अंगदान : परिदृश्य बदलने वाली पहल

Last Updated 28 Sep 2023 01:30:15 PM IST

पिछले सप्ताह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने घोषणा की कि जो व्यक्ति अंगदान करेगा उसकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान से की जाएगी।


अंगदान : परिदृश्य बदलने वाली पहल

गौरतलब है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु मस्तिष्क में चोट आदि के कारण होती है, उसके अंग मृत्यु के बाद भी काफी घंटों तक जीवित रहते हैं। उस दौरान उसके जीवित अंगों का प्रत्यारोपण उन व्यक्तियों में किया जाए जिनके अंग खराब हो चुके हैं, तो उनकी जान बचाई जा सकती है। तमिलनाडु सरकार ने यह पहल कर पूरे देश में अग्रता हासिल की है।

तमिलनाडु देश में आज अंगदान के मामले में पहला राज्य हो गया है, जहां मृत्यु के बाद सम्मान मिलेगा। अंगदान के मामले में देश में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तमिलनाडु को भारत सरकार से पुरस्कार भी मिला है। यह कार्य पुरस्कार देने तक सीमित नहीं कर देना चाहिए। इससे आगे ऐसे कार्य होने चाहिए जिनमें उस परिवार की देखभाल का भी जिम्मा सरकार को लेना चाहिए जिसने अपने परिजन के अंगों को दान कर दूसरों को जीवन दिया है। पीड़ा के क्षणों में जब प्रिय जन का दुनिया से जाने का बहुत दु:ख होता है, तब सांत्वना के विकल्प भी होने चाहिए। परिजन भी अंगदान में भागीदार होते हैं। अंगदान करने वाला किसी भी उम्र का हो सकता है, अपने पीछे नादान बच्चे छोड़ कर जा रहा हो सकता है, जिन्हें परवरिश की जरूरत होती है, उनका ध्यान रखना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। सामाजिक सुरक्षा के साथ अंगदाता के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा भी सरकार को उठाना चाहिए। दुनिया में अंगदाता देशों को देखें, तो भारत बहुत पीछे है। दस लाख में एक अंगदाता मुश्किल से मिलेगा। स्पेन और अमेरिका अंगदान में सबसे आगे हैं। दस लाख लोगों में वहां चालीस व्यक्तियों का अंगदान होता है। भारत में अंगदान के लिए विशेष अभियान आदि नहीं चलाए जाते। गंगाराम अस्पताल में लीवर प्रत्यारोपण सर्जन डॉ.समीरन नंदी बताते हैं कि अस्पताल भी चिकित्सकों को प्रोत्साहित नहीं करते। अधिकांश अस्पताल पूरी तरह से पूर्ण नहीं हैं। सिर्फ संख्या के हिसाब से अस्पतालों की गणना होती है, जिसे हम प्राथमिक चिकित्सा के केंद्र के रूप में ही देख सकते हैं। देश में मात्र250 अस्पताल हैं, जिन्हें हम वाकई उच्च अस्पतालों की श्रेणी में रख सकते हैं। ये अस्पताल ‘नैशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांटेशन ऑग्रेनाइजेशन में पंजीकृत हैं। यही अस्पताल हैं, जो अंग प्रत्यारोपण में सहयोग करते हैं।

इसका आश्य है कि भारत में 43 लाख नागरिकों में सिर्फ एक अस्पताल में उचित सुविधा उपलब्ध हैं। ऐसे ही एक नजर उन अस्पतालों यानी एम्स जैसे अस्पतालों पर डालें तो पाते हैं कि आये दिन हर राज्य में एम्स खोले जा रहे हैं, पर उनमें क्या सुविधाएं हैं? इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। वहां न तकनीशियन उपलब्ध हैं, और न ऐसी प्रयोगशालाएं हैं, जहां अनुसंधान पर जोर दिया जा रहा हो। डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं हैं। देश में कॉरपोरेट अस्पताल ही ऐसे हैं, जहां काफी अंग प्रत्यारोपण-किडनी, लीवर, लंग्स, दिल आदि काम हो रहा है। ये अस्पताल जीवित व्यक्तियों से अंग लेकर जिसका अंग खराब है, उस पर रोपित करने में आगे हैं, अपेक्षाकृत सरकारी अस्पतालों के। चूंकि अधिकांश व्यक्ति दुर्घटना में मृत होने पर सरकारी अस्पतालों में पहुंचते हैं, ऐसी स्थिति में समय रहते ब्रेन से मृत व्यक्ति के परिजनों से कोई सहायता ले तो अंग प्रत्यारोपण संभव हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में 15 फीसद अस्पताल हैं, जहां पर यह सुविधा उपलब्ध है। यह सूचना इंडियन ट्रांसप्लांट न्यूज लेटर में प्रकाशित हुई है यानी मृत व्यक्ति का अंग प्रत्यारोपण सरकारी अस्पताल में अधिक संभव है।  2020 के आंकड़ों के अनुसार विश्व भर में एक लाख तीस हजार अंगदान हुए थे। अमेरिका और यूरोप में सर्वाधिक अंगदान हुए। अमेरिका में 90 फीसद बालिग अंगदान में सहयोग करने की इच्छा रखते हैं, जिनमें सिर्फ 60 फीसद की अंगदान के लिए आवेदन करते हैं, ब्रिटेन में 41 फीसद। सर्वाधिक दान किडनी का होता है। विश्व में भारत का नंबर अमेरिका और चीन के बाद तीसरा है। ‘ग्लोबल ऑब्जरवेटरी ऑन डोनेश एंड ट्रांसप्लांटेशन’ रिपोर्ट का यह आंकड़ा है।

भारत में जागरूकता की कमी के कारण अंगदान नहीं हो पा रहा। 81 फीसद लोगों को जानकारी ही नहीं है, धार्मिक विश्वास के कारण 63 फीसद और स्वास्थ्य पण्राली में विश्वास की कमी के कारण 40.3 फीसद लोग अंगदान में प्रतिभागी नहीं बन पा रहे। फेफड़ा ऐसा अंग है, जिसका प्रत्यारोपण कठिन होता है। इंफेक्शन की संभावनाएं अन्य अंगों की अपेक्षा अधिक होने से फेफड़ा प्रत्यारोपण काफी कठिन होता है। इस कारण दानदाता के अंगदान के बाद गहन देखभाल की आवश्यकता होती है। विकटताओं के बावजूद सरकार को दानदाता के परिवार को भी अधिक सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए तभी अंग प्रत्यारोपण अभियान तेज गति पकड़ सकता है।

भगवती प्र. डोभाल


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