वैश्विकी : जेलेंस्की फिर अमेरिकी शरण में

Last Updated 17 Sep 2023 01:37:51 PM IST

यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अगले सप्ताह अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं, जहां वह व्हाइटैहाउस में राष्ट्रपति जो बाइडन से युद्ध के हालात पर चर्चा करेंगे।


यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की (फाइल फोटो)

जेलेंस्की हथियारों की एक सूची पेश करेंगे तथा इनकी आपूर्ति की मांग रखेंगे। पिछले 19 महीनों के दौरान अमेरिका और पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को बड़ी मात्रा में आधुनिक हथियारों की आपूर्ति की है, लेकिन इनमें लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल शामिल नहीं हैं। अमेरिका इस बात की सतर्कता बरत रहा है कि यूक्रेन को ऐसे हथियार न दिए जाएं जो रूस की मुख्य भूमि तक मार कर सकें। जाहिर है कि अमेरिका और नाटो देश रूस के साथ सीधे युद्ध का जोखिम नहीं उठाना चाहते। ये देश यूक्रेन के जरिये प्रच्छन्न युद्ध चला रहे हैं। इसका उद्देश्य रूस को सैनिक और आर्थिक दृष्टि से कमजोर करना है। अभी तक के घटनाक्रम से स्पष्ट है कि पश्चिमी देश इस रणनीति में असफल साबित हुए हैं। भारत और चीन जैसे मित्र देशों की मदद से रूस ने आर्थिक प्रतिबंधों को निष्प्रभावी बना दिया है। रूस का तेल और गैस कारोबार लगभग पहले की तरह जारी है। पश्चिमी देशों को इस बात का भान हो गया है कि ग्लोबल साऊथ के देश रूस के खिलाफ प्रतिबंधों पर अमल नहीं करेंगे। इन देशों पर दबाव डालने की कोशिश भी सफल नहीं होगी।

यूक्रेन समर्थक विश्लेषकों को सबसे अधिक निराशा यूक्रेन के जवाबी हमले की असफलता से हुई है। जवाबी हमले के संबंध में यह कहावत चरितार्थ होती है कि ‘सौ दिन चले अढ़ाई कोस’। जून महीने में शुरू हुए जवाबी हमले के बाद से यूक्रेन की सेना रूस की त्रिस्तरीय रक्षा प्रणाली से जूझ रही है। इस रक्षा प्रणाली ने बारूदी सुरंगें ‘ड्रैगन टीथ’ (प्रस्तर खंड) और खंदक शामिल हैं। उनके पीछे रूस की नियमित सेना है। इन अवरोधों को पार करना यूक्रेन ही नहीं बल्कि नाटो सेनाओं के लिए भी दुरूह है। इस बीच जेलेंस्की ने रूस को परेशान करने के लिए नई रणनीति शुरू की है। कालासागर में तैनात रूस के युद्धपोतों को ड्रोन और मिसाइल के जरिये निशाना बनाया जा रहा है। क्रीमिया और कालासागर रूस के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इस क्षेत्र में रूस अपने वर्चस्व की हर कीमत पर रक्षा करेगा।

जेलेंस्की की अमेरिका यात्रा उस समय हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रारंभिक हलचल शुरू हो गई है। संभावित प्रत्याशियों ने यूक्रेन युद्ध के संबंध में अपनी नीति का खुलासा करना शुरू कर दिया है। पिछले वर्ष दिसम्बर में जब जेलेंस्की ने अमेरिका की यात्रा की थी उस समय यूक्रेन को समर्थन देने पर प्राय: मतैक्य था। सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी ने जेलेंस्की का स्वागत युद्ध हीरो के रूप में किया था। उनकी तुलना नेल्सन मंडेला और विंस्टन चर्चिल से की गई थी। आज के हालात अलग हैं। यूक्रेन और जेलेंस्की के खिलाफ सबसे तीखी आलोचना रिपब्लिकन पार्टी के भारतीय मूल के संभावित उम्मीदवार विवेक रामास्वामी ने की है। विवेक ने एक इंटरव्यू में जेलेंस्की को ‘फ्रॉड’ तक कह डाला है। उम्मीदवारों की बहस के दौरान भारतीय मूल की निक्की हेली (निम्रता रंधावा) और विवेक रामास्वामी के बीच तीखी नोक-झोंक हुई।

निक्की हेली ने विवेक पर ‘हत्यारे’ ब्लादिमीर पुतिन का समर्थन करने का आरोप लगाया। जवाब में विवेक ने हेली से कहा कि आप अमेरिकी हथियार कंपनियों में नौकरी की तलाश कर रहीं हैं। इस बहस से जारी है कि अमेरिका का राजनीतिक नेतृत्व विभाजित है। फिलहाल, मीडिया के जरिये अमेरिका और पश्चिमी देशों में रूस विरोधी भावनाओं को भड़काया गया है। जनमत रूस और पुतिन के खिलाफ है तथा कोई युक्तिसंगत फैसला करना किसी भी नेता के लिए मुश्किल है। दुनिया के प्रमुख देशों में भारत एक अपवाद है जहां रूस और पुतिन के पक्ष में प्रबल जनमत है। मीडिया और समीक्षकों के छोटे वर्ग को छोड़कर अधिकतर भारतीय रूस को भरोसेमंद देश मानते हैं। पुतिन की भी भारत में सकारात्मक छवि है। पश्चिमी देशों के समीक्षक हैरान हैं कि भारत के लोग रूस के पक्ष में क्यों हैं। इसका एक कारण बांग्लादेश के मुख्य संग्राम के दौरान अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े के खिलाफ रूस की ओर से भारत को समर्थन दिया जाना था। इस घटनाक्रम को 50 साल बीत चुके हैं लेकिन सभी उतार-चढ़ावों के बावजूद ‘हिंदी-रूसी भाई-भाई’ की भावना अभी भी बरकरार है।

डॉ. दिलीप चौबे


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