उपचुनाव परिणाम : गठबंधन की गांठ

Last Updated 11 Sep 2023 01:32:11 PM IST

नए बने गठबंधन की कर्णधार बनी मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अभी-अभी मुंबई, बेंगलुरू और पटना से सत्ता का सपना देखकर निकली ही थी कि केरल और पश्चिम बंगाल के उपचुनावों में उसके प्रत्याशी बुरी तरह हार गए। उन्हें शिकस्त देने वाले रहे कांग्रेस और तृणमूल।


उपचुनाव परिणाम : गठबंधन की गांठ

हालांकि 1 सितम्बर को मुंबई में इन दोनों के साथी माकपा महासचिव सीताराम येचुरी सीताराम ने सौगंध ली थी कि मोदी को गांव भेज देंगे। बिरमगाम जहां वे चाय बेचते थे।

येचुरी तो प्रकाश करात द्वितीय बनने के ख्वाब संजो रहे थे। करात ने माकपा महासचिव स्व. सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत के दौर में दो प्रधानमत्रियों एचडी देवेगौड़ा और इंदर गुजराल (1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक) को कठपुतली जैसे नचाया था। भारत की बागडोर पकड़े रखी थी। केरल और पश्चिम बंगाल में करारी पराजय का गठबंधन पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा। केरल से 20 लोक सभा सदस्य हैं और पश्चिम बंगाल से 42 हैं। इनमें भाजपा का केरल से एक भी सांसद नहीं है मगर पश्चिम बंगाल से 18 हैं। उपचुनाव इन दोनों राज्यों में वे आपस में ही जंग लड़े थे। कांग्रेस और माकपा में इस सीधी और विषाक्त टक्कर के अंजाम में अब केरल में गठबंधन के दोनों घटकों (माकपा और कांग्रेस) में छत्तीस का आंकड़ा विकराल हो गया है।

राहुल गांधी केरल के ही मुस्लिम-बहुल वायनाड से लोक सभा में पहुंचे थे, अमेठी में पराजित होकर। वायनाड में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी को शिकस्त दी थी अर्थात वाम मोर्चा से कांग्रेस का तालमेल यहां बैठना मुमकिन नहीं है। खास कारण है ताजा उपचुनाव के बाद से राजनीतिक समीकरण कमजोर हो गए। विजयी कांग्रेस प्रत्याशी चांडी ओमान, जिनने माकपा के जायक सी. थॉमस को हराया, दिवंगत कांग्रेसी ओमन चांडी के पुत्र हैं। पिता कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे। उनका निधन होने से यह उपचुनाव हुआ था। पुत्र ने माकपा को 37000 वोटों से हराया। 53 वर्षो से पुत्थुपल्ली विधानसभा क्षेत्र से चांडी परिवार जीतता  रहा है। जब मतगणना हो रही थी तो पुत्र चांडी अपने पिता की मजार संत जॉर्ज ओर्थोड्क्स चर्च पर गए थे। अश्रुपूरित नेत्रों से आभार जताया था। तब बहन अच्छु ओमन ने कहा: ‘पिता की आस्था ने विजयी विधायक पुत्र चांडी से अवश्य कहा होगा : ‘चुनाव क्षेत्र की सेवा दिल से करना।’ अब ऐसी भावनात्मकता पर आधारित माकपा-विरोधी के रहते क्या कांग्रेस का माकपा से गठबंधन में संभव होगा?

उधर, पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी जिले के धूपगुड़ी विधानसभा क्षेत्र में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के निर्मल चंद्र राय ने भाजपा की तापसी राय को तो केवल चार हजार वोटो से हराया परंतु तीसरे नंबर पर कांग्रेस-समर्थित माकपा के ईश्वर चंद्र राय रहे। उनकी जमानत खतरे में पड़ी थी। संसदीय कांग्रेसी विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी यहां अभियान के मुखिया थे। तो प्रश्न यही है कि इन सागरतटीय राज्यों में गठबंधन को समुद्र में डूबने से कौन बचा पाएगा?

अब नजर डालें पूर्वी उत्तर प्रदेश पर। यहां भाजपा ने अवसरवादी, दलबदलू, पार्टयिों पर छलांग लगाकर आने-जाने वाले दारा सिंह चौहान को नामित किया। उनकी पराजय हुई। मेरा आकलन है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मशविरा किया होता तो दारा सिंह चौहान भाजपायी प्रत्याशी नहीं होते। यदि अमित शाह यूपी पर अपनी राय थोपेंगे तो घोसी जैसे परिणाम ही होते रहेंगे।
अब देखें जरा कौन और कैसे हैं ये दारा सिंह जो चारों खाने चित गिरे? वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में उत्तर प्रदेश में मधुबन (विधानसभा क्षेत्र) के प्रतिनिधि थे। उन्होंने 15वीं लोक सभा में घोसी का भी प्रतिनिधित्व किया, मगर तब वे बहुजन समाज पार्टी में थे। नई दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में 2 फरवरी, 2015 को भाजपा में वे भर्ती हो गए। उन्हें स्व. मुलायम सिंह यादव ने राज्य सभा में भेजा। मगर समाजवादी सरकार के गिरते ही वे (2007) में बसपा में भर्ती (2007) हो गए।

फिर भाजपा में शामिल (2015) हुए। पार्टी टिकट न मिला तो भाजपा छोड़कर सपा में आ गए। और फिर उससे भी दूर हो गए। इस प्रमाणित दल-बदलू को नामांकित कर भाजपा ने अपने चाल, चरित्र और चेहरे पर कालिख पोत ली। नतीजा सामने है। तुलनात्मक रूप से सुधाकर सिंह की छवि भली है। यूं उन्हें समाजवादी पार्टी से नाराजगी होनी चाहिए थी। इस पार्टी ने उनका टिकट कई बार काटा था। वे दो बार विधायक रह चुके हैं। इसके बाद 2012 में नत्थूपुर विधानसभा का नाम बदलकर घोसी कर दिया गया। यहां फिर चुनाव हुआ। सुधाकर सिंह विजयी रहे। घोसी में सपा के विजय का श्रेय बड़ी यात्रा में चाचा शिवपाल सिंह यादव को जाता है। भाजपा जरूर गमजदा होगी कि शिवपाल सिंह यादव जैसे मित्र को खो दिया। उन्हीं के सतत अभियान का नतीजा है कि सपा ने घोसी में अपना लाल झंडा फहराया। घोसी चुनाव परिणाम दोनों पार्टयिों को एक संदेश, एक चेतावनी देता है। पार्टी कार्यकर्ता का सम्मान करें। पार्टी नेतृत्व दारा सिंह और सुधाकर सिंह जैसे नेताओं के गुण पहचानें।

के. विक्रम राव


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