास है और मोटे तौर पर इस समुदाय को भाजपा पर उतना भरोसा नहीं है। इसलिए भाजपा को यहां से कोई खास उम्मीद भी नहीं है।
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